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चिल्का आंदोलन के विशेष संदर्भ में लोगों के संघर्ष के महत्व की व्याख्या कीजिए।

 भारत में आजीविका के संसाधनों के व्यावसायीकरण के विरुद्ध समाज के निर्धन एवं कमजोर वर्गों द्वारा विरोध किया जा रहा है, 1990 के आरंभ में, मछुआरों द्वारा ‘चिल्का बचाओ’ नाम से एक आंदोलन चलाया गया, जिन्होंने अपने क्षेत्र में समन्वित श्रिम्प कृषि परियोजना को लागू करने का विरोध किया। इसे झील के आस-पास निवास करने वाले मछुआरों की जीविका के लिए एक खतरा माना गया । इस आंदोलन को छात्रों, बुद्धिजीवियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा सक्रिय समर्थन मिला। मछुआरे क्षेत्र को 5 भागों में विभाजित किया गया था : (1) जानो’, (ii) खारी’, (iii) बहान’, (iv) ‘दियान’ और (v) ‘उथापनी’। मछआरों का मछली पकड़ने का कार्य उनकी जाति पर आधारित था। ‘केऊता’ जाति में 68 प्रतिशत मछआरे थे जोकि जाल द्वारा मछली पकड़ते थे। 

ब्रिटिश काल के दौरान, चिल्का झील ‘परीकुडा’ व ‘खालीकारा’ के राजाओं के हाथों में थी। 1920 के दशक में मछुआरों को झील में जाने के लिए राजा को शुल्क देना पड़ता था। पुरी जिले में अतिक्रमण करने वाले लोगों को बलूगाँव से बाहर रखने तथा मछुआरों के हितों की रक्षा करने के लिए 24 सदस्यों वाली पहली कोऑपरेटिव सोसाइटी बालूगाँव मछुआरा कोऑपरेटिव स्टोर के नाम से स्थापित की गई। 1953 में रियासती राज्यों के उन्मूलन के बाद, यह जिला उड़ीसा सरकार के नियंत्रण में आ गया। उनके शासन के अंतर्गत, खुली नीलामी द्वारा, आँचल अधिकारी (सर्कल अधिकारी) द्वारा, मछली क्षेत्र को मछुआरों को पट्टे पर दे दिया गया।

यह प्रक्रिया 1959 तक चलती रही, जब तक कि केन्द्रीय सहकारी बाजार सोसाइटी स्थापित हुई। यह सरकार से मछली-क्षेत्र को पट्टे पर लेने की तथा प्राथमिक मछुआरा सहकारी समूह को उप-पट्टे पर देने की सर्वोच्च संस्था थी। इस प्रकार, यह व्यवस्था मछुआरों के अधिकारों की सुरक्षा देने वाली व्यवस्था थी। तहसीलदार (एक खंड स्तर का अधिकारी) उन संसाधनों की नीलामी करता था, जिन्हें केन्द्रीय सोसाइटी पट्टे पर नहीं लेती थी। चिल्का पुनर्गठन स्कीम ने मछुआरों व गैर-मछुआरों के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित किया। 1991 में, उड़ीसा सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसने चिल्का के मत्स्य क्षेत्र में मछुआरों को दो वर्गों में विभाजित कर दिया, ये थे ‘केप्चर’ (मछली पकड़ने वाले मछुआरे) और क्लचर’ (मछली का संपोषण और व्यापार करने वाले गैर मछुआरे)। 

केप्चर अधिकार मछुआरों से संबंधित थे, जबकि कलचरिंग गैर-मछुआरों व ग्रामीणों से संबंधित थे, जो प्राथमिक सहकारी सोसाइटी के सदस्य नहीं थे। क्योंकि सरकार के आदेश ने केप्चर व कल्चर – के कार्य संचालन के लिए निर्देश नहीं दिए थे, इसलिए स्वविवेकी शक्तियाँ कलेक्टर द्वारा उपयोग की जाती थी। इस प्रकार इस नीति ने मछआरों के बीच भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी राजस्व विभाग तथा प्राथमिक सोसाइटी के बीच झूलती केन्द्रीय सोसाइटी के पास सीमित शक्तियाँ थीं। अधिकतर प्राथमिक सोसाइटी ने केन्द्रीय सोसाइटी को पीछे छोड़कर सीधे रूप से कमीशन एजेंटों के द्वारा बेचने का कार्य शुरू कर दिया।

इस प्रकार, दोहरी सरकारी संरचना का उद्देश्य लगभग दोषपूर्ण था। 1980 के दशक से ही चिल्का झील में केन्द्रीय व प्राथमिक सोसाइटी द्वारा पट्टे पर लिए गए मछुआरे क्षेत्र को अन्य लोगों को किराये पर देने तथा बाहरी लोगों द्वारा इस पर अवैध अतिक्रमण देखे गए। मत्स्य-संस्कृति के बड़े स्तर पर व्यवसाय ने परंपरागत मछुआरों के जीविकोपार्जन पर खतरा उत्पन्न कर दिया तथा साथ ही साथ झील की जैविक-व्यवस्था पर भी खतरा पैदा किया। हजारों की संख्या में मछुआरों व गैर-मछुआरों को अपने जीविका से हाथ धोना पड़ा। इस पृष्ठभूमि के तहत्, उड़ीसा सरकार ने टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी से एक संयुक्त सेमी-इन्टेन्सिव प्रॉन कल्चर प्रॉजेक्ट अनुबंध किया, जिसने चिल्का क्षेत्र की 400 हेक्टेयर भूमि पर अधिकार कर लिया। लोगों ने इस प्रस्ताव का स्वागत नहीं किया। 

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