किसी छान-बीन से संबंधित कोई पड़ताल करने के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग केन्द्रीय या राज्य सरकार की स्वीकृति से किसी भी अधिकारी या जौंच अभिकरण की सेवाओं का उपयोग कर सकता है। अधिकारी या जौंच अभिकरण:
क) किसी व्यक्ति को बुला सकता है उसको उपस्थिति होने के लिए कह सकता है और उसकी छान-बीन कर सकता है;
ख) किसी दस्तावेज की तलाश और उपलब्धि को आवश्यक बता सकता है; और
ग) किसी भी कार्यालय से सार्वजनिक अभिलेख या प्रति की माँग कर सकता है।
किसी छान-बीन करने वाले अधिकारी या अभिकरण के समक्ष किसी व्यक्ति द्वारा कही गई बातें (दिए गए बयान) किसी भी दीवानी या आपराधिक न्यायालय में झूठे साक्ष्य देने के लिए अभियोग चलाने को छोड़कर उसके विरुद्ध इस्तेमाल नहीं की जा सकती।
किसी मामले में छान-बीन करने वाले अधिकारी या अभिकरण को इस कार्य के लिए आयोग द्वारा निर्धारित अवधि में आयोग को रिपोर्ट देनी होती है। इसके बाद आयोग वर्णित तथ्यों की शुद्धता और प्रस्तुत रिपोर्ट, तथा यदि कोई निष्कर्ष हैं तो उसके बारे में स्वयं को संतुष्ट करना पड़ता है। इस कार्य के लिए यदि अधिकारी उपयुक्त समझता है तो आगे और छान-बीन करवा सकता है (धारा 14)।
आयोग के समक्ष साक्ष्य देने के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा दिया गया बयान उसके विरुद्ध इस्तेमाल नहीं किया जा सकता या ऐसे बयान में झूठे साक्ष्य देने के लिए उस पर अभियोग चलाने को छोड़कर किसी दीवानी या आपराधिक मुकदमे में उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। इसमें शर्तें यह है कि बयानः
क) आयोग द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में दिया गया हो; या
ख) छानबीन की विषयवस्तु से संबंधित हो (धारा 15)।
यदि जाँच की किसी अवस्था में आयोग किसी व्यक्ति की छान-बीन करते समय यह आवश्यक समझे या उसका यह विचार हो कि छान-बीन में किसी व्यक्ति की छवि पूर्वाग्रह से प्रभावित होने की संभावना है तो आयोग उस व्यक्ति को छान-बीन के समय सुनने और अपनी कक्षा में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान कर सकता है। यह प्रावधान वहाँ पर लागू नहीं होगा जहाँ गवाह के साक्ष्य पर अभियोग चलाया जा रहा हो।
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