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मैक्यावली की मानव प्रकृति की अवधारणा का परीक्षण कीजिए।

 मनुष्य के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः राजनीति और मानव स्वभाव के बीच संबंध पर दृष्टि डालना अनिवार्य होगा। अरस्तु व मध्यकाल के अन्य चिंतकों के विपरीत, जो कि मानव स्वभाव को स्वाभाविक रूप से सामाजिक माना करते थे, मैक्यावली ने मानव स्वभाव का एक बेहद निराशावादी दृष्टिकोण सामने रखा था। उसने दलील दी कि मानव स्वभाव, इतने युग बीतने पर भी, अर्थपूर्ण ढंग से नहीं बदल पाया है और मनुष्य ने जो किया है वह उसे, उसी प्रकार उकसाए जाने पर, दोहराने का आदी है। मनुष्य आमतौर पर अविवेकी होता है और उसके कृत्य उसकी भावनाओं से प्रेरित होते हैं। नैतिकता की ओर उसका कोई सामान्य झुकाव नहीं होता और वह निरंतर अपनी इच्छापूर्ति का ही भाव दर्शाता है। एक जगह उसने कहा कि मनुष्य अनंत इच्छाओं का शिकार होता है और ऐसी ही एक इच्छा है। निजी संपत्ति से उसका प्रेम। उसने यह भी कहा कि मनुष्य अपने पिता के हत्यारे को तत्काल माफ कर देगा पंरतु अपने पैतृक धन के अपहर्ता को कदापि नहीं।

मानव स्वभाव संबंधी मैक्यावली का चित्रण एक राजनीतिक पशु दर्शाता है, जिसकी जन्मजात इच्छा सदैव दूसरों पर नियंत्रण कर अपना प्रभुत्व जमाने की रहती है। बहरहाल, मैक्यावली ने इस लक्षण को केवल राजा को ही निर्दिष्ट किया और उसे सलाह दी कि वह अपने सभासदों की बजाय अपनी ही सूझबूझ और समझ पर भरोसा करे। मनुष्य विषयक मैक्यावली की अवधारणा ने अनिर्वायतः राज्य संबंधी उसके सिद्धांत, राज्य के ध्येय और ध्येय प्राप्ति की विधियों संबंधी उसके विचारों को ही रेखांकित किया था। इसने नैतिकता और राजनीति के बीच संबंध-विच्छेद की ओर प्रवृत्त किया।

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