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बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुंचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैकड़ों। …. बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परन्तु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?” ।

 सुदर्शन की हार की जीत’ काफी प्रभावपूर्ण कहानी है। इसका सार इस प्रकार है बाबा भारती का घोड़े से लगाव-जिस प्रकार माँ को अपने बेटे को देखकर आनन्द मिलता है, उसी प्रकार बाबा भारती को अपने सुलतान घोड़े को देखकर मिलता था। हार की जीत’ कहानी के कथनानुसार बाबा भारती वैरागी तपस्वी थे,  परन्तु अपने घोड़े सुलतान के प्रति उनका मन असीम प्रेम से भरा था। वे भगवद्भजन से बचे समय में अपने घोड़े का पालन-पोषण करते थे। उन्हें वह घोड़ा अत्यन्त प्रिय था ।

सच्चा प्रेमी अपने प्यार को भी इतना न चाहता होगा ऐसा स्नेह उनका अपने घोड़े के प्रति था। साथ ही वे गरीबों एवं असहायों के प्रति पूरी सहानुभूति रखते थे। डाकू खड्गसिंह द्वारा घोड़ा छीन लेने पर उन्हें अपनी हानि की चिन्ता न होकर मनुष्यता की हानि की चिन्ता हो रही थी। पहले तो डाकू खड्गसिंह यह सोचता था कि ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था, इस साधु को ऐसी चीजों से क्या लाभ? बाबा भारती को सुलतान नाम का घोड़ा अनेक विशेषताओं से युक्त डाकू उसे हर स्थिति में प्राप्त करना चाहता था।

दूसरों की चीज छीनने में उसे कोई दुःख या संकोच नहीं था। एक अपाहिज व्यक्ति का वेश बनाकर उसने धोखा देकर बाबा भारती से घोड़ा छीन लिया था।  बाबा भारती ने घोड़ा छीनकर भागते हुए डाकू से कहा था कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका, मैं तुमसे वापस करने के लिए न कहूँगा। उन्होंने क्रोध व्यक्त न कर डाकू से प्रार्थना की थी कि तुम इस घटना को किसी के सामने प्रकट मत करना कारण यह है कि लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया, तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे।

घोड़ा डाकू के पास पहुँच जाने पर बाबा ने घोड़े की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया था जैसे उनका उससे कभी कोई सम्बन्ध न था। बाबा के ये विचार सुनकर डाकू सोचने लगा कि ऐसा मनुष्य नहीं देवता है। डाकू खड्गसिंह ने धोखे से बाबा भारती से उनका प्रिय घोड़ा छीन लिया था।

जब घोड़ा बाबा के पास था तब वे उसकी बहुत सेवा करते थे। वे रात को लाठी लेकर उसका पहरा भी देते थे, किन्तु घोड़े के चले जाने से हुई हानि के कारण अब उन्हें और कोई हानि होने की चिन्ता नहीं थी। घोड़ा चोरी होने की चिन्ता भी अब समाप्त हो गयी थी। घोड़े के अलावा हानि या चोरी हो जाने योग्य अन्य कोई कीमती वस्तु अब उनके पास नहीं थी। इस कारण उन्होंने पहरा देना भी छोड़ दिया। था और अब बेपरवाह रहने लगे थे। 

‘हार की जीत’ कहानी का उद्देश्य यह बतलाना है कि यदि स्वार्थ की चिन्ता नं करके परहित या मान कल्याण के भाव से आचरण किया जावे, तो दुष्ट व्यक्ति में भी मानवता की भावना उत्पन्न हो सकती है। बाबा भारती ‘हार की जीत’ कहानी के प्रमुख पात्र हैं। उनके चरित्र की निम्न विशेषताएँ प्रमुखता से व्यक्त हुई हैं। श्रेष्ठ भक्त-बाबा भारती भगवद्-भंजन करते थे। वे बाबा या साधु थे, इसलिए भजन ही उनका मुख्य काम था।

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