आतंकवाद के विभिन्न कारणों तथा प्रकृति की चर्चा से यह साफ है कि सभी प्रकार के आतंकवाद में तीन तत्व समान हैं : (i) एक शिकायत जिसके विरुद्ध आतंकवादी प्रदर्शन कर रहे हैं तथा जिसका वे हल चाहते हैं; (ii) एक विचारधारा अथवा विश्वास जो इस शिकायत की पहचान है तथा इसकी व्याख्या करती है, तथा इसके बारे में क्या किया जाना चाहिए, (iii) एक ऐसा विश्वास कि आतंकवाद इस समस्या के हल में सहायता कर सकता है। परन्तु अब यह स्पष्ट है कि कारण कोई भी हो, चाहे इसका प्रयोग व्यक्ति करें, समूह अथवा राज्य, आतंकवाद प्रजातंत्र तथा सभ्य व्यवहार की पूर्ण नकारात्मकत! है। यह व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के विरुद्ध क्रूर हिंसा है। आतंकवादी केवल राज्य की भेद्द वस्तुओं के लिए ही नहीं - जैसे प्रतिष्ठापित सुविधाएँ अथवा व्यवस्थाएँ - बल्कि समाज की संस्थाओं के लिए भी खतरा है।
इस पर भी सर्वसहमति है कि आतंकवादी कृत्य तथा तरीके संवैधानिक व्यवस्था, राज्य की राष्ट्रीय अखण्डता तथा सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकते हैं। इस तरह यह भी स्वाभाविक है कि. यह आम जनता के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के लिए भी खतरे का संकेत है। आतंकवादी कृत्य तथा तरीके पीड़ित व्यक्तियों के मानव अधिकारों का ही दुरुपयोग नहीं करते, वे राज्य को भी उत्तेजित करते हैं जिसे सुरक्षा के नाम पर मानव अधिकार तथा मूल स्वतंत्रताओं का उल्लंघन करने का बहाना मिल जाता है। अतः आतंकवाद तथा मानव अधिकार उल्लंघनों के बीच एक अपरिहार्य संबंध बन जाता है। आतंकवाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा रचित मानव अधिकारों की धारणा तथा व्यक्ति के जीवन तथा प्रतिष्ठा के लिए एक स्पष्ट खतरा है।
कालोपी के. काऊफा ने संयुक्त राष्ट्र की मानव अधिकार उपसमिति के लिए तैयार किए गए एक कार्यकारी लेख में लिखा है कि आतंकवाद के मानव अधिकारआयाम पर विचार करते समय केवल पीड़ितों की संख्या को ही नहीं बल्कि पीडितों, समाज तथा राज्य पर इसके प्रभाव को भी ध्यान रखना आवश्यक है। आतंकवादी हिंसा का उद्देश्य मानव अधिकारों को नष्ट करना, लोगों के दिमाग में डर पैदा करना तथा ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करना है जो वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के विनाश के अनुकूल हो। आम मासूम लोगों की हत्या, सम्पत्ति को बरबाद करना तथा आतंक एवं खतरे का वातावरण बनाना - ये केवल पीड़ितों के मानव अधिकारों क़ा ही उल्लंघन नहीं करते बल्कि राज्य की सत्ता द्वारा और अधिकार गंभीर उल्लंघनों को दावत देते हैं। राज्य जिसका कर्त्तव्य आतंकवादी हिंसा को समाप्त करना है, को आतंकवाद विरोधी कदम उठाने का अधिकार है तथा इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह सामान्य अपराधों की रोकथाम के लिए उठाए जाने वाले उपायों की सामान्य सीमाओं से बंधा रहे। अतः इस बात का पूरा खतरा है कि आतंकवाद के खतरे को देखते हुए राज्य सक्रियता दिखाएगा तथा केवल मानव अधिकारों के ही नहीं बल्कि समाज के अन्य अधिकारों के दमन और उल्लंघन करने से नहीं हिचकिचाएगा। अर्थात् आतंकवादियों को दूढ़ने, पकड़ने तथा सजा देने की प्रक्रियाएँ समाज के अन्य लोगों के अधिकार एवं स्वतंत्रताओं में भी कमी ला सकती हैं।
मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त कार्यालय द्वारा जारी किए गए तथ्यपत्र में मानव अधिकार आतंकवाद तथा आतंकवाद विरोध में यह स्पंष्ट किया गया है:
आतंकवाद का उद्देश्य मानव अधिकार, प्रजातंत्र तथा कानून के स्वरूप को ही नष्ट करना है। यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर तथा इसके अन्य अन्तर्राष्ट्रीय प्रापत्रों के केन्द्रीमूत तत्वों पर ही प्रहार करता है जैसे : मानव अधिकारों के प्रति सम्मान, कानून का शासन, सशस्त्र संघर्षों को नियमित करने वाले नियम, तथा नागरिकों की सुरक्षा, लोगों तथा राष्ट्रों में परस्पर सहनशीलता, तथा संघर्षों का शांतिपूर्ण हंल।
कई मानव अधिकारों के उपभोग पर आतंकवाद का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है, विशेषतः जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शारीरिक अक्षततः आदि। आतंकवादी गतिविधियाँ संस्कारों को अस्थिर कर सकती हैं, नागरिक समाज को नुकसान पहुँचा सकती हैं, शांति तथा सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं, तथा सामाजिक तथा आर्थिक विकास एवं कई समूहों को प्रतिकूल प्रभावित कर सकती है। इन सभी का मूल मानव अधिकारों के उपभोग पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
मानव अधिकार तथा सुरक्षा पर आतंकवाद के विनाशकारी प्रभाव संयुक्त राष्ट्र के उच्चतम स्तरों पर स्वीकार किया जा रहा है, विशेषतः, सुरक्षा परिषद, आमसभा, पूर्व मानव अधिकार आयोग, नई मानव अधिकार परिषद। विशिष्टतः आतंकवाद के संदर्भ में विभिन्न सदस्य- राज्यों के विचार निम्न प्रकार हैं:
• आतंकवाद, प्रत्येक स्थान पर मानव की प्रतिष्ठा तथा सुरक्षा के लिए खतरा है, मासूमलोगों की जान लेता है या लेने की धमकी देता है, ऐसे वातावरण को स्पष्ट करता है जो लोगों की भय से मुक्ति को समाप्त कर देता है; मूल स्वतंत्रताओं का हनन करदेना है। मानव अधिकारों को नष्ट करना ही इसका उद्देश्य है; '
• आतंकवाद का कानून के शासन की स्थापना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है; यह एक बहुलवादी समाज की रचना को क्षति पंहुँचाता है, यह समाज के प्रजातांत्रिक आधारों को नष्ट करता है तथा संवैधानिक सरकारों की वैधता में अस्थिरता पैदा करता है;
• आतंकवाद का पराराष्ट्रीय संगठित अपराध, नशीले पदार्थों की तस्करी, बेनामी पैसे के तथा शस्त्रों के गैर-कानूनी लेनदेन, परमाणु, रासायनिक तीन जैविक पदार्थों के गैर- कानून स्थानांतरण के साथ सीधा संबंध है। इसके अतिरिक्त यह गंभीर अपराधों को अंजाम देने के साथ भी जुड़ा हुआ है जैसे हत्या, डाक फिरौती, अपहरण, प्रहार, बंधक बनाना आदि;
• राज्यों के सामाजिक तथा आर्थिक विकास पर आतंकवाद के प्रतिकूल परिणाम होते हैं राज्यों में आपसी संबंध बिगड़ते हैं तथा राज्यों के बीच आपसी सहयोग, विकास के लिए सहयोग समेत, पर भी हानिकारक परिणाम होते हैं; और
• यह राज्यों की भौगोलिक एकता तथा सुरक्षा के लिए खतरा है तथा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों तथा नियमों का भी घोर उल्लंघन है। अन्तर्राष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की स्थापना के एक अनिवार्य तत्व के रूप में इसका विनाश किया जाना आवश्यक है।
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