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अनुवाद के विविध साधनों पर प्रकाश डालिए।

 वास्तव में अनुवाद एक जटिल कार्य है। मूल में एक भाषा में लिखे गए पाठ को दूसरी भाषा और उसके माध्यम से दूसरे समाज व संस्कृति में लाना अनुवादक का कार्य है। ऐसा करते हुए उसे मूल लेखक की मनःस्थिति तथा उसके सामाजिक-सांस्कृतिक-मानसिक स्तर तक पहुँचना होता है।दूसरे शब्दों में कहें तो उसे परकाया प्रवेश करना होता है। यूँ तो मूल रचनाकार भी सृजन करते समय परकाया प्रवेश की स्थिति से गुजरते हैं किंतु अनुवाद के स्तर पर आकर यह परकाया प्रवेश दोगुना हो जाता है। इसलिए अनुवाद को एक दुसाध्य कार्य कहा गया है।

अनुवाद को निश्चित विधान मानने वाली दृष्टि अनुवादक से यह अपेक्षा रखती है कि उसमें साहित्यकार की सर्जनात्मक प्रतिभा, वैज्ञानिक की तर्क शक्ति तथा शिल्पगत दक्षता आदि गुण होना आवश्यक है। अनुवाद करते समय अनुवादक से यह अपेक्षा की जाती है कि वे दो भाषाओं के साथ-साथ दो समाज, संस्कृतियों, दो विभिन्न परिवेशों से भी परिचित हों जो वास्तव में असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसीलिए अनुवादक को अनुवाद करते समय विभिन्न ज्ञान स्रोतों की आवश्यकता पड़ती है। अनुवादक के इन सहायकों को ही अनुवाद के विविध साधन या उपकरण कहा जाता है। इन विविध साधनों में विभिन्न प्रकार के कोश, विभिन्न संस्थाएँ, वेबसाइट, कंप्यूटरीकृत कोश – विश्वकोश, शब्दकोश, मशीनी अनुवाद आदि महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

अनुवादक की सहायता के लिए और अनुवाद कर्म को सफल बनाने के लिए अनुवाद के विविध उपकरण बेहद कारगर सिद्ध होते हैं। इन महत्त्वपूर्ण उपकरणों में सबसे अहम् भूमिका विभिन्न प्रकार के कोशों की होती है। कोश की परिभाषा-कोश एक ऐसा शब्द है जिसका व्यवहार अनेक क्षेत्रों में होता है और प्रत्येक क्षेत्र में उसका अपना अर्थ और भाव है। हिंदी शब्द सागर के अनुसार, कोश वह ग्रंथ है जिसमें अर्थ एवं पर्याय सहित शब्द इकटठे किए गए हों।

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, कोश ऐसे संदर्भ ग्रंथ को कहते हैं जिसमें भाषा विशेष के शब्दादि का संग्रह हो या संग्रह के साथ उनके उसी या दूसरी या दोनों भाषाओं के अर्थ पर्याय, प्रयोग या विलोम हो या विशिष्ट अथवा विभिन्न विषयों की प्रविष्टियों की व्याख्या नामों (स्थान, व्यक्ति आदि) का परिचय या कथनों आदि का संकलन क्रमबद्ध रूप में हो। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने कोशों का विभाजन दो भागों में किया है

• भाषिक कोश 

• भाषेतर कोश

भाषिक कोश के अंतर्गत वे कोश आते हैं जिनका सरोकार सीधा-सीधा भाषा से है। इसके दायरे में एकभाषिक कोश, द्विभाषिक कोश, बहुभाषिक कोश, पर्याय कोश, थिसॉरस, मुहावरा-लोकोक्ति कोश आदि आते हैं। भाषेतर कोश से तात्पर्य कोश के उन प्रकारों से है जिनका क्षेत्र भाषा तक सीमित नहीं होता। दूसरे शब्दों में कहें तो वे कोश जिनका उपयोग हम शब्द का अर्थ ढूँढ़ने के लिए नहीं अपितु अवधारणा अथवा संकल्पना का अर्थ, उसके मायने और भाषा विशेष में उसका स्थान और उसकी उपयोगिता जानने के लिए करते हैं।

