जे एस मिल की पुस्तक ऑन लिबरटीं 1960 के दशक में अकादमिक बहसों में प्रभावशाली रही। मिल की पुस्तक को स्वतंत्रता-संबंधी नकारात्मक अवधारणा की एक व्याख्या के रूप में देखा जाता है। वैयक्तिक स्वतंत्रता का पक्ष लेते हुए मिल प्रथाओं और रिवाजों की तरफ अवमानना का भाव रखते थे। ऐसी भावना मिल उन सभी कानूनों और आदर्शों के लिए भी रखते थे, जिन्हें तर्कसंगत और न्यायसंगत नही कहा जा सकता था| कभी-कभी यह भी तर्क दिया जाता है कि मिल के अनुसार कोई भी स्वतंत्र कार्य, चाहे वह कितना भी अनैतिक हो, अपने में सदगुण का कुछ तत्त्व रखता है, क्योंकि वह स्वतंत्रतापूर्वक किया गया है। यद्यपि मिल ने व्यक्ति के कार्यों पर नियंत्रण को बुराई माना, उन्होंने नियंत्रणों को पूरी तरह अतर्कसंगत नहीं माना। फिर भी, उन्होंने महसूस किया कि समाज के भीतर स्वतंत्रता के पक्ष में एक परिकल्पना हमेशा रहती है। इसलिए अगर स्वतंत्रता पर कोई अवरोध लगाता है, तो उसका औचित्य भी उसी को बताना होगा।
मिल के अनुसार, स्वतंत्रता का उद्देश्य था व्यक्तित्व हासिल करने को बढ़ावा देना था। व्यक्तित्व का अभिप्राय व्यक्ति के विशिष्ट लक्षण से है, और आजादी का अर्थ है, इस व्यक्तित्व का बोध, यथा निजी विकास एवं आत्म-निश्चय | मनुष्यों में व्यक्त्वि के गुण ने ही उन्हें निष्क्रिय की बजाय सक्रिय बनाया, साथ ही सामाजिक व्यवहार की वर्तमान रीतियों का समालोचक भी, ताकि वे जब तक परम्पराओं को तर्कसंगत न पायें उन्हें स्वीकार न करें| मिल के तानेबाने में स्वतंत्रता इसीलिए मात्र नियंत्रण-अभाव के रुप में नहीं, बल्कि कुछ वांछित प्रवृत्तियों की सुविवेचित वृद्धि में नजर आती है। यही बात है जिसके कारण मिल को अक्सर स्वतंत्रता की सकारात्मक संकल्पना की ओर आकर्षित होते देखा जाता है। स्वतंत्रता संबंधी मिल की संकल्पना का मूल विकल्प की धारणा में भी है। यह बात उनके इस विश्वास से प्रमाणित होती है कि वह व्यक्ति जो अपने लिए स्वयं की जीवन-योजना को चुनने' का अधिकार दूसरों को दे देता है, व्यक्तित्व अथवा आत्म-निश्चय संबंधी मानसिक शक्ति नहीं दर्शाता। ऐसा लगता है कि ऐसे व्यक्ति के पास वानर की तरह नकल करने की ही क्षमता है। दूसरी ओर, वह व्यक्ति है जो स्वयं के लिए योजना चुनता है, अपनी सभी मानसिक शक्तियों को काम में लाता है| अपने व्यक्तित्व को स्पष्टतया अनुभव करने के लिए, और उसके द्वारा स्वतंत्रता की स्थिति प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक था कि व्यक्तिजन दबावों अथवा मानदण्डों व प्रथाओं का विरोध करें जो आत्म-निश्चय में बाधक थे। मिल का, तथापि, यह विचार भी था कि विरोध करने व स्वतंत्र विकल्प चुनने की क्षमता रखने वाले लोग बहुत ही थोड़े हैं। शेष जन 'वानर की तरह नकल' में विश्वास रखने वाली विषयवस्तु हैं, जिसके द्वारा वे परतंत्रता की दशा में रहते हैं। स्वतंत्रता-संबंधी मिल की अवधारणा को इसी कारण संश्रांतवादी के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि व्यक्तित्व का उपभोग मात्र एक अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा ही किया जा सकता है, न कि व्यापक रूप से जन-साधारण द्वारा।
