मुखरता एक और कौशल है जिसकी हमारी संवेगो के संबंध में महत्वपूर्ण भूमिका है। कई स्थितियों में, हम अपने संवेगों को व्यक्त करने में संकोच करते हैं इस डर या आशंका से कि कहीं दूसरे हमें गलत ना समझे, उनको गुस्या या ठेस पहुंचेगी, या इसे सकारात्मक रूप से नहीं लिया जाएगा। और यह भी है कि हम अपनी कमजोरियों या सीमाओं से बचने के लिए अपने संवेगों को व्यक्त नहीं करते है, दूसरे व्यक्तियों के सामने हीन दिखने या असमर्थ होने पर डर या शर्म करते हैं। ये सभी हमारे संवेगों को दबाते है और यदि हम ज्यादातर समय छिपाने में लगे रहते हैं तो इसका परिणाम अवसाद हो सकता है। उदाहरण के लिए, नीता 8वीं कक्षा की छात्रा है जिसे हमेशा उसके सहपाठियों द्वारा चिढ़ाया जाता है क्योंकि वह मोटी है। वह बहुत परेशान और दुखी महसूस करती है और इससे उसके आत्म सम्मान पर प्रभाव पड़ता है। यह उसकी पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल की विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यहां संवेगों को व्यक्त करने में मुखरता की आवश्यकता है। इससे नीता को दृढ़ रहने और स्वयं का पक्ष लेने में सहायता मिलेगी और साथ ही साथ, दूसरों को स्थिति का एहसास करा सकते हैं।
मुखरता को विकसित करने की रणनीतियां
मुखरता संवेगात्मक योग्यता है जिसे विकसित किया जा सकता है ताकि स्वयं के संवेगों को सफलतापूर्वक प्रबंधित और जीवन में सफलता के लिए दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सके। यहां व्यक्ति बगैर किसी भय, संकोच या आक्रमकता के अपने विचारों, अभिमत, भावनाओं और इच्छाल्यों को ईमानदारी से व्यक्त करने में सक्षम है क्योंकि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का ध्यान रखता है। इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षमता को विभिन्न तरीकों सें विकसित किया जा सकता है:
1) स्वयं के सेगों के बारे में जागरूक होना
मुखरता विकसित करने की प्रक्रिया में प्रथम बिंदु हैं खुद के संवेगों के बारे मेंजागरूक होना। उपर दिये गये नीता के उदाहरण के संदर्भ में, उसे इस बारे में जागरूक होने की आवश्यकता थी कि वह किन संवेगों और भावनाओं को अनुभव कर रही है और वह स्वयं अपने लिए क्या चाहती है। यदि मुझे नहीं पता कि मेरी भावनायें और इच्छायें क्या है तो मैं किसके लिए खड़ी हूँगी,/ खड़ा हूँगा?
2) दूचरों के सवेगों के बारे में जायरूक होना
यह मुखरता के लिए दूसरा आवश्यक चरण है। दूसरों को उपेक्षा, अपमानित या ठेस पहुंचाकर कोई भी खुशी प्राप्त नहीं कर सकता है। दूसरों की आवश्यकताओं और इच्छाओं को भी बराबर सम्मान देने की आवश्यकता है। इससे लोगों को विरोधी या असंतोष दिखाये बगैर आपकी स्थिति को स्वीकार कर सकते हैं। अतः मुखरता में स्वयं और दूसरों की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना शामिल हैं।
3) मुखरता के प्रांच 'C' पर ध्यान रखना
आप जो चाहते है उसके विषय में स्पष्ट रहें, इसे आत्मविश्वास से कहें और पूरी तरह से नियत्रित रहें। इस तरह व्यक्ति को यह जानने की आवश्यकता हैं कि किसी दी गई स्थिति में क्या करना है। इसके अलावा, प्यक्ति को शाब्दिक और अशाब्दिक भाषा को ध्यान से देखने की आवश्यकता होती है ताकि दूसरे व्यक्तियों के साथ क्या संप्रेषण हो रहा है। दूसरों के लिए स्वीकार्य होने के लिए व्यक्ति को संवेगात्मक या उत्तेजित हुये बिना आत्म विश्वास और शांत तरीके से संवाद करने का अभ्यास करने की आवश्यकता है। स्वयं के संवेगों पर नियंत्रण रखने से व्यक्ति को स्पष्ट तौर पर रचनात्मक कदम उठाने में सहायता मिलेगी ।
4) युखर संवाद
मुखरता, संप्रेषण का एक तरीका है जो रातभर में विकसित नहीं हो सकता है। इसलिए कैसे दूसरों को कष्ट दिये बगैर मुखरता से संवाद किया जाऐ, यह अभ्यास करने की आवश्यकता है।
5) सचेत होना
स्वयं के संवेगों, भावनाओं और व्यवहार के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है। इससे यह समझने में सहायता मिलती है कि वास्तव में आप खुद क्या चाहते हो और दूसरों के समक्ष कैसे व्यक्त करना है।
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