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आधुनिक उदारखाद, कल्याणवाद पर एक लेख लिखिए।

 इस तरह से बीसवीं शताब्दी में कामगार श्रेणी में वृद्धि होने पर पुरातन उदारवादी पर प्रश्न उठाए जाने लगे तथा नकारात्मक स्वतंत्रता को इसके समर्थन के प्रमुख तर्क व वाद-विवाद को अर्थात् अहस्तक्षेप बाज़ार। अहस्तक्षेप व्यक्तिवाद के कारण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला और इसके परिणामस्वरूप कामगार वर्ग को उसके वास्तविक हिस्से से वंचित कर दिया गया, अर्थात् उसको उसके श्रम का फल नहीं मिला था।

इसके पश्चात् उदारवादी का एक नया स्वरूप उभर करके सामने आया – आधुनिक उदारवादी, जिसे कल्याणवाद के नाम से भी जाना जाता है। उदारवादी की इस कड़ी के चिन्तकों का विश्वास था कि सरकार को उन बाधाओं को हटा लेना चाहिए जो व्यक्ति की स्वतंत्रता के मार्ग में आड़े आती हैं। इस कथन या विवरण के मुख्य व्याख्याता टी.एच. ग्रीन थे। उनके अनुसार, सरकार की अत्यधिक शक्ति प्रारंभिक युग में स्वतंत्रता के विरुद्ध एक बड़ी बाधा थी, परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के माध्य में ये शक्तियाँ भारी मात्रा में कम हो गई थीं या फिर उनका न्यूनीकरण कर दिया गया था।

अब एक नए प्रकार की अड़चनें या समस्याएँ पैदा हो गई थीं, जैसे कि गरीबी, रोग फैलना, भेदभाव, शोषण और उपेक्षा। इन सबका निधान या उपाय केवल एक ही था कि सरकार द्वारा सकारात्मक सहायता (सकारात्मक स्वतंत्रता) प्रदान की जाए। यह जौन स्टुअर्ट मिल (1806-73) थे जिन्होंने सकारात्मक स्वतंत्रता की संकल्पना को प्रस्तुत किया जिसके परिणामस्वरूप नकारात्मक सकारात्मक उदारवादी में परिवर्तित हुआ। हालाँकि मिल ने अहस्तक्षेप व्यक्तिवाद के संरक्षण के साथ आरंभ किया, किन्तु नई सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए इसकी कमियों को अच्छी तरह से समझ लिया और उन्होंने इसमें सुधार करने की प्रक्रिया आरंभ की। इसलिए, उन्होंने एक ऐसे क्षेत्र की खोज आरंभ की जहाँ पर राज्य के हस्तक्षेप के औचित्य को सिद्ध किया जा सकता था।

इस वृत्त के बाहर उन्होंने एक व्यक्ति के कार्यों को दो प्रकार से विभाजित किया थाः “स्वयं से सम्बन्धित कार्य” जिनका प्रभाव व्यक्ति के अपने आप पर होने तक सीमित था तथा दूसरा “अन्य से सम्बन्धित कार्य” जोकि दूसरों को प्रभावित करते थे ऐसे भेद को। इसके पीछे मिल के प्रयास थे एक ऐसे क्षेत्र को परिभाषित करने के जहाँ पर एक व्यक्ति के व्यवहार को समुदाय के हितों में या कल्याण में संचालित किया जा सकता है। अतः वह सामाजिक कल्याण की प्राप्ति में राज्य के लिए सकारात्मक भूमिका की तलाश कर रहे थे। भले ही वह व्यक्ति की स्वतंत्रता को एक सीमा तक नियंत्रित करे। यह मिल ही थे जिन्होंने कर देने का एक ठोस सिद्धान्त प्रस्तुत किया, जन्मजात प्राप्त अधिकारों को सीमित करने के लिए उनका अनुमोदन किया तथा शिक्षा राज्य द्वारा मुहैया कराई जाए।

जे. एस. मिल के पश्चात्, टी.एच. ग्रीन (1836-82). एल.टी. हॉब्हाउस (1864-1929), और एच. जे. लास्की (1893-1950) ने स्वतंत्रता की सकारात्मक संकल्पना को विकसित किया। ग्रीन ने अधिकार के सिद्धान्त की अभिधारणा प्रस्तुत की और इस पर बल दिया कि राज्य सकारात्मक भूमिका निभाते हुए ऐसी स्थितियाँ पैदा करें जिसमें व्यक्तिजन प्रभावी रूप से अपनी नैतिक स्वतंत्रता का प्रयोग कर सके। हॉब्हाउस और लास्की ने इस बात की वकालत की कि निजी सम्पत्ति का अधिकार पूरी तरह से मान्य नहीं है और राज्य को आवश्यक रूप से लोगों के कल्याण करने और सुरक्षित रखने का कार्य करना चाहिए।

इसलिए, यह कोई विशेष कठिन नहीं है कि कुछ विशेष अधिकार प्राप्त लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता के अधिकार पर पाबन्दी लगा दी जाए। इस बिन्दु को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि सकारात्मक स्वतंत्रता के प्रारंभिक व्याख्याताओं का राजनीतिक चिन्तन कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त के साथ जुड़ा हुआ था और यह सबसे पहले हमें इंग्लैंड में दिखाई देता है और इसके बाद विश्व के अन्य भागों में इसका विस्तार हुआ था। सकारात्मक स्वतंत्रता को सभी आधुनिक राज्यों में नकारात्मक स्वतंत्रता का अनुपूरक माना गया था। हालाँकि, कुछ समकालीन उदारवादी चिन्तकों जिन्हें कि स्वातंत्रयवादी (Libertarians) कहा जाता है जिन्होंने नकारात्मक सिद्धान्त पर पुन ज़ोर दिया। इन में इसाइयह बर्लिन (1909-97), एफ.ए. हेयेक (1899-1992), मिल्टन फ्राइडमैन (1912-2006) और रॉबर्ट नॉजिक (1938-2002) प्रमुख रहे हैं। 

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के बाद से सामाजिक उदारवादी का एक स्वरूप उत्पन्न हुआ जिसमें कल्याणकारी सुधार और आर्थिक प्रबंधन के पक्ष में और अधिक ध्यान दिया गया। यह आधुनिक या बीसवीं शताब्दी के उदारवादी का एक विशिष्ट लक्षण बन गया। यह जौन स्टुअर्ट मिल के विचारों में श्रेष्ठ उभरा, इसके अतिरिक्त कैंट, ग्रीन और हॉबहाउस के विचारों में प्रतिपादित किए थे। अनेक विशिष्ट प्रकारों से आधुनिक उदारवादी स्वतंत्रता (विशेषकर सकारात्मक स्वरूप) और मानव प्रगति के बीच कुछ सकारात्मक संबंध स्थापित करता है।

आधुनिक उदारवादी विश्वास करता है कि व्यक्ति “प्रगतिशील होता है और उसमें स्वयं के विकास के लिए असीमित संभावनाएँ होती हैं, ऐसी जो अन्यों में इसी संभावना को जोखिम में नहीं डाली। यह दृष्टिकोण न्याय के वितरण के सिद्धान्त को प्रतिपादित करता है और समर्थन भी; साथ ही प्रयोगों जैसे कि कल्याणकारी राज्य । आधुनिक उदारवादी राज्य के प्रति सहानुभूतिपूर्वक प्रवृत्ति को और अधिकता से प्रदर्शित करता है। इसे कल्याणकारीवाद के रूप में भी जाना जाता है।

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