कविता के अनुवाद में यह समझना भी उतना ही ज़रूरी होगा कि अमुक कविता का अनुवाद किस उद्देश्य से किया जा रहा है। यदि उसका उद्देश्य उसके कथ्य को बचाना है तो अनुवाद की रणनीति उसके अनुसार होगी और यदि अनुवाद का उद्देश्य समय या समाज विशेष में अपनाई गई शैली का भी संरक्षण है तो अनुवादक की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
माया एंजेलो अमेरिका की बहुप्रसिद्ध रचनाकार है जिनकी कविता है Phenomenal Woman इस कविता का हिंदी अनुवाद किया है रजनीश मंगा ने जिसका शीर्षक है - संपूर्ण स्त्री। उसके एक अंश की बानगी देखिए –
अब आपकी समझ में आया
कि क्यों नहीं झुकता कहीं भी शीश मेरा
न मैं चिललाती हूँ न उछलकूद ही करती रहती
या सचमुच ही बड़े जोर से बातें करती.
जब तुम मुझे यहाँ से गुजरते देखो
तुम्हे गर्व का अनुभव होना चाहिए.
मैं कहती हूँ,
यह तो मेरी एड़ियों की आवाज में है,
मेरे बालों की लहरों में,
मेरे हाथों की हथेलियों में,
मेरी सुश्रुषा की आवश्यकता में,
क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ
सर्वगुण-संपन््न.
सम्पूर्ण स्त्री,
यानि कि मैं.
अनुवाद की दृष्टि से देखा जाए तो यह एक बेहतरीन अनुवाद होगा। आइए, कविता के शीर्षक से ही अपनी बात शुरू करते हैं। phenomenal शब्द का शाब्दिक अर्थ है - अद्भुत, असाधारण, अभूतपूर्व, प्रतीयमान आदि। जबकि अनुवादक ने इसका अनुवाद किया है - संपूर्ण। इस शब्द का यह अनुवाद किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन फिर सवाल उठता है कि कविता के अनुवाद में ज़्यादा आवश्यक क्या है। और वह है सहृृदयता। यदि अनुवादक मशीन की तरह अनुवाद करने लगे तो संभव है कि शाब्दिक रूप से अनुवाद सही हो लेकिन भावात्मक दृष्टि से बह अनुवाद न केवल अशुद्ध होगा. अपितु असंप्रेषणीय भी होगा। कविता में कवयित्री द्वारा प्रयुक्त शब्द ज़ोशाजाशशा8। का संमकत: यही अर्थ है जो अनुवादक ने किया है। इस अनुवाद प्रक्रिया में अनुवादक ने सर्वप्रथम प्रस्तुत शब्द का अर्थ शब्दकोश में खोजा होगा। शब्दकोश में प्राप्त अर्थ कवयित्री द्वारा प्रकट किए गए भावों को संप्रेषित करने में असमर्थ लगे होंगे और ऐसी स्थिति में अनुवादक ने कविता के मर्म को एक सट्ददय की तरह समझते हुए इस शब्द के लिए संपूर्ण शब्द का प्रयोग उधित समझा होगा। प्रस्तुत कविता में जब अनुवादक ने प्रस्तुत शब्द के लिए संपूर्ण का प्रयोग किया तो कविता के आलोक में यह उथित हीं प्रतीत होता है क्योंकि कययित्री का आशय समवतः यही है।
शब्द-प्रयोग के स्तर पर-
इसी कविता के एक उदाहरण के माध्यम से कविता के अनुवाद को समझने का प्रयास करते हैं -
क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ
सर्वगुण-संपनन्न,
सम्पूर्ण स्त्री,
यानि कि मैं
यहां अनुवादक ने phenomenally शब्द के लिए सर्वगुण-संपन्न शब्द का इस्तेमाल किया है। पूरी कविता को यदि पढ़ा जाए तो इस शब्द का अंग्रेजी प्रयोग अद्भुत प्रमाव उत्पन्न करता है। एक ऐसी स्त्री जो शायद सौद॑र्य के बाहरी पैमानों पर ख़री नहीं उतरती लेकिन फिर भी दुनिया के समक्ष एक चुनीती है। ऐसी स्त्री के गुणों को उभारने के लिए कवयित्री अपने लिए phenomenal शब्द का प्रयोग करती हैं लेकिन हिंदी में कविता का खूबसूरत अनुवाद करते समय अनुवादक कहीं माचावेग में आ जाते हैं और तथाकथित आदर्श भारतीय स्त्री के लिए उपयोग किए जाने वाले पदबंध संपूर्ण स्त्री तथा सर्वगुण संपन्न का प्रयोग कर बैठते हैं। किंचित यह सही भी प्रतीत होता है लेकिन भावानुवाद करने और लक्ष्यभाषा की आत्मा और समाज के नजदीक पहुँचने के लिए अनुवादक का यह प्रयोग अधिक भावुक प्रतीत होता है। संभवत: phenomenal शब्द के लिए असाधारण शब्द कवयित्री के मानस के अधिक निकट होता।