Recents in Beach

प्रयोजनमूलक हिंदी और साहित्यिक हिंदी में अंतर

 साहित्य का संबंध हमारे जीवनानुभवों और संवेदनों से होता है। उसमें मस्तिष्क और हृदय यानी बुद्धि और भावना, दोनों पक्षों का समावेश तो होता ही है। साथ ही इन दोनों में से किसी एक पर विशेष बल भी हो सकता है। वहाँ भावना की तीव्रता और गहनता होती है। अतः साहित्य की भाषा पर किसी प्रकार का बंधन नहीं होता, वह आम बोलचाल की सी सरल और सहज भी हो सकती है। बिंब और प्रतीक प्रधान अलंकारिक तथा वक्रोक्तिप्रधान भी | उसका यह गुण ही उसे प्रयोजनमूलक भाषा से अलग करता है। इस तरह साहित्यिक हिंदी जहाँ भाव, कल्पना, अनुभूति व्यंजना और वक्रोक्तिपूर्ण होती है वहीं प्रयोजनमूलक हिंदी प्रयोजन सापेक्ष, सीधी और स्पष्ट । सीधी और स्पष्ट होने के लिए जरूरी है कि शब्दों का वही और उतना ही अर्थ निकले जितना अभीष्ट है। जबकि साहित्य की भाषा के एक से अधिक अर्थ निकल सकते हैं, उसकी व्याख्या में पाठ की अपनी कल्पना के इस्तेमाल की संभावना सदैव रहती है और समय-समय पर उसकी व्याख्या भिन्‍न-भिन्‍न कोणों से होती है।

शब्दावली की दृष्टि से भी साहित्य की भाषा में कोई सीमा का बंधन नहीं होता। रचनाकार शब्दों को उनके पारंपरिक अर्थ में प्रयोग करने के साथ ही उन्हें नए-नए अर्थ भी प्रदान कर सकता है लेकिन प्रयोजनमूलक भाषा का लेखक या वक्ता भाषा के साथ ऐसी छूट नहीं लेता। प्रयोजनमूलक क्षेत्रों की शब्दावली पारिभाषिक शब्दावली होती है, जिसमें शब्दों का अर्थ "क्षेत्र विशेष' में निश्चित और परिसीमित होता है।

वाक्यरचना के स्तर पर भी इसी प्रकार का अंतर देखा जा सकता है। साहित्यकार को काफी छूट होती है, वह लातलित्यपूर्ण भाषा प्रयोग कर सकता है लेकिन प्रयोजनमूलक भाषा में ऐसा नहीं होता।

साहित्यकार अपने लेखन में प्रयोजनमूलक शब्दावली को आराम से ग्रहण कर सकता है और करता भी रहा है। आधुनिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञापनों की शब्दावली ने साहित्य की भाषा को बहुत अधिक प्रभावित किया है। ठीक उसी प्रकार जैसे मध्यकालीन हिंदी भक्ति साहित्य को दर्शन की शब्दावली ने प्रभावित किया था। निर्गुण, 'सगुण', 'ब्रह्म', 'जीव 'माया',, 'मुक्ति' आदि इसी प्रकार से आए शब्द थे | ध्यान देने की बात यह है कि साहित्य का यह आदान लगभग एक तरफा होता है क्योंकि प्रयोजनमूलक भाषा साहित्य से इस प्रकार ग्रहण नहीं करती।

संचार माध्यमों तथा विज्ञापन के क्षेत्र चूँकि अन्य विषय क्षेत्रों से भिन्‍न होते हैं - अत: इनमें प्रयुक्त हिंदी में हम जरूर आदान की थोड़ी बहुत प्रवृत्ति पाते हैं और व्यंजनाश्रित प्रयोग भी पाते हैं। लेकिन यह प्रयुक्ति अन्य प्रयुक्तियों से भिन्‍न है। यह संकल्पनाओं और ज्ञान अथवा विषय क्षेत्र पर आधारित न होकर व्यवहार क्षेत्र पर आधारित है।

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close