भाषेतर कोशों में विश्व कोश, साहित्य कोश, धार्मिक कोश, विषय कोश आदि आते हैं। एकभाषिक कोश-एक भाषा वाले कोश को एकभाषिक कोश कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एकभाषिक कोश से तात्पर्य उन कोशों से है जिनमें एक भाषा के शब्दों के उसी भाषा में अर्थ दिए जाते हैं। द्विभाषिक कोश-द्विभाषिक कोश वह होता है जिसमें दो भाषाएँ होती हैं, जैसे हिंदी-अंग्रेजी या अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश । अनुवाद कार्य के लिए द्विभाषिक कोश अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अनुवादक दो भाषाओं को जानने के कितने भी दावे कर लें लेकिन मनुष्य की निश्चित सीमा होने के कारण वे किसी भी भाषा को पूर्णतः नहीं जान पाते। विदेशी भाषाओं के संदर्भ में तो यह कथन और समीचीन हो जाता है। स्रोतभाषा के पाठ को पढ़ते तथा अनूदित करते समय ऐसी कई समस्याएँ पाठक अथवा अनुवादक के सामने आती हैं। द्विभाषिक कोश ऐसी स्थिति में बेहद उपयोगी सिद्ध होता है।

साथ ही, द्विभाषिक कोश में शब्दों के अर्थ के साथ-साथ उनके सही उच्चारण तथा प्रयोग आदि की भी जानकारी मिल जाती है। र्थादि दिए जाते हैं। बहुभाषिक कोश का प्रयोग उस स्थिति में होता है जब अनुवाद करते समय दो भाषाओं के बीच एक सेतु भाषा का भी प्रयोग किया जाए। उदाहरणस्वरूप तमिल से गुजराती में अनुवाद करते समय यदि अनुवादक को इनमें से कोई एक भाषा नहीं आती है तो वे हिंदी अथवा किसी अन्य भाषा के माध्यम से अनुवाद कार्य कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में त्रिभाषिक अथवा बहुभाषिक कोश की आवश्यकता अनुभव होगी। त्रिभाषिक कोश के अतिरिक्त भी कई भाषाओं के कोश उपलब्ध हैं जो अनुवाद की आवश्यकता और भाषा की संप्रेषणीयता को ध्यान में रखते हुए निर्मित किए गए हैं। थिसॉरस-थिसॉरस का सृजन मूलतः बतौर शब्द खज़ाना किया गया था। 

थिसॉरस से तात्पर्य एक ऐसे कोश से है जिसमें अवधारणाओं अथवा संकल्पनाओं के आशय के अनुसार शब्दों का संयोजन किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो थिसॉरस के अंतर्गत एक शब्द उसकी अवधारणा से मिलते अन्य शब्द, मुहावरे, भाषिक प्रयोग आदि एक ही स्थान पर मिल जाते हैं। ऐसे में रचनाकार अथवा अनुवादक को एक अर्थ तथा उससे मिलते अन्य अर्थों की खोज में भटकना नहीं पड़ता। थिसॉरस तथा पर्याय कोश की अवधारणा में कुछ समानता देखी जाती है। यानी दोनों ही कोशों में एक ही शब्द के विभिन्न पर्याय तथा उनके विस्तृत आशय दिए जाते हैं। मुहावरा-लोकोक्ति कोश-मुहावरे तथा लोकोक्तियाँ समाज, संस्कृति तथा परंपराओं के साथ भाषा के अंतर्गुफन की परिचायक है।

