शकलदीप बाबू का चेहरा फक पड़ गया। उनके पैरों में जोर नहीं था और मालुम पड़ता था कि वे गिर जाएंगे। जंगबहादुर सिंह तो मंदिर में चले गए, लेकिन वे कुछ दूर तक वहीं सिर झुकाकर इस तरह खड़े रहे, जैसे कोई भूली बात याद कर रहे हों। फिर वे चौंक पड़े और अचानक उन्होंने तेजी से चलना शुरू कर दिया। उनके मुंह से धीमे स्वर में तेजी से शिव-शिव निकल रहा था। आठ-दस गज आगे बढ़ाने पर उन्होंने चाल और तेज कर दी, पर शीघ्र ही बेहद थक गए और एक नीम के पेड़ के नीचे खड़े हो हांफने लगे।
उत्तर-संदर्भ-' डिप्टी कलक्टरी' भी एक विपन्न निम्न मध्यवर्गीय परिवार की कहानी है, लेकिन इस कहानी में एक बहुत बड़ा अंतर यह है कि इसके नायक बाबू शकलदीप मुख्तार हैं और वे मुख्तारी के कारण अक्सर कुछ पा जाते हैं, जिससे दो जून का चूल्हा-चौका चल जाता है। जबकि 'दोपहर का भोजन' का गृहस्वामी चंद्रिका बाबू क्लर्की की छंटनी में आजीविका खो चुका है, जिससे बची-खुची जमापूंजी से घर के पुरुषों को गिनकर दो रोटी खिलाने कौ नौबत आ जाती है। भविष्य के नाम पर वह एक अंधकारमय शून्य का सामना करता हुआ परिवार है, जबकि 'डिप्टी कलक्टरी' की परीक्षा का फॉर्म भरवाकर भविष्य में निवेश का निर्णय, आशा, प्रतीक्षा, सत्य होने की तत्परता का स्वप्न है और अंत में उसका बिखरना भी मौजूद है।
व्याख्या-कहानी का प्रारंभ भी डिप्टी कलक्टरी की परीक्षा के फॉर्म हेतु पति-पत्नी के मध्य फीस को लेकर बहस से होता है, जिसमें कहानी को एक साभिप्राय पूर्वाभास और तत्काल अतीत से रचनाकार ने सम्बद्धता प्रदान की है। बहुत ही छोटे-छोटे वक्तव्यों के द्वारा लेखक अमरकांत पात्रों के क्रियाकलापों के साथ-साथ अपनी रचना-कौशल से उन वक्तव्यों में अपने अनुभव तथा विचारों को मिश्रित कर देते हैं।
जिस दिन परीक्षा का परिणाम निकलने वाला होता है, उस दिन शकलदीप बाबू सुबह जल्दी मंदिर चले जाते हैं और काफी देर तक मंदिर की सीढ़ी पर बैठे रहते हैं, फिर नंदलाल पांडे से नारायण की परीक्षा के बारे में बताते रहते हैं। काफी धूप चढ़ने के बाद वे फिर मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। बाहर निकलने पर उन्हें मास्टर जंगबहादुर मिलते हैं, वे बताते हैं कि परीक्षा का परिणाम तो आ गया है। वे बताते हैं कि नारायण का नाम 6-7वें नंबर पर है जबकि डिप्टी कलक्टरी में दस लड़के ही किए जाएंगे। यह सुनकर शकलदीप बाबू का चेहरा उतर जाता है। उन्हें लगता है जैसे शरीर से प्राण निकल गए हैं और वे गिर पड़ेंगे। जंगबहादुर मास्टर मंदिर में चले जाते हैं। शकलदीप बाबू कु दूर खड़े-खड़े सोचते रहते हैं फिर अचानक शिव-शिव बोलते हुए तेजी से चलने लगते हैं। आठ-दस करम चलने के बाद वे और तेज चलने लगे, लेकिन जल्दी ही थक जाने के कारण हाँफने लगे और नीम के पेड़ के नीचे खड़े हो गए।
शकलदीप बाबू की यह हालत उनके उस सपने के टूटने के कारण हो जाती है, जो वे अपने बेटे की नौकरी के लिए देख रहे थे। इससे भी ज्यादा चिता उन्हें कार्य चुकाने को लेकर है, जो बेटे की परीक्षा की तैयारी के लिए लिया था।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box