निवारण तभी संभव है, जब विकास योजना प्रक्रिया में न्यूनीकरण मुद्दों का समावेश किया जाए। प्राकृतिक जोखिमों से होने वाली आपदाएँ, जैसे-बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूकम्प, आग और ज्यादातर अन्य खतरे विभिन्न प्रकार से विकास को प्रभावित करती हैं। आपदाएँ बुनियादी संरचनाओं और जीवनदायी एवं प्रमुख सुविधाओं को नुकसान पहुंचाती हैं, जिसके फलस्वरूप मानवीय, आर्थिक और पर्यावरणीय हानियां होती हैं। आपदा निवारण के कुछ उद्धरण जो अनेक स्रोतों लिए गए हैं, इस प्रकार है -
1) चीन में 40 वर्षों के दौरान बाढ़ रोकथाम के उपायों में किए गए 3.15 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश से माना जाता है कि 12 बिलियन अमरीकी डॉलर का संभावित नुकसान रोका जा सका।
2) ऑक्सफैम के अनुसार 1998 की बाढ़ के दौरान बंगलादेश में 4 एकड़ के क्षेत्र में बने बाढ़ आश्रय में बचाए गए पशुओं का मूल्य कम-से-कम 150,000 डॉलर था, जबकि आश्रय निर्माण पर 8.650 डॉलर का खर्च आया।
3) वियतनाम में रेडक्रॉस द्वारा 12 हजार हैक्टेयर भूमि में कच्छ वनस्पति लगाने से 110 किमी. समुद्री बाँध की रक्षा की जा सकी। जबकि वनस्पति लगाने और उसकी सुरक्षा पर खर्च लगभग 11 लाख अमरीकी डॉलर हुआ, लेकिन बाँध की देखरेख पर खर्च में प्रतिवर्ष लगभग 73 लाख अमरीकी डॉलर की कमी आई और कच्छ वनस्पति ने बाँध के पीछे रहने वाले 7,750 परिवारों की रक्षा की है।
आपदा और विकास के बीच संबंधों पर विचार करने के बाद इस संबंध में अलग-अलग चार आयामों की पहचान कर सकते हैं
आपदाएँ विकास में रुकावट डाल सकती है :– आपदाएँ दशकों के आर्थिक और सामाजिक विकास को समाप्त कर सकती हैं, जो बहुत समय के बाद मिल पाते हैं। वर्ष 1982 में झंझावत आइजैक ने टोगान द्वीपसमूह (आर्किपेलागो) में 22 प्रतिशत घरों को नज़्ट कर दिया। वर्ष 2000 में मोजाम्बिक के जल प्लानन से जिल और सफाई ऊजा, दूरसंचार सड़की और रेलवे की बुनियादी संरचना भी हुए नुकसान में सुधार करने की विनिर्माण लागत 16.53 करोड़ अमरीकी डॉलर आई थी। वियतनाम में सामान्य वर्षों में आप्लावन औसतन 3,00,000 टन खाद्य पदार्थ नष्ट कर देता है।
इसके अलावा आपदा पुनरुत्थान के लिए अनियोजित बजट आवंटन विकास हस्तक्षेपों को बाधित कर सकता है और परिणामतः विकास लक्ष्य पूरे नहीं होते हैं। इसलिए आपदाएं विकास संसाधन आवंटन की प्रभावशीलता में बाधा डालती हैं। आपदाओं द्वारा आमतौर पर प्रभावित देशों को मानव पूंजी की कमी के कारण पैदा हुई परेशानियों का मुकाबला करना पड़ता है, क्योंकि भारी मात्रा में लोग प्रभावित होते हैं और नेमी कार्यों को निर्वहन नहीं कर पाते। आपदाएँ नए निवेश की उपलब्धता घटाती हैं, इससे क्षेत्र का विकास और संकुचित हो जाता है। आपदाएं सामाजिक विकास को सीमित कर सकती हैं, जो आबादी प्राकृतिक आपदा द्वारा कमजोर और कम कर दी गई है,
