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संप्रेषण का स्वरूप

आधुनिक भाषाविदों ने भाषा ओर संप्रेषण को अभिन्‍न मानते हुए भाषिक ओर भाषेतर दोनों अभिव्यक्तियों को ही संप्रेषण का महत्त्वपूर्ण अंग माना है। इस दृष्टि से यह माना जाता हे कि भिन्‍न भाषा-समाज में भाषेतर संप्रेषण की अपनी विशिष्ट युक्‍्तियाँ होती हें, जो उस समाज की संस्कृति की वाहक होती हें। संप्रेषण एक सामाजिक भाषा-व्यवहार है, जो अपने विविध घटकों के माध्यम से समाज में विचारों का आदान-प्रदान करता हे।

मानव समाज के विकास के साथ-साथ संप्रेषण के साथनों में भी विकास की लहर चली। संप्रेषण का विकास एक प्रकार से समाज के विकास का द्योतक है। संचार, संप्रेषण की आधुनिक तकनीक से निर्मित संकल्पना है। आरंभ में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच आपसी संवाद के रूप में उपयोगी संप्रेषण ने जब व्यावसायिक रूप ग्रहण करना शुरू किया, तब से लेकर आज तक सूचना क्रान्ति ने संप्रेषण के स्वरूप को विस्तृत एवं सर्वसुलभ बना दिया। इस प्रकार संप्रेषण के स्वरूप का विश्लेषण इस बात से प्रभावित होता हे कि संप्रेषण का क्षेत्र कितना विस्तृत हुआ है? 

भाषा के संप्रेषणपरक या सामाजिक होने में वक्ता एवं श्रोता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भाषा का सामाजिक यथार्थ है कि कोई वक्ता अपने श्रोता के स्तर, उसके साथ अपने संबंध ओर वाक्‌-संदर्भ आदि को देख-समझकर ही भाषा-व्यवहार करता है, अतः सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से संप्रेषण को तीन रूपों में उपस्थित किया जा सकता है-

(क) व्यक्ति-व्यक्ति के बीच,

(ख) व्यक्ति-समाज के बीच,

(ग) समाज-समाज के बीच।

दूसरी ओर इसी के आधार पर संप्रेषण की सामाजिक शैलियाँ बनती हैं और स्थित होती हैं; जेसे-रूढ़ शैली, औपचारिक शैली, अनोपचारिक शैली, आत्मीय शैली इत्यादि। आधुनिक भाषाविज्ञान में सामाजिक शैली को वार्तालाप या बातचीत का सर्वाधिक चयनीय भाषाई तत्त्व माना गया है, क्योंकि सामाजिक शैलियाँ वक्‍ता-श्रोता के बीच के संबंधों के अनुरूप ही व्यवस्थित होती हैं।

संप्रेषण-व्यवहार पूर्ण रूप से अपने साधनों पर अवस्थित है। भाषा एक संप्रेषण-व्यवहार है। संप्रेषण की आवश्यकता का अर्थ हे-वक्ता का तात्पर्य, उस तात्पर्य की भाषिक अभिव्यक्ति तथा श्रोता द्वारा उसका अर्थ-ग्रहण (डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव)। इस प्रकार संप्रेषण का स्वरूप व्यक्ति से एक समाज ओर समाज से पूरे विश्व को संबोधित करने तक के सफर में अपने साधनों के प्रयोग एवं उसकी कुशलता का ऋणी है। बातचीत के दोरान व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति संभव थी किन्तु दूरसंचार की आवश्यकता ने संप्रेषण के स्वरूप को विस्तृत करने का काम किया है। व्यक्ति से समाज को संबोधित करने के लिखित साधनों में प्रतिक्रिया का मिलना तत्क्षण संभव नहीं था। अत: मोखिक वार्तालाप अथवा भाषण हेतु अनेक उपकरणों की उपलब्धि ने संप्रेषण को एक सशक्त माध्यम दिया। अब यह संप्रेषण भिन्‍न-भिन्‍न भाषिक समुदायों के बीच भी संदेश का वहन करने में सक्षम है। अनुवाद एवं भाषा-शिक्षण की विधि में संप्रेषण को ध्यान में रखकर अर्थ की प्राप्ति की जाती है तथा प्रयोक्‍ता एवं शिक्षार्थी के लिए संप्रेषणपरक शिक्षण उपलब्ध कराया जाता है। इस प्रकार संप्रेषण के द्वारा न केवल एक भाषिक समाज को संबोधित करने में सफलता मिली हे वरन्‌ भिन्‍न-भिन्‍न भाषायी समाजों को उनकी स्वयं की भाषा में ही अर्थ का बोधन कराया जा सकता हे।

अतः संप्रेषण-व्यवहार के अंतर्गत अर्थ को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है। अर्थ की पूर्ण प्रतीति के लिए ही तकनीकी विकास को प्रोत्साहन मिला है। अब तो एक भाषा से दूसरी भाषा का अनुवाद कम्प्यूटर के माध्यम से ही हो जाता है। इस प्रकार की साधनात्मक उपलब्धि के रूप में-दूरसंचार, जनसंचार आदि संकल्पनाएँ उभरकर सामने आती हैं, जो व्यक्ति को विश्व के मंच पर संबोधन का अवसर उपलब्ध कराती हें। इसमें सहायक साधन निम्नलिखित हैं-रेडियो, टी.वी., अखबार, इंटरनेट, मोबाइल इत्यादि।

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