अनुवादक को अनुवाद तथा विशेष तौर पर सर्जनात्मक साहित्य के अनुवाद के दौरान अनेक प्रकार की भाषागत समस्याओं का सामन करना पड़ता है। भाषा में मुहावरे तथा लोकोक्तियों का प्रयोग भाषा पर रचनाकार की पकड़ की ओर संकेत करता है। वहीं इनका सही-सही अनुवाद भाषा पर अनुवादक की सही पकड़ का भी द्योतक है। मुहावरे तथा लोकोक्तियों का अनुवाद अपने आप में एक जटिल कार्य है जिसे ध्यान में रखते हुए विभिन्न भाषाओं में मुहावरे तथा लोकोक्ति कोशों का निर्माण किया गया है। मुहावरे तथा लोकोक्ति का अनुवाद करते हुए अनुवादक को बेहद सावधानी रखने की जरूरत पड़ती है। भाषा का लाक्षणिक तथा व्यंजनापरक प्रयोग होने के कारण इनका अनुवाद भी अभिधापरक नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में या तो अनुवादक को समतुल्य मुहावरे-लोकोक्तियों की खोज लक्ष्यभाषा में करनी पड़ती है अथवा मुहावरे-लोकोक्ति का सही अर्थ समझते हुए उनका यथासंभव अनुवाद करना होता है।

भाषेत्तर कोश-भाषेत्तर कोश में प्रमुख हैं-विश्वकोश. विषयकोश तथा साहित्यकोश। विश्वकोश-हिंदी साहित्य कोश हिंदी साहित्य एवं उससे संबंधित विषयों का विश्वकोश (encyclopedia) है। विश्वकोश का अंग्रेजी पर्याय है एनसाइक्लोपीडिया। विश्वकोश में विश्व के अनेक विषयों की जैसे-धर्म, संस्कति, दर्शन, कला, इतिहास, भूगोल आदि की विस्तृत जानकारी दी जाती है। विश्वकोश चूँकि एक भाषा अथवा एक भाषा के निश्चित ज्ञान, तक सीमित नहीं है इसलिए इसकी गणना भाषेतर कोशों में की जाती है। इसमें कोश के अनुसार वर्णानुक्रम का ध्यान रखा जाता है ताकि किसी भी शब्द अथवा अवधारणा को सरलता से खोजा जा सके। किसी भी शब्दकोश का उद्देश्य दिए गए शब्द के उसी अथवा अन्य भाषा में अर्थ प्रदान करना होता है। इसी कारण सीमित भी होता है जबकि विश्वकोश से तात्पर्य ऐसे कोश से हैं जिसके अंतर्गत किसी एक शब्द अथवा अवधारणा को विभिन्न दृष्टिकोणों से तथा व्यापक रूप में समझाया जाता है।

अनुवादक चूँकि दूसरी और कई बार अपनी भाषा की संस्कृति, समाज और उससे जुड़ी विभिन्न अवधारणाओं से पूरी तरह परिचित नहीं होते । ऐसी स्थिति में वे विश्वकोश की मदद से न केवल अर्थ की तह तक पहुँचते हैं अपितु उसका उचित अनुवाद भी संभव हो पाता है। विषय कोश-विषय कोश के अंतर्गत संबद्ध विषय तथा उससे जुड़ी विभिन्न संकल्पनाओं, अवधारणाओं आदि की विस्तृत जानकारी उपलब्ध होती है। विषय कोश के अंतर्गत किसी शब्द विशेष का विषय विशेष में क्या अर्थ होता है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। भाषा, दर्शन, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि के कोश उस विषय के गहन अध्ययन में बहुत सहायक हैं।

साहित्यकोश-जिस प्रकार विषय कोश किसी विषय के क्षेत्र में गहन अध्ययन हेतु उपयोगी सामग्री उपलब्ध करवाता है, उसी तरह साहित्यकोश साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न कालों, युगों, अवधारणाओं, प्रवृत्तियों, प्रयोगों, महत्त्वपूर्ण रचनाकारों आदि के विषय में गहन अध्ययन हेतु जानकारी उपलब्ध करवाता है। विश्वसाहित्य में कई अवधारणाएँ प्रमुख रही हैं। वे सभी अवधारणाएँ किसी एक समाज, राष्ट्र एवं संस्कृति की देन नहीं है। विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न समाज के साहित्य और साहित्यालोचन में नई अवधारणाओं की शुरुआत हुई जिन्हें समय-समय अन्य भाषाओं के साहित्य में भी अपना लिया गया। साहित्यानुवाद करते समय अनुवादक के लिए अपेक्षित है कि उन्हें इन विभिन्न अवदानों के विषय में समुचित जानकारी हो। ऐसी स्थिति में साहित्यकोश अनुवादक के सहायक हो सकते हैं।

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