कार्ल मार्वस ने परिकल्पित किया कि अर्थव्यवस्था गुलामी, सामंतवाद और पूंजीवाद के चरणों से गुजरती है। ये चरण वास्तव में, तकनीकी विकास के बाद कृषि से औद्योगिक तक अर्थव्यवस्था के अवस्थांतर का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाद में, डब्ल्यू डब्ल्यू रोस्टो की थीसिस भी इस बात की वकालत करती है कि अर्थव्यवस्था को एक चरण से दूसरे चरण तक ऐतिहासिक विकासवादी अनुक्रम से होकर गुजरना होगा। वॉल्ट डब्ल्यू रोस्टो के विकास के चरणों का सिद्धांत सूचकांक दृष्टिकोण का दूसरा संस्करण है। द स्टोजिस ऑफ इकोनौमिक ग्रोथ: ए नॉन कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो में रोस्टो (1960) ने अविकसित और विकसित विश्व के बीच अंतर में विकास के कुछ मध्यवर्ती चरणों की पहचान की। माना जाता है कि विकास में अत्यधिक गरीब कृषि समाजों से लेकर अत्यधिक औद्योगिक बड़े पैमाने पर खपत वाली अर्थव्यवस्थाओं तक समी अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक विकास के पांच चरणों से गुजर रहीं हैं। ये चरण इस प्रकार है:
i) पारंपरिक समाज वे हैं जहां 'उत्पादन कार्य' सीमित हैं; और प्रति व्यक्ति उत्पादन कम है और विज्ञान और प्रौद्योगिकी की अप्राप्यता के कारण वृद्धि नहीं करता है। यहां परिवार और कबीला समूहीकरण पर जोर दिया जाता है। मूल्य 'भाग्यवादी' और राजनीतिक शक्ति विकेंद्रीत होती है।
ii) दूसरा चरण आर्थिक 'उत्थान' (टेक-ऑफ) के लिए पूर्व-परिस्थितियों के एक समुच्चय का विकास है। यह परिवर्तन संक्रमण का दौर है जिसमें पारंपरिक संस्थाएं बदलने लगती हैं। अर्थव्यवस्था घीरे-घीरे आघुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए तैयार हो जाती है।
iii) उत्यान' (टेक-ऑफ) चरण, जहां स्थिर विकास के लिए पुराने प्रतिरोधों से उबरा जाता हैं और वृद्धि अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति बन जाती है।
iv) 'परिपक्वता अभियान' (ड्राइव टू मैच्योरिटी), जो कि अर्थव्यवस्था के बढ़ते परिष्कार का चरण है अर्थात नए उद्योगों को विकसित किया जाता है, आयात पर निर्मरता कम होती है और निर्यात गतिविधियाँ शुरू होती हैं। लाभ अधिकतमकरण जीवित रहने की आवश्यकता बन जाता है।
v) उच्च व्यापक-उपमोग की अवस्था वह है जहाँ एक समृद्ध आबादी और टिकाऊ व परिष्कृत उपभोक्ता उत्पाद और सेवाएँ हैं। समाज के इस चरण में समी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाता है और सामाजिक कल्याण और सुरक्षा के लिए अधिक संसाघनों का उपयोग किया जाता है। यहाँ एक कल्याणकारी अवस्था का उदय होता है।
उत्थान पूर्व (टेक-ऑफ) चरणों में अर्थव्यवस्थाओं को सहायता दी जानी चाहिए ताकि उन्हें उत्थान टेक-ऑफ) चरण में लाया जा सके । विकास के लिए आवश्यक पूर्व परिस्थिति बचत को बढ़ावा देने और पूंजी उत्पन्न करने, अपने लोगों की प्रबंधकीय और उद्यमशील व कुशाग्रता को विकसित करने और आर्थिक विकास की नई चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थागत और संरचनात्मक सुधार करने के लिए समाज की बढ़ती दक्षता को संदर्भित करती है। अंतर दृष्टिकोण में मुख्य दोष यह है कि यह विकास और अविकसितता के अंतर्राष्ट्रीय ढांचे को ध्यान में नहीं रखता है, अविकसितता की घरेलू संरचना जिसका केवल एक हिस्सा मात्र है।
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