अन्य उदारवादियों की ही भाँति, मिल ने व्यक्ति व समाज के बीच सीमा-निर्धारण पर बल दिया। वैयक्तिक स्वतंत्रता पर तर्कसंगत अथवा न्यायोचित प्रतिबंधों के बारे में बात करते हुए, मिल ने स्वयं-संबंधी एवं अन्य-संबंधी कार्यों के बीच भेद किया, यथावे कार्य जो सिर्फ व्यक्ति-विशेष को प्रभावित करते थे. और वे कार्य जो आम समाज को प्रभावित करते थे। किसी व्यक्ति पर किसी प्रतिबंध अथवा हस्तक्षेप को सिर्फ दूसरों को नुकसान से बचाने के लिहाज से ही सही ठहराया जा सकता था। उन कार्यों के संबंध में व्यक्ति को स्वयं प्रभावित करते थे, व्यक्ति संप्रभु था। कानूनी व सामाजिक बाधाओं की ऐसी समझ यह इशारा करती है कि व्यक्ति व समाज के बीच रिश्ता 'पिता-पुत्र' का नहीं है। व्यक्ति चूँकि अपने हितों का सर्वश्रेष्ठ पारखी होता है, कानून व समाज किसी व्यक्ति के सर्वश्रेष्ठ हितों' को प्रोत्साहन देने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
इसी प्रकार, यह धारणा कि किसी कार्य पर सिर्फ तभी नियंत्रण लगाया जा सकता है यदि वह दूसरों को हानि पहुँचाता हो, इस धारणा को नकारता है कि कुछ कार्य अन््तर्भूत रूप से अनैतिक होते हैं और इसी कारण इस बात पर ध्यान दिए बगैर कि वे किसी और को प्रभावित करते हैं, अवश्य ही सजा दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त, मिल का तानाबाना 'उपयोगितावाद' को अप्रासंगिक कह कर घोषित करता है, जैसा कि बैन्थम द्वारा कहा गया है, जो कि हस्तक्षेप को सही ठहरायेगा यदि वह आम हित को अधिकतम सीमा तक बढ़ाता है। तथापि, मिल के विचार में व्यक्तिव समाज के बीच सीमांकन कठोर नहीं है क्योंकि सभी कार्य दूसरों को किसी न किसी तरीके से प्रभावित करते ही हैं। मिल का मानना यह भी था कि उसका सिद्धांत दूसरों के आत्म-संबंधी व्यवहार की तरफ किसी नैतिक उदासीनता का धर्मोपदेश नहीं करता। साथ ही उन्होंने महसूस किया कि अनैतिक व्यवहार को हतोत्साहित करने के लिए अनुनय का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसी तरह, मिल सामाजिक लाभ को प्रोत्साहन देने हेतु स्वतंत्रता को एक सहायक के रूप में देखते थे। यह बात विचार, चर्चा एवं अभिव्यक्ति की संपूर्ण स्वतंत्रता तथा सभा व संस्था हेतु अधिकार के लिए उसके तरकों के विषय में खासतौर पर सही है। मिल ने महसूस किया कि खुली चर्चा पर से सभी प्रतिबन्ध हटा लिए जाने चाहिए, क्योंकि विचारों की खुली प्रतिस्पर्धा से सच्चाई उजागर होगी। यह उल्लेख किया जा सकता है कि स्वतंत्रताओं संबंधी आज की सूची में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को शायद एक लोकतांत्रिक आदर्श के रूप में आर्थिक स्वतंत्रता की जगह अधिक महत्त्व दिया जाता है।
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