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मानव ने कृषि का आंरभ प्रकार किया किया? इसने सामाजिक संरचना को किस प्रकार प्रभावित किया?

प्रारम्भिक मानव द्वारा शिकारी-संग्रहकर्ता से कृषक बनने कौ प्रक्रिया कोई अचानक घटित होने वाली घटना नहीं थी। जब विश्वव्यापी जलवायु में परिवर्तन हुआ, तो इसका प्रभाव शिकारी-संग्रहकर्त्ता की जीवन-शैली पर भी पड़ा। साथ ही पौधों एवं पशुओं की प्रकृति में भी अन्तर आया। समय के साथ शिकार और संग्रह की तकनीक भी विशेषीकृत होती चली गई तथा आदिमानवों को पौधों एवं पशुओं की गहरी जानकारी होती गई, जो कृषि के प्रारम्भ के लिए एक अनिवार्य पहलू था। इसी सन्दर्भ में बिनफोर्ड एवं केंट फ्लैन्नरी जैसे विद्वानों ने भी शिकार और संग्रह से कृषि की ओर संक्रमण के लिए क्रमागत विकास का सिद्धान्त ही अपनाया। यहाँ तक कि डार्विन ने भी कृषि कौ शुरुआत कौ एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में ही व्याख्या कौ थी।

फ्लैन्नरी ने खाद्य उत्पादन की ओर संक्रमण के तरीके का विश्लेषण करते हुए इसे मुख्यतः तीन अवधारणाओं पर आधारित माना है-

(i) खाद्य उत्पादन के पूर्व शिकारी-संग्रहकर्तता की आबादी में बढ़ोतरी हुई थी।

(ii) खाद्य उत्पादन का आरम्भ उन लोगों में हुआ, जहाँ प्रकृति बहुत अनुकूल नहीं थी।

(iii) खाद्य उत्पादन के कई केन्द्र थे तथा खेती की शुरुआत से पूर्व ये लोग किसी विशिष्ट परिवेश के आदी नहीं थे।

इस प्रकार केंट फ्लैन्नरी ने कृषि की ओर संक्रमण हेतु व्यवस्था सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार मौसम में बदलाव के साथ शिकारी-संग्रहकर्त्ता एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे, जिस कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों एवं पशुओं का ज्ञान होता गया। मेक्सिको की दक्षिणी ऊपरी भूमि में “नकारात्मक प्रतिपुष्टि' सिद्धान्त अर्थात्‌ प्रकृति को संचालित करने वाले इस सिद्धान्त, जिसमें अलग-अलग समय में अलग-अलग क्षेत्रों, अलग-अलग फसल उत्पादित करते थे, के अनुसार शिकारी-संग्रहकर्त्ता अपने शिकार और संग्रह की गतिविधियों को इसी के अनुरूप व्यवस्थित करते थे। विभिन्न प्रान्तों में उपलब्ध पौधों और पशुओं के अनुसार समूह की गतिशीलता और आकार निर्धारित होता था। इस प्रकार लोग “विस्तृत फलकवाली ' अर्थव्यवस्था पर आश्रित थे, न कि थोड़े पौधों और पशुओं पर उनका जीवन आधारित था। साथ ही शिकारी-संग्रहकर्त्ताओं के क्षेत्रों में भी वृद्धि हुई, ताकि उन स्थानों पर किसी खास पौधे को उगाया जा सके। कभी-कभी ऐसा भी होता था कि एक पौधा दूसरे को दबा भी देता था। जागरोस पहाड़ी क्षेत्रों में गेहूँ एवं ऊपरी मैक्सिको में मक्का इसी प्रकार का पौधा था। ये विभिन्न प्रकार के पौधों में सन्तुलन भी रखते थे। जहाँ प्रारम्भ में शिकारी-संग्रहकर्ता घूम-घूमकर भोजन इकट्ठा किया करते थे, वहीं अब वे लोग एक जगह रुके रहकर अन्न उत्पादन करने लगे।

