महिलाओं के नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के मुद्दों पर सभी समकालीन संवाद जे. एस. मिल की रचना 'ऑन लिबर्टी से पहले के हैं। विशिष्ट कानूनों और विधियों के तौर पर, राजनीतिक अधिकारों और स्वतंत्रता के बारे में नहीं सोचा जा सकता है। बल्कि वे ऐसी विचारधाराएं हैं जिनके अनुसार उन्हें महत्व दिया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ राजनीतिक समानता के सिद्धांत का सामंजस्य कराने का प्रयास किया। उन्होंने स्वीकार किया कि सभी नागरिक, भले ही उनकी परिस्थितियों कुछ भी हो, समान थे और केवल लोकप्रिय संप्रभुता ही, सरकार को वैधता प्रदान कर सकती थी। लोकतंत्र अच्छा था क्योंकि इसने लोगों को सुखी और बेहतर बनाया। मिल ने टिप्पणी की कि अतिनिधि सरकार में लिंग(जैंडर) भेद को, राजनीतिक अधिकारों का आधार नहीं बनाया जा सकता है। जोन ऑफ़ आर्क एलिजाबेथ और ऑस्ट्रिया के मार्यरेट जैसे उदाहरणों का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि इन महिलाओं ने साबित किया है कि महिलाएं राजनीतिक कार्यालयों में भाग लेने और उनके प्रबंधन करने में पुरुषों के समान सक्षम हैं। मिल चाहते थे कि महिलाओं की पराधीनता केवल कानून द्वारा ही समाप्त न हो बल्कि शिक्षा, विचार, आदतों और अंत में पारिवारिक जीवन में बदलाव से ही समाप्त हो जाए। मिल का मानना था कि नायरिकता अधिकारों के माध्यम से एक व्यक्ति, एक सामाजिक व्यक्ति बन जाता है और राजनीतिक स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों हासिल कर लेता है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति इस चिंता के लिए था कि मिल ने महिलाओं के नागरिक और राजनीतिक अधिकारों का बचाव किया। मतदान का अधिकार देने में मिल ने, आशा व्यक्त की कि महिलाएं अपनी कई समस्याओं, जैसे घरेलू हिंसा आदि को दूर करने के लिए कानून लाने में सक्षम होंगी। उन्होंने कानून द्वारा महिलाओं को, समाज में प्रतिस्पर्धा करने और योगदान करने से, रोके जाने पर आपत्ति जताई।
महिलाओं का यताधिकार पुरुषों के समान ही मतदान के माध्यम से, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में महिलाओं के भाग लेने के अधिकार को संदर्भित करता है। मध्ययुगीन यूरोप और आधुनिक कालीन यूरोप के प्रारंभ में मतदान का अधिकार -उम्र, संपत्ति के स्वामित्व और लिंग(जैंडर) जैसे कारकों द्वारा, सभी लोगों के लिए कड़ाई पूर्वक सीमित था। मिल ने एकसमान मतदान अधिकार, सार्वभौमिक मताधिकार, लोकतंत्र और स्वतंत्रता को सशर्त रूप से अच्छा माना। ये सभी केवल उन्हीं को प्रदान किये जाने थे जिनका अपने विचारों और भावनाओं पर आत्म-नियंत्रण हो और जनता की भलाई के लिए उनका उपयोग करने की क्षमता और रुचि हो। मिल ने तर्क दिया कि मताधिकार के सुधार में सरकार की नीति, राजनीतिक अधिकारों में भागीदारी के लिए, मानसिक सुधार का पुरस्कार बनाने की होनी चाहिए।
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