विशेष रूप से जब एच.आई.वी./एड्स, कुपोषण अथवा सशस्त्र संघर्ष होता है, ऐसे में सिंचाई कार्यों की देखरेख में, जल संचयन के लिए खेतों में पुश्तों के निर्माण आदि के लिए संगठनात्मक शक्ति कम ही होगी। इन सामाजिक परिसम्पत्तियों के बिना समुदाय ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। आपदाएँ विभिन्न मैक्रोइकोनॉमिक प्रक्रियाओं के माध्यम से गरीबी कई गुना बढ़ा देती हैं। इनमें कम समय हानियों, जैसे-परिसम्पत्ति की हानियों के बाद ज्यादा तीव्र दीर्घकालिक प्रभाव, सामाजिक खर्च में कमी और आपदा के बाद की मुद्रा स्फीति से विशेष रूप से बाढ़ अथवा सूखे के बाद खाद्यान्नों की कीमतों पर पड़ते हैं।
जिम्बाब्वे में वर्ष 1991-92 के सूखे के कारण 1992 के अंत तक मुद्रा स्फीति बढ़कर 46 प्रतिशत हो गई और खाद्यान्न कीमतों में स्फीति 72 प्रतिशत तक पहुंच गई। यह विकास में मंदी का कुचक़ शुरू कर देता है, |जिससे आय में कमी होती है, जो गरीबों को अनुपात से ज्यादा प्रभावित करता है।
आपदाएँ विकास के अवसर प्रदान कर सकती हैं – आपदा घटनाएँ सदैव विकास को आपदा के तत्काल बाद बढ़ावा देती हैं। वे घटना के बाद की अवधि में विकास नीति को प्रेरणा प्रदान करती हैं। आपदा की संभावना के कारण ज्यादातर पुनर्निर्माण और सामाजिक विकास योजनाएं शुरू की जाती हैं, जिन पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। पुनरुत्थान स्थिति विकास योजना के लिए प्रमुख अवसर प्रदान करती है।
भारत सरकार के अनुरोध पर एशियाई विकास बैंक, संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व बैंक ने साथ मिलकर एक संयुक्त आकलन मिशन स्थापित किया, जिसके तहत अलग-अलग विधाओं और सुसंबद्ध व्यवसायों से विशेषज्ञ लेकर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल तथा पाण्डिचेरी में सूनामी से हुई हानि का आकलन करने तथा क्षेत्र के सर्वेक्षणों के आधार पर पुनरुत्थान के लिए उचित सिफारिशें करने का अनुरोध किया गया था।
संयुक्त आकलन मिशन ने सिफारिश की कि आपदा के प्रभाव पर विचार करते हुए पुनर्निर्माण में प्रशासनिक परिप्रेक्ष्य सहयोगशील, लोचशील, विकेन्द्रीकृत, साम्यमूलक और पारदर्शी होना चाहिए और इसे आजीविका पुनर्स्थापन के अलावा अच्छे तटीय और जोखिम प्रबंधन के लिए वास्तविक अल्पकालिक और मध्यकालिक लक्ष्यों के माध्यम से सशक्त नीति अपनानी चाहिए। ज्यादातर राहत सहायता पर ज्यादा ध्यान दिए जाने के कारण विकास अवसरों से समझौता करना पड़ता है, जो लोगों की आजादी में रुकावट पैदा करता है और उद्यमशील प्रयासों को रोक देता है।
विकास संवेदनशीलता बढ़ा सकता है – सामाजिक और आर्थिक विकास समुदायों की आपदा जोखिमों के प्रति संवेदशीलता बढ़ा सकता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो आर्थिक विकास आपदा जोखिमों को बढ़ाते हैं। बंगलादेश और वियतनाम में झींगा पालन के लिए रक्षात्मक मैंग्रोव के कटाव से आंधी और प्रदूषण के कारण हानि में वृद्धि हुई है। पहाड़ी ढलानों पर व्यापक निर्वनीकरण ने भूस्खलन की संवेदनशीलता बढ़ाई यह कल्पना करना जटिल कार्य है कि सामाजिक विकास में बढ़ोतरी आपदाओं के खतरों को बढ़ा सकती है।
