विचारधारा के रूप में उदारवाद – उदारवाद ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए एक विशेष परिप्रेक्ष्य प्रदान किया है। इसने एक ऐसी विचारधारा प्रस्तुत की है, जिसने इतिहास को स्वरूप प्रदान किया है और वर्तमान में मानव के भविष्य को प्रभावित करने के लिए नव-उदारवाद को जन्म दिया। उदारवाद दो शताब्दियों से समाजवादी आदर्श का विरोध कर रहा है। यह हमें समाज, स्वतन्त्रता और आर्थिक उद्यमिता के | क्षेत्र में स्वतंत्र प्रतियोगिता, उत्पादन को नियन्त्रित करने एवं स्वतंत्र नागरिकता को बढ़ावा देने में राज्य की भूमिका के बारे में विशेष दृष्टि प्रदान करता है।
एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद ने राजनीतिक निरंकुशता के किसी भी रूप का विरोध किया है, चाहे वह राजतंत्र हो, सैन्यवाद हो या साम्यवाद हो। उदारवादी विचारधारा की शाखाएँ -आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में विचारों की उदारवादी शाखा अखंडित नहीं है, बल्कि इसमें उदारवादी विचारों की भिन्न-भिन्न शाखाएं हैं, जिनमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम राज्य का उदारवाद को प्रभावित करने वाले प्रमुख सिद्धान्त – उदारवाद विभिन्न सिद्धान्तों का संगम रहा है, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और बुनियादी अधिकारों की रक्षा; प्रतिनिधि सरकार; शक्ति पृथक्करण, राज्य की सीमिति भूमिका, तार्किक व्यक्तिवाद और पूँजीवादी बाजार अर्थव्यवस्था शामिल हैं।
कुछ उदारवादी आर्थिक स्वतंत्रता पर अधिक जोर देते हैं और नैतिक जीवन में सरकार के अत्यधिक हस्तक्षेप को स्वीकार करते हैं। कुछ विद्वान जीवन के विभिन्न कार्यों के राज्य के न्यूनतम हस्तक्षेप की विचारधारा में विश्वास रखते हैं। नोजिक राज्य की भूमिका को केवल नागरिकों की ‘संरक्षक एजेंसी’ तक सीमित करने के पक्ष में थे। हेक (1944, 1982) का मानना था कि सरकार की भूमिका व्यवस्था बनाए रखने और ऐसी जन-सुविधाएँ/सेवाएँ उपलब्ध कराना है, जिसमें शुरू में अधिक पूँजी-निवेश की आवश्यकता हो।
प्रायः उदारवादी मान्यताएँ समाजवाद और संरक्षणवाद की मान्यताओं से मेल नहीं खाती हैं। टॉम पेनी (Tom Paine) का चरम उदारवाद, अर्थव्यवस्था में सरकार के न्यूनतम हस्तक्षेप की विचारधारा पर आधारित था। उदारवाद, पूँजीवादी विश्व की प्रगति से सम्बद्ध रहा है। इसके समर्थक आर्थिक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए व्यक्ति की क्षमता को प्रतिबन्ध से मुक्त रखने के पक्षधर हैं।
उदारवादी राज्य का क्रम-विकास – उन्नीसवीं शताब्दी में इग्लैंड में वाणिज्यिक हितों ने राज्य की शक्तियों को सीमित करने और ऐसे प्रतिमान स्थापित करने का प्रयास किया, जिसमें व्यावसायिक गतिविधियाँ अबाध्य रहें। उदारवादी राज्य इस अवस्था में अहस्तक्षेप राज्य नहीं था, बल्कि ऐसा राज्य था, जिसमें व्यक्तिगत रूप से सम्पत्ति एकत्र करने के लिए परिस्थितियों का सृजन करने और उन्हें बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। पूँजीवाद के विस्तार ने राज्य की आर्थिक गतिविधियों से सम्बन्धित पहले से चली आ रही वाणिज्यवादी संकल्पना और व्यापार पर राजनीतिक नियंत्रण को कम करने का प्रयास किया।
इसके स्थान पर आर्थिक मामलों पर जनता के कार्यों में मुख्यतः कानूनी, वित्तीय, और मौद्रिक कामों के साथ-साथ, पूँजी और श्रम बाजार द्वारा निर्मित आवंटन-कार्यनीति के स्वायत्त स्वनिगमित संचालन के लिए वित्तीय ढांचागत कार्य शामिल थे। इस प्रकार उदारवादी राज्य ने अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान औपचारिक उदारवादी अधिकारों के विस्तार ने गहरी होती सामाजिक असमानताओं के सहयोजन के साथ समानता के प्रश्न पर चर्चा को अधिक बल दिया।
