सूचना एवं विचारों के मुक्त प्रवाह ने सूचना युग में ज्ञान और उसके असंख्य नवीन प्रयोगों की एक आकल्पिक वृद्धि का सृजन किया है। मानव विकास के क्रान्तिकारी दौर के केन्द्र में सूचना उसकी सुलभता, प्रसार एवं नियंत्रण में है। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक एवं सामाजिक प्राधार एवं सम्बन्ध मानव विकास के इस वर्तमान दौर में कायान्तरित हो रहे हैं।
असमानता -तथापि विश्व के अधिकांश व्यक्ति सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों में इस क्रान्तिकारी विकास कार्यों तथा ज्ञान में आकस्मिक वृद्धि से अप्रभावित है। निःसन्देह सूचना युग और ज्ञान समाज विकासशील तथा अवस्थान्तर देशों के लिए अनेक सम्भावित लाभ प्रस्तुत करते हैं। तथापि इस बात को विस्मृत नहीं किया जा सकता कि सूचना एवं उन्नत संचार प्रौद्योगिकियों पर बढ़ता भरोसा, साथ ही राष्ट्रों के मध्य व उसके भीतर एक बढ़ते अंकीय विभाजन/ दरार का वास्तविक खतरा भी लेकर आता है।
अर्थ –अंकीय एवं ज्ञान विभाजन का अर्थ है। सम्पूर्ण विश्व में प्रौद्योगिकी समर्थ तथा प्रौद्योगिक बहिष्कृत समुदायों के मध्य दरार तथा इसके अतिरिक्त इन समुदायों के भीतर व उनके मध्य सूचना हस्तान्तरणों का अभाव विकासशील दुनिया एवं अवस्थांतर अर्थव्यवस्थाएं अंकीय एवं ज्ञान विभाजनों का वृहत्तम भाग रखती है। भूमण्डलीय दूर घनत्व सुधर के संकेत देता है। इंटरनेट सुलभ और इंटरनेट दुर्लभ लोगों के मध्य दरार में वृद्धि होती जा रही है।
अंकीय विभाजन ने सूचना सम्पन्न व सूचना विपन्न लोगों के मध्य एक ज्ञान भेद उत्पन्न कर दिया है। इसमें निरक्षता के एक नये रूप को प्रोत्साहन देने की सम्भावना है। अंकीय विभाजन सूचना एवं ज्ञान दरिद्रता को प्रोत्साहित करता है और आर्थिक विकास एवं धन सम्पति, विवरण हेतु अवसर सीमित करता है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियां व्यक्तियों और समुदायों के आर्थिक एवं सामाजिक तानेबाने को बुने जाने को प्रोत्साहित करती है। इन तानो-बानों अर्थात नेटवर्को की शक्ति उन्हें सूचना एवं ज्ञान की सुलभता एवं विनिमय प्रदान कर विविध समूहों को जोड़ने की क्षमता ही उनके सामाजिक आर्थिक विकास के लिये अत्यावश्यक है।
व्यापारी एवं उद्यमी जन अपने व्यापार को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक रूप से प्रोत्साहित कर उत्पन्न किए अवसरों के माध्यम से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हैं। इसके अतिरिक्त, सूचना एवं प्रसार प्रौद्योगिकी आधारभूत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएँ अधिक कुशलतापूर्वक प्रदान करने की सम्भावनाएँ प्रदान करती हैं। इसका कारण यह है कि लोग उन तक अपने स्वयं के समुदायों से पहुँच सकते हैं। तथापि इस सम्बन्ध में सबसे बड़ा दोष यह है कि वृहत्तर जनसमूह तक सूचना एवं प्रौद्योगिकि की सुलभता सीमित है। इस प्रकार इन प्रोद्योगिकीय विकासकार्यों का लाभ उठाने से सम्बन्धित उनके अवसर लोगों के मध्य एक विभाजन को जन्म देते हुए सीमित हैं।
सूचना एवं ज्ञान के संचारण एवं परस्पर आदान-प्रदान के लिए हमारी बढ़ी क्षमता विश्व को समस्त निवासियों के लिए एक अधिक शन्तिमय एवं समृद्ध भविष्य हेतु सम्भावना में वृद्धि कर देती है। सभी के लिए सुलभता विश्व के अधिकांश व्यक्ति उस समय तक इस सूचना क्रान्ति से लाभ नहीं उठा सकते जब तक वे उभरते ज्ञान आधारित समाज में पूर्णतया सहभागिता निभाने योग्य नहीं होंगे। एक सार्वभिक ज्ञान समाज में जानकारी और सूचना सभी व्यक्तियों के लिए सुलभ हो जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले और अपंग जन भी सम्मिलित हैं। निम्नलिखित व्यक्तियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
(i) अपान्तिक, (ii) बेरोजगार, (iii) अल्प लाभान्वित, (iv) मताधिकार वंचित जन, (v) बच्चे, (vi) बुजुर्ग, (vii) अपंग, (viii) देशज जन, (ix) विशेष जरूरतों वाले,
