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धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ। काहूकी बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रुचैसो कहै कछ ओऊ। माॉगि के खैबो, मसीतको सोइबो, लैबोको एक न दैबेको दोऊ।

 धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।

काहूकी बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रुचैसो कहै कछ ओऊ।

माॉगि के खैबो, मसीतको सोइबो, लैबोको एक न दैबेको दोऊ।

संदर्भ : यह पद्म (सवैया) 'कवितावली" के ' अयोध्याकांड में से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

व्याख्या: इस सबैया का अर्थ तलसी की सामंतविरोधी मूल्य-चेतना को धूप सा साफ दिखा देता है। कोई मझे धूर्त कहे, चाहे भिखमंगा कहे, चाहे क्षत्रिय कहे, चाहे जुलाहा कहे, मुझे परवाह नहीं है। न मझे अपनी लड़की का किसी के लड़के से व्याह ही करना है, मैं किसी भी जाति से संपक रखकर उसका बिगाड़ नहीं करता। तुलसी तो राम का दास है-मांगकर खाता है और मौज से मस्जिद में सोता है वह किसी से प्रयोजन नहीं रखता। उसे किसी से लेना -देना नहीं है।

वर्ण, जाति और व्यवस्था के ब्राहममणवाद को चनौती देने वाला तलसी का स्वर सामंतवाद विरोधी है। तलसी के राम निषाद, कोल, किरात, शबरी सभी को हृदय से लगाते हैं।''रामहि केवल प्रेम पियारा' है, वे रावण की अन्यायी सत्ता को तोड़ते हैं। निचली जाति के लोगों को राम

"भरत समशभ्राता' बार-बार कहते हैं। तुलसी के काव्य का यह सामंतविरो धी रुख एकदम प्रगतिशील है।

विशेष: 1. तुलसी की सामंतविरोधी मूल्य-चेतना का वर्णन किया गया है।

2. समय और समाज का यथार्थ-चित्रण किया गया है।

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