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सांवेगिक बुद्धि के संप्रत्यय और सांवेगिक बुद्धि के मॉडलों की व्याख्या कीजिए।

 Salovey और Mayer (1990) ने सांवेगिक बुद्धि की व्याख्या “स्वयं और अन्यों के संवेगों को समझने, उसमे भेद करने और इस सूचना के आधार पर अपनी सोच और प्रतिक्रिया को तय करने की योग्यता है”। यह सांवेगिक और संवेग सन्देश के कारणों को समझने की क्षमता है जो सोचने की शक्ति को प्रबल करती है। जैसे IQ, बुद्धि को दर्शाने के लिए प्रयोग होता है, सांवेगिक लब्धि (Emotional Quotient) सांवेगिक बुद्धि की अभिव्यक्ति है। Salovey और Mayer के अनुसार उच्च EQ वाले व्यक्ति विभिन्‍न संवेगों सम्बन्धित समस्याओं को सही ढंग से और शीघ्रता से हल कर पाते हैं। उदाहरण के लिए उच्च सांवेगिक बुद्धि वाले व्यक्ति चेहरे क भावों को सही ढंग से पहचान लेते हैं और उन भावों के अर्थ को भी समझ पाते हैं।

   सांवेगिक बुद्धि को अक्सर अपनी संवेगों की जागरूकता, नियन्त्रण और व्यक्त करने की क्षमता और अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों की समानुभूति के रूप में व्याख्या की गई है। इसमें सामान्यतः सांवेगिक जागरूकता, संवेगों को उपयोगी रूप से सोचने और समस्या-समाधान के कार्यों के लिए और संवेगों का प्रबन्धन और संचालन करने की योग्यता है। साधारण शब्दों में सांवेगिक बुद्धि, व्यक्ति द्वारा अपनी और अन्यों के संवेगों की पहचान करने की क्षमता है, विभिन्‍न प्रकार की संवेगों की पहचान कर उन्हें अंकित (1192) करना, संवेगी सूचनाओं का प्रयोग कर सोच और व्यवहार का निदेशन और संवेगों का प्रबन्धन और अथवा समायोजन कर अपने पर्यावरण के अनुकूलन अथवा अपने लक्ष्य की प्राप्ति है।

सांवेगिक बुद्धि के मॉडल / प्रतिमान

सांवेगिक बुद्धि के विभिन्‍न वैज्ञानिक उपागम हैं। इन्हें योग्यता प्रतिमान, विशषेक प्रतिमान तथा मिश्रित प्रतिमान के रूप में जाना जाता है।

योग्यता ग्रतिम्रान के अनुसार सांवेगिक बुद्धि एक मानक बुद्धि हैं। उनका मत था कि सांवेगिक बुद्धि की संरचना बुद्धि के पारस्परिक मानदण्ड के अनुसार होती है। जो इस प्रतिमान का प्रयोग करते है वे सांवेगिक बुद्धि का मापन, मानसिक योग्यता के साथ क्रियात्मकता का मूल्यांकन करते हैं। जिसमें सही उत्तर का मानदण्ड होता है (अर्थात अच्छे और खराब उतर निर्धारित करने के लिए अंक, जटिल नियमों की प्रणाली का प्रयोग करके किया जाता है)।

विशिष्टता ग्रतिमान में व्यवहार सम्बन्धित स्ववृत्ति और स्वयं अनुभूति की योग्यताएं सम्मिलित हैं और जिन्हें मापने के लिए स्वयं विवरणी प्रश्नावली का प्रयोग किया जाता है।

मिश्रित ग्रतिमान में योग्यता की संकल्पना और ष्यक्तित्व की विशिष्टताओं जैसे आशावाद, आत्म-सम्मान तथा सांवेगिक आत्म प्रभावकारिता मिश्रित होते हैं। शोधकर्ता इस मिश्रित दृष्टिकोण द्वारा सांवेगिक बुद्धि के मापन के लिए स्वयं-विवरणी साधनों का प्रयोग करते हैं ना कि प्रदर्शन मूल्यांकन द्वारा। उदाहरण स्वरूप लोगों को यह प्रदर्शित करने के लिये कहने के बजाए कि वे एक भावनात्मक अभिव्यक्ति को सही रूप में कैसे प्रदर्शन करेगें, स्वय-विवरणी उपाय में दूसरे व्यक्तियों का आंकना और रिपोर्ट करना होता है कि वह किस प्रकार दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को सही रूप में समझते हैं।

 

