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अश्वघोष की कृतियों की भाषा शैली, वस्तु योजना तथा प्रकृति-चित्रण पर प्रकाश डालें।

अपने व्यक्तित्व के अनुरूप हो महाकवि अश्वघाप ने अपने काव्यों को भाषा शैली, वस्तु योजना, प्रकृति चित्रण आदि सभी दृष्टिकोणों से अतीव सुंदर एवं सफल बनाया है।

कवि अश्वघोष के ग्रंथों की भाषा सुगम और सरल है तथा शैली परिष्कृत एवं विच्छित्तशाली है। उन्होंने अपने काव्यों में अङगो रस शांत रस’ को बनाया है तथा वौर, करुण, श्रृंगार, रौद्र, भयानक आदि रसों का भी सफल चित्रण किया है।

उन्होंने अपने काव्यों में शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित, मालिनी, उन्होंने अपने काव्यों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अनुप्रास, यमक आदि सभी शब्दालंकारों तथा अर्थालंकारों का स्वाभाविक रूप से प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए सौन्दरानन्द’ में उपमा का स्वाभाविक प्रयोग

"तं गौरव बुद्धगतं चकर्ष भार्यानुरागः पुनराचकर्ष
सोऽनिश्चयान्नापि ययौ न तस्थौ तरस्तरंगेष्विव राजहंसः ।।"

अर्थात् “बुद्ध का गौरव नन्द को एक और खींच रहा था और प्रिया का प्रेम दूसरी और लहरों के कारण तैरते हंस की तरह वह न तो जा सका और न ठहर ही सका।”

महाकवि अश्वघोष ने अपने व्यक्तित्व का प्रभाव अपने ग्रंथों के प्रकृति चित्रण पर भी छोड़ा है। ‘सौन्दरनन्द’ के दशम् सर्ग में स्वर्ग दर्शन के प्रसंग में प्रकृति का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया गया है|

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