प्रसंग :- यह गद्यांश अमृतराय द्वारा लिखी गयी प्रेमचन्द की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ से लिया गया है। प्रेमचन्द को अनेक चिन्ताएं सताती रहती थी देश की आज़ादी की । चिन्ता, गरीब – किसानों-मजदूरों की चिन्ता, हिन्दी साहित्य को समृद्ध-सम्पन्न बनाने की चिन्ता तथा लेखकों के हितों की रक्षा करने की चिन्ता ।
लेखकों के हितों की रक्षा के लिए उन्होंने एक योजना बनाई – लेखक संघ की स्थापना, इस सम्बन्ध में उन्होंने अपने …मित्रों, सहयोगियों से परामर्श किया। सबकी अपनी-अपनी राय थी। इसी पर उन्होंने अपने पत्र ‘हंस’ में टिप्पणी लिखी।
व्याख्या :– लेखक संघ का उद्देश्य है लेखकों, उदीयमान साहित्यकारों के अधिकारों की रक्षा करना, उनके हितों का ध्यान रखना, उन्हें प्रकाशकों के शोषण से मुक्त कराना उनकी रचनाओं का प्रकाशन कराना, उनके लिए उचित पारिश्रमिक दिलवाना सब कार्य केसे हो, इसके सम्बन्ध में अलग-अलग मत हैं। कुछ लोगों का मत है कि लेखक-संघ भी छात्र-संघ, मज़दूर संघ, ट्रेड यूनियन की तरह लेखकों के अधिकारों की मांग समय-समय पर रखता रहे।
लेखक संघ लेखकों की ओर से पुस्तक प्रकाशकों, पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादकों से लेखकों के पारिश्रमिक की दर बढ़ाने के लिए आन्दोलन करे। उनका तर्क यह है कि लेखक भी मजदूर है, पसीना बहाकर अजीविका कमाता है, अन्तर केवल यह है कि लेखक के हाथ में हथौड़ा, बसूला नहीं होते, कुलम होती है। वह श्रमजीवी होता है। दूसरी ओर प्रकाशक पूंजीवादी है और लेखकों का इसी का. शोषण करते हैं, जिस प्रकार मिल-मालिक मज़दूरों का शोषण करते हैं। इस शोषण से. उनकी रक्षा करने के लिए लेखक-संघ को आन्दोलन करना चाहिए।
दूसरे वर्ग का विचार था कि लेखक-संघ धन एकत्र करे, उसके पास पर्याप्त धनराशि हो और उस धनराशि से स्वयं प्रकाशन संस्था बनाकर लेखकों की रचनाओं के प्रकाशन की ज़िम्मेदारी निभाये। उनका प्रकाशन इसी संस्था के द्वारा हो। लेखकों को दूसरे प्रकाशकों या प्रकाशन संस्थाओं का दरवाजा न खटखटाना पड़े। इससे प्रकाशकों का एकाधिकार समाप्त हो जायेगा। वे मनमानी न कर सकेंगे। लेखकों का शोषण समाप्त हो जायेगा, उन्हें उनके कार्य का उचित पारिश्रमिक व रॉयल्टी मिल सकेगी।
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