सामाजिक असमानता का समाधान – उदारवादी विचारक यह स्वीकार नहीं करते थे कि असमानता समाज में अंतर्निहित होती है बल्कि वे इसे समाज द्वारा निर्मित मानते थे। व्यक्ति स्वतन्त्र और समान रूप से जन्म लेता है, इसलिए राज्य को उनकी सहमति से चलाया जाना चाहिये जिनके अधिकार से राज्य बनता है। उदारवादी समाजवादी समानतावाद के प्रति अरुचि रखते हैं।
कल्याणकारी राज्य – उदारवादी अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका ने अंग्रेजी अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड केन्स की प्रभावी रचनाओं के बाद नया रूप ग्रहण किया। केन्स ने तर्क दिया कि समाज इस व्यापक मांग और राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप से पूर्ण रोजगार की अवस्था को प्राप्त कर सकता है। केन्सवादी अर्थव्यवस्था ने राज्य को मांग का प्रबन्ध करने और बड़े पैमाने पर उपयोग सुनिश्चित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा। इस ‘नई संकल्पना’ को नये कल्याणकारी राज्यों ने व्यवहार में अपनाया।
नव उदारवाद का उद्गम – प्रतिष्ठित नव-उदारवादी, उदारवादी थे और व्यक्ति के ऐसे अधिकारों के प्रबल समर्थक थे जो कभी-कभी कठोर राज्य का विरोध करते थे। इसके प्रमुख संरक्षकों में मिल्टन, फ्रायडमैन, फ्रेडरिक हायक और रॉबर्ट नोजिक शामिल हैं।
समाजविज्ञानी विकास के नव-उदारवादी चरण के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति चिंतित हैं। कैसेल का तर्क है कि पूँजीवादी वृद्धि के नये युग में ध्यान औद्योगिकीकरण से सूचना और ज्ञान के नेटवर्क की तरफ चला जाएगा। नव-उदारवादी विकास की समालोचना को आगे बढ़ाते हुए किचिंग ने कहा कि “विकास एक डरावनी प्रक्रिया है।” कोबेन और शेंटन के लिए विकास का अर्थ है “प्रगति की अव्यवस्थित कमियों में सुधार करना।” __
उदारवादी संदर्भ की समालोचना – उदारवादी उपागम ने श्रम-नियंत्रण की व्यापक व्यवस्था की, जिसमें थोड़ा-बहुत दमनकारी अभ्यास, सह-विकल्प और सहयोग शामिल हैं, जिन सबको न केवल कार्य-स्थल पर बल्कि पूरे समाज में भी संगठित होना होगा। आधुनिक उदारवादी राज्य के कार्य की समालोचना में मिखाइल फॉकल्ट ने तर्क दिया है कि शासन करने का अर्थ अब ऐसी विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्पादन करना, सहायता देना और काम करना है जिसे इसे प्रभुत्वशाली व्यवस्था में सरकार की संस्थाओं के बाहर देखा जा सकता है।
फॉकल्ट के अनुसार उदारवाद को अतिवादी सरकार की समालोचना के रूप में समझा जा सकता है। लेकिन, इसे न केवल पूर्ववर्ती सरकार की समालोचना के रूप में अर्थात् पुलिस और राज्य के कार्यकरण के रूप में देखा जा सकता है, बल्कि बायो-राजनीतिक सरकार के विद्यमान और सम्भावित रूप में भी देखा जा सकता है। इस प्रकार उदारवाद सरकार के ऐसे अन्य सम्भावित रूपों की आलोचना करता है जिन्हें जीवन प्रक्रिया में अपनाया जा सकता है। फॉकल्ट के अनुसार उदारवाद सुरक्षा की आवश्यकता को महसूस करता था और इसने सुरक्षा की व्यवस्था को उचित स्थान दिया, जिसका कार्य प्राकृतिक घटनाओं, आर्थिक प्रक्रियाओं, आबादी की अंतर्निहित समस्याओं से सुरक्षा प्रदान करना सरकार का आदर्श उद्देश्य है।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box