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नई कहानी आंदोलन में मोहन राकेश की कहानियों के महत्त्व को रेखांकित कीजिए।

मोहन राकेश मुख्यत: नयी कहानी के कहानीकारों में से एक महत्त्वपूर्ण कथाकार, सिद्धान्तकार तथा उसे आन्दोलन में परिवर्तित करने वाली तिकड़ी कहानीकारों के सदस्य भी हैं। उनकी कहानियों के एक सम्मिलित आकलन के आधार पर ही नयी कहानी आन्दोलन के विभिन्‍न रचनात्मक सरोकारों को आसानी से परखा जा सकता है। मोहन राकेश विशेष रूप से मध्यवर्गीय जीवन तथा शहरी संवेदना के मुख्य प्रतिनिधि रचनाकार हैं, जिन्होंने आजादी के बाद वाले दशकों की युवा-रचनाकार-मानसिकता का मुख्य प्रतिनिधित्व करते हुए मृत परम्परागत मूल्यों और जड़ हो चुकी मर्यादाओं को चुनौती देते हुए अपने अनुभव की प्रामाणिकता को नये सिरे से जाँचने का महत्त्वपूर्ण बीड़ा उठाया।

उसमें बहुत कुछ अनिवार्य रूप से ध्वंसात्मक था तथा जहां पर बदले हुए परिवेश में असुरक्षित अनुभव करते हुए मध्यवर्ग के युवा की कुण्ठाएं और लक्ष्यहीनता के साथ ही सम्बन्धों के बदले हुए समीकरण-विशेषकर स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध अन्य राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक समस्याएं मोहन राकेश की कहानियों में मुख्यतः नयी कहानी के नवीन विशेषण तथा भावबोध के रूप में उभरकर सामने आई हैं।

कहानी के लिये “नयी' शब्द का विशेषण मुख्य रूप से जीवन के लिये “नये' दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करने वाला वह विशेषण है, जो मुख्य आधुनिक चेतना का पर्यायवाची बनकर उभरा है। इस अर्थ में वह एक प्रकार का दृष्टिकोण, एक मूल्यबोध तथा चेतना के एक विशेष स्तर का दूयोतक बना, जहां पर आधुनिकता का बोध विस्तृत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसम्मत मूल्यचेतना का आग्रही बना है तथा वह अनुभूति की प्रामणिकता के आधार पर उसको सत्य की कसौटी मानकर चलता है और अपने “जिये तथा, भोगे हुए” यथार्थ को ही सत्य की विशेष प्रतिष्ठा देकर अभिव्यक्त करना चाहता है।

वास्तव में इसके मूल में प्रचलित और परिपाटीबद्ध परम्परागत जीवन पद्धतियों के प्रति वह घुटन और छटपटाहट विद्यमान थी, जो बदलती हुईं परिस्थितियों और नये भावबोध के सन्दर्भ में वर्तमान समय से अप्रासंगिक होती चली गयी। उनको नयी कहानी उचित और अनुचित की 'कसौटियों पर परखती थी। इसमें एक व्यक्ति की पारिवारिक तथा सामाजिक भूमिकाओं को अनुभव की प्रामाणिकता के आधार पर जाँचने का गहरा आग्रह था और यह देखने का भी एक साहस था कि वह बने बनाए मिथकों में से कितना सत्यापित हो सकता है अथवा उसको नये सिरे से खारिज करने की संभावना रख सकता है। ऐसी परिस्थितियों के मध्य में बहुत कुछ अतिवादिता की सीमाओं के पार भी चला जाता है तथा इसमें बहुत कुछ तो एक प्रकार का आवेगजन्य फेन और शीघ्र ही बैठ जाने वाला एक प्रकार का तात्कालिक किस्म का गुबार होता है। लेकिन इस आवेग की अनुभूति और विचारदृष्टि को पहचानने का काम मोहन राकेश ने बखूबी किया और इसी वजह से उनका नाम अन्यान्य अनेक “नये' लेखकों के बीच अलग से रेखांकित हुआ और इस प्रकार हिंदी कहानी के तीन तिलंगों में से एक कहलाए।

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