निम्न सार्वभौमिक मानव मूल्य ही सच्चे अन्तर्भूत विश्व सूचना समाज के आधार हैं
(i) समानता एवं न्याय, (ii) लोकतंत्रीय भाईचारा, (iii) परस्पर सहिष्णुता, (iv) मानव गरिमा, (v) आर्थिक प्रगति, (vi) पर्यावरण रक्षा, (vii) विविधता का सम्मान।
विभिन्न देशों में अंकीय विभाजन डिजिटल डिवाइड अंकीय विभाजन समस्त देशों में उनके भीतर धनी व निर्धन के मध्य पूर्व विद्यमान दरार को और चौड़ा करने का खतरा उत्पन्न करता है। जब तक विश्व के अधिकांश लोग इस क्रान्ति से लाभान्वित नहीं होगें तब तक वे उभरते ज्ञान आधारित सूचना समाज में पूरी सहभागिता में समर्थ नहीं होंगे।
आन्तरिक विभाजन अंकीय रूप से निम्न के मध्य है
(i) सशक्त अमीर व अशक्त गरीब लोगों के मध्य
(ii) भाषायी सांस्कृतिक विभाजन आंग्ल सैक्सन व अन्य विश्व संस्कृतियों के मध्य,
(iii) प्रौद्योगिकी सलभता विभाजन अमीर व गरीब देशों के मध्य
(iv) एक अन्य विभजन सूचना संचार प्रौद्योगिकी प्रेरित संपन्न अभिजात वर्ग के मूल्यों और परम्परागत अधिकार एवं क्रय परम्पराओं के मध्या प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तरों में असमानता सम्पूर्ण समाजों अथवा समाज के भागों के उपान्तीकरण में परिवर्तित हो सकती है।
इसके अतिरिक्त देशों के भीतर प्रौद्योगिकीय परिवर्तन का प्रायः अर्थ होता है कि वे समूह जो पहले से ही अलाभान्वित एवं बहिष्कृत थे, अधिक पीछे छूट जाते हैं, यथा
(i) निम्न आय परिवार, (ii) ग्रामीण जनता, (iii) महिलाएं (iv) अल्पसंख्यक (v) वयोवृद्ध जन
इंग्लैण्ड में दरिद्रतम आय पंचमांश में केवल 4 प्रतिशत घर ही इंटरनेट से जुड़े हैं-शीर्ष पंचमांश में 43 प्रतिशत। यह अन्तर हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका में इंटरनेट से जुड़े अफ्रीकी-अमेरिकन परिवारों का अनुपात श्वेत परिवारों की तुलना में आधा है। सन् 2001 की अर्न्तराष्ट्रीय श्रम संगठन रिपोर्ट आर्थिक सहयोग विकास संगठन देशों सहित विश्व के अनेक भागों में एक अंकीय लिंग भेद दरार को प्रकट करती है।
यद्यपि कछ अर्थ व्यवस्थाएं इटरनेट प्रयोग में प्राय समानता रखती हैं। जैसे
(i) ताइवान, चीन वहाँ 45 प्रतिशत महिला प्रयोगकर्ता हैं। (ii) कोरिया, वहाँ यह 43 प्रतिशत है।
विश्व स्तर पर यह ज्ञान के प्रयोजन, अनूकूलन, उत्पादन तथा प्रसारण के लिये अपनी अपनी क्षमता के अनुसार औद्योगिक एवं विकासशील देशों के मध्य विभाजन उत्पन्न करती है। कोरिया में वर्ष 2000 में इंटरनेट से जूड़े घरों की संख्या लगभग 30 में लाख तक बढ़कर दोगुनी हो गयी। इसके विपरीत जापान में केवल 4,50,000 घर ही इंटरनेट से जुड़े हैं। उच्च आय एवं निम्न आय देशों के मध्य प्रौद्योगिकीय अन्तर प्रति 1000 निवासियों के पास निजी कम्प्यूटरों की संख्या में प्रकट किया जाता है। यह निम्न प्रकार है (i) बुर्किना फासों में एक से भी कम, (ii) दक्षिण अफ्रीका में 27, (iii) चिली में 38, (iv) सिंगापुर में 172, (v) स्विट्जरलैंड में 348। उप-सहाराई अफ्रीकी देशों में कुल मिलाकर प्रति 5000 जनसंख्या इंटरनेट प्रयोगकर्ता ही हैं। यूरोप और उत्तर अमेरिका में यह अनुपात प्रति 6 निवासी प्रयोगकर्ता हैं।
विकासशील देशों में अंकीय विभाजन प्रौद्योगिकीय रूप से अधिक देशों को कम उन्नत देशों से पृथक करता है। छोटी जनसंख्या वाले कुछ देशों में अब तक एक भी इंटरनेट आश्रित नहीं दिखाई दिया। सिंगापुर में 98 प्रतिशत घरों में इंटरनेट का प्रयोग होता है। उपसहाराई अफ्रीका में प्रति 1000 जनसंख्या इंटरनेट अश्रितों की संख्या बुर्किनाफासो में 0.001 से लेकर दक्षिण अफ्रीका में 3.82 तक है। विभिन्न देशों के मध्य सूचना संचार प्रौद्योगिकि सुलभता से साम्य विषयक अधिकांश रिपोर्ट इस समस्या को आर्थिक मानदण्डों के अनुसार देखती है, जैसे
(i) भौगोलिक अवस्थिति, (ii) शिक्षा, (iii) आयु, (iv) लिंग, (v) अशक्तता,
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