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि कविता के अनुवाद की रणनीतियां अनुवाद के उद्देश्य के साथ बदलती रहती हैं। यदि कविता के अनुवाद का उद्देश्य केवल कथ्य को रूपांतरित करना हो तो उसका व्याख्यापरक अनुवाद भी किया जा सकता है। अल्लामा इकबाल की कविताओं का अनुवाद हिंदी के प्रसिद्ध कवि शमशेर बहादुर सिंह ने कुछ इस प्रकार किया है –
मूल : आह ! किसकी जुस्तजू आवारा रखती है तुझे ?-
राह तू, रहरौ भी तू, रहबर भी तू, मंजिल भी तू !
अनुवाद: तू किसकी खोज में भटक रहा है? अरे, पथ और पथिक,
पथ-प्रदर्शक और लक्षित स्थान, सबकुछ तू ही तो है।
स्पष्ट है कि अनुवादक-कवि का उद्देश्य यहां कविता का कविता के लिए अनुवाद न होकर कविता के कथ्य का अनुवाद है। अपनी गद्य कृति दोआब के लिए एक लेख में उपयोग के लिए कवि शमशेर ने इकबाल की कविताओं का अनुवाद किया था। अपने इस अनुवाद के माध्यम से अनुवादक-कवि इकबाल को हिंदी पाठकों की व्यापक दुनिया तक पहुँचा रहे थे।
जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेखत की चर्चित कविता 'future generations' का अनुवाद उदाहरण के रूप में सटीक होगा कि कविता का अनुवाद वास्तव में केवल तर्जुमा या भाषांतरण नहीं है, अपितु वह दूसरी भाषा और दूसरी संस्कृति तक विचारों और भावों की वह यात्रा है, जो एक नए भाषा समाज व संस्कृति में जाकर उनकी अपनी हो जाती है तथा मूल की तरह ही असर छोड़ती है। यह तभी संभव है जब कविता की इस यात्रा के पड़ाव में भाषायी अड़चने न पैदा की जाएं और उन्हें सीमाओं से आर-पार जाने-आने की वैसी ही आज़ादी हो, जैसी परिंदों को होती है। इस अनुवाद में अनुवादक स्वीकार कर रहे हैं कि यह उर्दू जबान में उनके द्वारा किया गया भावानुवाद का एक प्रयास है। यहाँ अंग्रेजी को मूल भाषा के रूप में देखा जा रहा है। बानगी देखिए-
उर्दू / हिंदी अनुवाद :
आने वाली नसस्लों के लिए
मुझे ये ऐतराफ है
कि अब मफर की राह भी नहीं बची
मुझे ये ऐतराफ है
कि दिल में अब उम्मीद तक नहीं रही
मुझे ये ऐतराफु है
मैं अपनी गलतियाँ भी खर्च कर चुका
मुझे ये ऐतराफ है
मैं मर चुका मैं मर चुका मैं मर चुका
सो मेरी ओर से बयाँ है आख़िरी
ख़ला हमारा हमकिराँ है आख़िरी
इस कविता का अनुवाद बकुल देव (साभार : सदानीरा) ने किया है। यद्यपि वे इसे भावानुवाद कह रहे हैं परन्तु अनुवाद में यह कविता मूल सी बन पड़ी है। अंग्रेजी कविता की अंतिम तीन पंक्तियों को अनुवाद के जिस प्रकार अनुवादक ने विस्तार दिया है, वह जहाँ एक ओर अनुवाद की काव्य क्षमता की ओर संकेत करता है, वहीं दूसरी ओर मूल रचना के साथ अनुवादक की तादात्मयता व उर्दू /हिंदी में उसकी प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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