Mayer और Salovey के सांवेगिक बुद्धि का प्रतिमान

यह योग्यता आधारित प्रतिमान, संवेगों को सूचना के स्त्रोत के रूप में उपयोगी मानता है जो सामाजिक पर्यावरण को समझने और मार्ग दर्शन करने का काम करता है। इस प्रतिमान के अनुसार सांवेगिक बुद्धि में चार प्रकार की योग्यताएं होती हैं:

i) संवेगों का प्रत्यक्षीकरण: इसमें अपने और दूसरों के संवेगों को पहचानने और उनमें अंतर करने की योग्यता होती है। इस योग्यता का मूल पहलू संवेगों के भौतिक स्वरूप और सोच को सही रूप में पहचानना (जिसमें शारीरिक अभिव्यक्ति भी शामिल है)। इस योग्यता से दूसरे व्यक्ति के संवेगों को पहचानना, चित्र, वाणी तथा सांस्कृतिक षिल्पकृतियों की संवेगों को खोजना और अर्थ निकालना है।

ii) संबवेगों द्वारा चिन्तन की सुगमता: इसका अर्थ है कि संवेगों के प्रयोग द्वारा संझानात्मक क्रियाओं जैसे तर्क-वितर्क, समस्या हल, तथा अन्तर्वेयक्तिक संचारण को सुगम बनाना है। इसमें संवेगों को उत्पन्न करके निर्णय लेने और स्मरण प्रक्रियाओं को सहायता देने का कौशल सम्मिलित है। इसमें संवेगी स्वरूप को उत्पन्न करने की योग्यता भी सम्मिलित है जिससे विभिन्‍न प्रकार की चिन्तनशैली का विकास होता है।

iii) संवेगों को समझना और विश्लेषण करना: इसमें भाषा और संवेगों के अर्थ को समझने की योग्यता और संवेगों के पूर्ववृत्ता को समझना भी शामिल हैं। संवेगों को सही भाषा में अंकित करना और संवेगों की समानता और असमानता को पहचानने का कौशल शामिल है। संवेगों के स्त्रोतों को जानना, संवेगों के बीच संक्रमण की पहचान और विभिन्‍न संवेगों के सम्मिश्रण को समझना, इस योग्यता के भाग हैं।

iv) संवेगों का चिन्तनशील नियमनः: इसमें अपने एवं अन्यों की संवेगी प्रतिक्रिया का नियमन एवं सुधार की योग्यता शामिल है। इसमें किसी परिस्थिति में संवेग की उपयुक्तता और उसकी उपयोगिता का निर्णय लेते हुए विभिन्‍न संवेगों को अनुभव करने की योग्यता शामिल है। अपनी और अन्यों के संवेगों की निगरानी और चिन्तनशीलता, अधिक जटिल समस्या समाधान की योग्यता को दर्शाता है।

Golemean की सांवेगिक बुद्धि का सिद्धान्त

Golemean ने Mayer और Salovey के प्रतिमान को विस्तृत कर सांवेगिक बुद्धि में निम्न पांच अनिवार्य भागों को सम्मिलित किया:

i) आत्म: जायरुकता यह स्वयं के मनोदशा, संवेगों, एवं प्रेरकों और इनके अन्य व्यक्तियों पर पड़ने वाले प्रभारों को पहचानने और समझने की योग्यता है। आत्म जागरूक व्यक्ति अपनी शक्तियों और कमियों को समझते हैं और उनके चाल-चलन का दूसरों पर क्‍या प्रभाव पड़ता है उसको भी समझते हैं।

ii) आत्म-नियन्त्रण इसमें किसी के विधघटनकारी आवेगों और संवेगों को नियंत्रित करना और पुर्ननिर्दिषित करना शामिल है। इसमें कुछ भी करने से पहले सोचने की दक्षता भी शामिल है। एक आत्म-नियत्रित व्यक्ति अपने संवेगों को व्यक्त करते हुए नियंत्रण रखने की योग्यता रखता है।

iii) अभिपष्रेरणा यह व्यक्ति को कुछ पाने के लिए प्रेरित करता है। यह लक्ष्यों को ऊर्जा और व्यक्ति स्वयं प्रेरित होते हैं और उनमें आंतरिक प्रेरणा होती है और वह बाहय शक्तियों जैसे धन या पद-प्रतिष्ठा से प्रभावित नहीं होते।

iv) समानुश्ृत्ति यह अन्यों की भावनाओं को समझने और उनकी भावनाओं को महसूस करने की योग्यता है। हमें अन्य व्यक्तियों की सांवेगिक प्रतिक्रियों के अनुसार उनके साथ बर्ताव करना चाहिए। एक समानुभूति रखने वाले व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों से सौहार्द स्थापित करने और उनकी चिन्ताओं को ईमानदारी से निवारण करने की योग्यता है।

v) सामाजिक कौशल यह सम्बन्धों को निभाने और सामाजिक सम्पर्क स्थापित करने में सहायक होता है। यह दूसरों को प्ररेणा देने और विशेष परिस्थितियों में अन्यों से इच्छित प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित करने की योग्यता है। यह अन्यों से सौहार्वपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने और उनका विश्वास जीतने में सहायक है।

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