भारतीय दर्शनों में चार्वाक एवं बौद्ध दर्शन हो ऐसे दर्शन हैं, जो आत्मा की सत्ता को नहीं मानते। बाकी सभी दर्शन आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं।
अन्य सभी दर्शन आत्मा को नित्य एवं चेतन पदार्थ मानते हैं। बौद्ध दर्शन आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं करता, इसलिए बौद्ध दर्शन को अनात्मवादी दर्शन भी कहा जाता है।
विज्ञानवाद की कल्पना भी इसलिए की गयी थी कि आत्मा के कार्यों को पूरा किया जा सके। विज्ञानवाद की कल्पना में यह माना गया है कि यह प्रवाह के समान एक से दूसरे से जुड़ता चला जाता है।
जो दार्शनिक आत्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं, उनका एक सबल पक्ष है- पुनर्जन्म यदि आत्मा का अस्तित्व न हो, तो वह नित्य भी नहीं हो सकती, जिसके कारण जन्म-मरण में पड़कर दुख भोगना तथा मोक्ष प्राप्त करके सब बन्धनों से छुटकारा पाना भी संभव नहीं होगा।
इस प्रकार के प्रश्नों की उत्पत्ति होने पर आचार्य धर्मकीर्ति कहते हैं “दुख के उत्पन्न होने का कारण है कर्म-रूपी बंधन। जो नित्य है, वह निष्क्रिय भी है। जो अनित्य है, उसे क्षणिक नहीं कहा जा सकता, इसलिए वह किसी चीज का कारण नहीं हो सकता। नित्य वह है, जो कभी नष्ट नहीं होता।
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