ऐसी स्थिति जो वास्तविक रूप से सामाजिक विकास को जोखिम के आकस्मिक कारक के रूप में रखती है, वह केवल वहीं संभव हो सकती है। जहां लोग अपनी जरूरतों और इच्छाओं को पूर्ति के लिए स्वयं को अथवा अन्य को खतरों से अरक्षित रखने के लिए विवश होते है। प्राकृतिक आपदाओं में और संवेदनशीलता में भयानक वृद्धि से विश्व समुदाय इसका सामना करने के लिए अपने प्रयासों को मजबूत कर रहे हैं। हमेशा शिक्षा और सूचना को सुलभता के अभाव का संवेदनशीलता के लिए ज्यादा विस्तृत प्रभाव होता है, क्योंकि लोगों को संवेदनशीलता अल्पीकरण के लिए उपलब्ध विकल्पों की जानकारी नहीं होती।
विकास संवेदनशीलता को कम कर सकता है – यदि विकास संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए एजेंट के रूप में कार्य कर सकता है तो यह कभी-कभी लोगों की संवेदनशीलता कम भी कर सकता है। आपदा जोखिम बढ़ाए बिना आर्थिक विकास के लिए विकास योजना के कुछ संभावित परस्पर विरोधी चालकों का निवारण करना जरूरी होता है। प्रथम, ऐसी सम्पत्ति का उत्पादन जो मानव विकास के मूलभूत स्तर को ऊपर उठा सके और द्वितीय, सम्पत्ति का वितरण जो सबसे ज्यादा गरीब को मानवीय संवेदनशीलता का सामना करने के लिए सक्षम बना सके।
आर्थिक विकास के अतिरिक्त सामाजिक विकास भी विकास कार्यसूची में सुनिश्चित आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए शासन पद्धतियों को सुव्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आपदा जोखिम कम करने के लिए शासन व्यवस्था को उनके प्रति संवेदनशील होना जरूरी है, जो जोखिम में और संपूर्ण उपायों के साथ समय पर मदद सुलभ कर सकते हैं। सामाजिक विकास में जागरूकता/शिक्षा और स्वास्थ्य भी शामिल होंगे। आपदा घटना के बाद बेहतर पोषित ज्यादा स्वस्थ आबादी, जिसमें बच्चों का टीकाकरण भी सम्मिलित है, घरों, आश्रय और आपदा द्वारा विस्थापितों के लिए स्थापित शिविरों में अच्छे तरीके से कार्य कर सकते हैं।
भूमंडलीकरण का प्रभाव – अधिकतर विकासशील देशों में विकास तीव्रता से हुआ है, हालांकि यह प्रमुखतः वैश्वीकरण के कारण माना जाता है, क्योंकि पर्यटन बहुत बढ़ गया है और इसके फलस्वरूप बुनियादी संरचना का विकास हुआ है। इसके अलावा अधिकतर लोग इतने समृद्ध हैं कि मनोरंजन के लिए यात्राओं पर खर्च करना उनकी शीर्षतम प्राथमिकता है, जो उन्हें अप्रत्याशित महाविनाश के लिए संवेदनशील बनाती है।
इसने भी आकर्षक पर्यटन स्थानों में ज्यादा निर्माण कार्यों को बढ़ावा दिया है। इसके बावजूद भी यह कहा जा सकता है कि देशों के बीच बढ़ी हुई यात्रा और देशों के बीच मुक्त व्यापार के कारण विकासशील देशों को आर्थिक लाभ हुए हैं, जहां रोजगार के अवसर अर्थव्यवस्था में आई व्यवसायों की वृद्धि के अनुसार बढ़े हैं।
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