जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों के रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है। शब्दालंकार के प्रमुख भेद हैं।
जहां केवल शब्दों के दवारा वाक्य की शोभा बढ़ाई जाए वहां शब्दालंकार होता है।
जैसे पके पेड़ पर पका पपीता पका पेड़ या पका पपीता पके पेड़ को पकड़े पिकू पिकू पकड़े पका पपीता इस उदाहरण में वर्ण की आवृत्ति से वाक्य की शोभा बढ़ाई गई है।
शब्दालंकार के भेद- शब्दालंकार के तीन भेद होते हैं
- · अनुप्रास
- · यमक
- · श्लेष
अनुप्रास अलंकार- जहां पर वर्णों की आवृत्ति हो, वहां अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे- चारु चंद्र की कंचन किरणें खेन रही हैं जन थल्र में यहां च वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है। अनुप्रास अलंकार को आगे तीन भागों में बांटा गया है।
छेकानुप्रास- जहां स्वरूप ओर क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृत्ति एक बार हो वहां छेकानुप्रास होता है। जैसे- बंवर्उ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस् अनुरागा यहां पद, पदुम में प द और सुरुचि, सरस् में स्वरूपतः और क्रमतः एक बार आवृत्ति है। अतः छेकानुप्रास है।
वृत्यनुप्रास- जहां एक व्यंजन की आवृत्ति एक या अनेक बार हो वहां वृत्यनुप्रास होता है। रस अनुकूल वर्ण विन्यास को वृत्ति कहते हैं। भिन्न-भिन्न रसों में उनके अनुरूप वर्णों के प्रयोग का निर्देश है। इस प्रकार के वर्णों के प्रयोग से रसों की व्यंजना में बड़ी सहायता मिलती है। जैसे उघचरहिं बिमल बिनोचन ही के मिट॒हिंदोष दुख भव रजनी के
लाटानुप्रास- जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवृत्ति उसी अर्थ में हो पर तात्पर्य या अर्थ में भेद हो तो वहां लाटानुप्रास होता है। जैसे- पंकज तो पंकज म॒गांक भी हैं म॒गांक री प्यारी मित्री न तेरे मुख की उपमा देखी वसुधा सारी/यहां पंकज और मृगांक की आवृत्ति है। पहले पंकज शब्द का साधारण अर्थ कमल है और दूसरे पंकज शब्द का कीचड़। इसी प्रकार मृगांक शब्द का साधारण अर्थ चंद्रमा और दूसरे मृगांक का कलंक युक्त चंद्रमा। इस प्रकार शब्द तथा अर्थ की पुनरुक्ति होने पर भी दोनों के अर्थ में भिन्नता के कारण यह लाटानुप्रास है।
यमक अल्लंकार- जहां एक शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है परंतु उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं, वहां यमक अलंकार होता है। जैसे कनक कनक ते सो गुनी मादकता अधिकाय या पाए बॉयय जग वा पाए बॉयय।| यहां कनक का दो अर्थ है एक सोना और दूसरा धतूरा
श्लेष अलंकार- जब पंक्ति में एक ही शब्द के अनेक अर्थ होते हैं तब वहां श्लेष अलंकार होता है। जैसे चरण धरत चिता करत भावत नींव न थोर सुबरन को दूुंढत फिरे कवि व्यभिचारी चोरा यहां सुबरन का अर्थ कवि के अच्छे शब्द, व्यभिचारी के लिए सुंदर काया ओर चोर के लिए सोना से है।
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