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वस्तुनिष्ठ सह-संयोजन का सिद्धांत

कवि की भाव सम्पदा को भावक के मन में यथावत्‌ कैसे उतारा जाए अथवा अमूर्त भाव को भावक तक केसे पहुँचाया जाए? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए इलियट ने मूर्त विधान या वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। अमूर्त का सम्प्रेषण नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में किसी मूर्त वस्तु की सहायता से अमूर्त को संप्रेषित किया जाए। इस द ष्टि से कला के रूप में भाव को अभिव्यक्त करने का माध्यम है- वस्तु-समुदाय , परिस्थिति, घटना-श्वखला का प्रस्तुतीकरण। इससे लेखक और पाठक के मध्य सम्पर्क स्थापित होता है। लेखक जो कुछ कहना चाहता है वह विषय वस्तु का रूप धारण कर लेता है। विषय-वस्तु के इसी आकार और स्वरूप के साथ समीक्षा का सम्बन्ध रहता है।

““संवेगों और भावों को कला में अभिव्यक्त करने का एकमात्र ढंग है- वस्तुनिष्ठ समीकरण की प्राप्ति। दूसरे शब्दों में, वस्तुओं, स्थितियों और घटनाओं की शव खला को इस ढंग से संयोजित करना कि वे विशिष्ट संवेगों से सम्बद्ध होकर अभिव्यक्त हो सके।'” 

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