केस-स्टडी विधि एक विशिष्ट अभिलक्षण यह है कि यह किसी भी मामले के सभी पहलुओं का समावेश करके चलती है। किसी पर्वतीय क्षेत्र में एक गाँव से होकर निकलने वाली सड़क के निर्माण पर विचार करें अब सड़क निर्माण पर बल देने वाले अथवा इसका विरोध करने वाले हितधारकों के विभिन्न पक्ष सामने आते हैं। एक पक्ष विकास दृष्टिकोण रखता है, दूसरा इसे पर्यावरण की दृष्टि से देखता है और तीसरा ग्रामवासियों के अपने ढंग से जीने के अधिकार का समर्थन करता लोकोपकारी दृष्टिकोण है। मैं पर्यावरण और विकास चरों को एक साथ लेकर इस गाँव की केस-स्टडी कर सकता हूँ। मेरे अध्ययन का परिणाम सकारात्मक होना आवश्यक नहीं है, परंतु इससे मुझे पता चल जाएगा कि यदिसड़क निर्माण होता है तो सभी आयामों - पर्यावरण, विकास और परोपकार - पर विचार करते हुए वस्तुतः क्या होता है। अपने परिणामों के आधार पर इस प्रकार का अध्ययन आगे नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकता है और वाद-विवाद शुरू कर मुद्दे भी उठा सकता है।
कोई केस अध्ययन जो दर्शा सकता है वह उक्त चरों और उस रीति का सापेक्ष मूल्य होगा जिससे प्रत्येक हितधारक को एक दूसरे के संबंध में रखकर देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी परियोजना को मात्र एक ही दृष्टिकोण से देखें तो संभव है कि हम उस विशिष्ट दृष्टिकोण को ही वरीयता दें, जो कि केवल विकास होगा या फिर केवल पर्यावरण। किंतु वह अध्ययन जो उक्त सभी आयामों को समेट कर किया जाएगा, यह स्पष्ट कर देगा कि यदि विकास किसी निश्चित स्तर तक बढ़ाया जाता है तो पर्यावरण का क्या होगा तथा हम किस प्रकार एक स्तर विशेष तक ही विकास को सीमित रखें ताकि समाज एवं संस्कृति को न्यूनतम क्षति पहुँचे और साथ ही, हम एक चर को दूसरे चर के प्रति कैसे प्राथमिकता दें।
केस-स्टडी विधि शोधकर्ताओं को इस बात में सक्षम बनाती है कि वे लोगों को मानदंड और उन मानदंडों के वास्तविक परिणाम स्पष्ट करने में उनकी अक्षमता से उन्हें उबार सकें। एडमसन होबल और कार्ल लुवेल्लिन ने इस विषय को लेकर एक सहयोगात्मक अध्ययन किया कि शायमान समुदाय में विवाद कैसे सुलझाए जाते हैं। इस अध्ययन के दौरान उन्होंने केस-स्टडी विधि का ही उपयोग किया। मानवशास्त्रीय अध्ययन में केस-स्टडी विधि की शुरुआत का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उन्होंने उन प्रक्रियाओं की जाँच की जिनसे विवाद के मामले निपटाए जाते थे। इसमें स्थिति, विवाद के संबंध में प्रत्येक भागीदार ने क्या किया, उन लोगों द्वारा क्या कदम उठाए गए जिनका विवाद से कुछ भी संबंध था, किन्होंने हस्तक्षेप किया, तर्कणा प्रतिमान क्या रहा, विवाद निपटाने के प्रयासों का अंतिम परिणाम, इस विवाद का वादी-प्रतिवादी पर और इस प्रकार के अन्य विवादों के भविष्य पर तथा समुदाय के सामान्य जीवन पर पड़ा प्रभाव शामिल थे। उन्होंने पाया कि लोगों ने विवादों को निपटाने के लिए मानदंडों और नियमों को स्पष्ट ही किया था। उन आदर्श प्रतिमानों को पहचानना संभव था जिनके आधार पर शोधकर्ता वास्तविक जीवन की स्थितियों में वास्तविक व्यवहार का मूल्यांकन कर सकते थे। बहरहाल, व्यावहारिक स्थितियों में विवाद समाधान की सहमति प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता। वह जो प्रत्याशित था' तथा 'वह जो विवाद शुरू होने के समय वस्तुतः: हुआ' के बीच विचलन देखा गया। इन मुद्दों को केस-स्टडी विधि के प्रयोग ने ही हल किया। कंस-स्टडी विधि का प्रयोग कर शोधकर्ता लोगों की यह स्पष्ट कर पाने की अक्षमता को दूर कर पाने में सक्षम हुए कि मानदंडों और नियमों की कैसे व्याख्या की जाए और विवाद की स्थितियों में उनका कैसे प्रयोग किया जाए।
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