'कोलिन रेनफ्रियू ने भी सांस्कृतिक परिवर्तन की व्याख्या करते हुए व्यवस्था सिद्धान्त को स्वीकार किया है। एम. कोहेन के अनुसार कृषि के आरम्भ के लिए पर्यावरणीय परिवर्तन की अपेक्षा मनुष्य कौ चाहत का विशेष योगदान था। इनका यह भी मानना है कि कृषि का विकास जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हुआ। इनके अनुसार यह अतिरिक्त भोजन उपलब्ध करवाने के कारण ऐसा नहीं हुआ, बल्कि सघन खेती की शुरुआत अतिरिक्त श्रम लगने के कारण हो सकती थी और इसी के कारण खेती शुरू की गई। इसलिए खाद्यान्न उत्पादन के लाभों को जानते हुए भी खेती करने के लिए एक खास आबादी का होना जरूरी था। जैसे खेती करने के लिए अधिक जमीन की आवश्यकता पड़ने पर पेड़ों को काटने, जलाने तथा मैदान साफ करने का काम करना पड़ता था। और इन सब कार्यों के लिए पर्याप्त श्रम की आवश्यकता थी। कोहेन ने माना कि शिकारी-संग्रहकर्त्ता समूह में जनसंख्या की वृद्धि अचानक नहीं हुई, बल्कि यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया थी। इस वृद्धि के फलस्वरूप क्षेत्रों का विस्तार हुआ तथा लोग ऐसे क्षेत्रों का भी उपयोग करने लगे, जो अब तक अछूते पड़े थे। धीरे-धीरे लोगों ने अपनी जरूरतों को खेती द्वारा ही पूरा करना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार इस व्यवस्था सिद्धान्त में केवल परवर्ती अभिनूतन युग के दौरान ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण प्रागैतिहासिक काल में आबादी की वृद्धि के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। इस सन्दर्भ में बारबरा बेन्डर का भी यही तर्क है कि जनसंख्या की वृद्धि अपने आप होने वाली घटना नहीं है, बल्कि जीवनयापन की गतिविधियों के फलस्वरूप प्रौद्योगिकी के स्तर, वितरण तथा विनिमय आदि प्रभावित होता गया, जिसका सीधा प्रभाव जनसंख्या पर भी पड़ा। इनका यह भी मानना है कि इन परिवर्तनों के कारण सामाजिक सम्बन्ध में भी परिवर्तन हुआ जिस कारण नए तरीके अपनाने की रणनीतियों एवं लोगों के भोजन प्राप्त करने के तरीके में भी परिवर्तन आया। इस प्रकार हाल के अध्ययनों में विस्तारवादी अर्थव्यवस्था की इस अवधारणा को भी चुनौती दी जा रही है, जिसके अनुसार अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार मिलने कौ प्रक्रिया ने किसानों को एक जगह बसाया है।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि शिकारी, संग्रहकर्त्ता से कृषि की ओर संक्रमण की प्रक्रिया एकाएक होने वाली घटना नहीं थी, बल्कि समय के साथ जैसे-जैसे लोगों की आबादी में वृद्धि होती गई, इसका प्रभाव उनकी जीवन-शैली पर पड़ा तथा लोगों ने अब तक जीवन-शैली में पशुओं एवं पौधों के सन्दर्भ में व्यापक जानकारियाँ प्राप्त कर रखी थीं, जिसने इनके द्वारा कृषि की शुरुआत में मदद की। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस व्यापक परिवर्तन के लिए कोई एक कारक जिम्मेवार है, बल्कि पर्यावरणीय, जनसांख्यिकी तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार के परिवर्तनों का यह सम्मिलित प्रभाव है कि आदिमानव ने शिकारी-संग्रहकर्तता से कृषि की ओर संक्रमण किया।

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