बजट आय और व्यय का लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि आगामी वित्तीय वर्ष की कार्य-योजना है, जो वार्षिक विवरण को प्रदर्शित करती है। इसके अन्तर्गत योजना एवं कार्यक्रम बजर, प्रदर्शन बजर, शुन्य आधारित बजट और निष्कर्ष आधारित बजर सम्मिलित होते हैं।
योजना कार्यक्रम और बजटीय व्यवस्था — योजना कार्यक्रम और बजटीय प्रणाली प्रारम्भ से ही निर्णय निर्माताओं को संसाधन मुहैया कराने में एक सहयोगी की भूमिका निभाती है। कार्यक्रम का अर्थ योजना और बजट के मध्य संबंधों से है।
बजट का यह उपागम यह बताता है कि योजना, कार्यक्रम और बजट तीनों एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं और तीनों के सहयोग से एक व्यवस्था का निर्माण होता है। प्रदर्शन-बजट विधि निर्गत के विषय में प्रत्येक कार्यक्रमों की महत्ता को समीक्षा करने की कोशिश करता है। इसके अन्तर्गत कार्यों की समीक्षा, प्रदर्शन स्तर और इकाई लागत जैसी तकनीकें सम्मिलित होती हैं।
निष्पादन बजट — निष्पादन बजट वार्षिक बजट का वह मूल तत्त्व है, जो वित्तीय वर्ष के दौरान समितियों के उद्देश्यों की उपलब्धियों के कार्यों को उजागर करता है।
यह खर्च किए जाने वाले धन के मध्य बेहतर सबंधों का निर्माण कर कार्यक्रम और क्रियाकलापों को भौतिक और वित्तीय पक्षों से जोड़ता है। निष्पादन बजट के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- बजट और विकास योजनाओं को एकीकृत करना।
- निष्पादन लेखा परीक्षण को महत्वपूर्ण बनाना।
- प्रत्येक कार्यक्रम और क्रियाकलापों के भौतिक और वित्तीय पक्षों को जोड़ना।
- उत्तम मूल्यांकन और विधायन की समीक्षा को सरल बनाना।
- योजना में विचारार्थ दीर्घावधि वाले लक्ष्यों की उपलब्धियों का मापना करना।
भारत में निष्पादन बजट का विकास –– भारत में संसदीय अनुमान समिति ने अमरीका में प्रदर्शन बजट की सफलता के आधार पर सर्वप्रथम 1954 में निष्पादन बजट की मांग की थी।
प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकार से सिफारिश की कि 1969-70 के बजट से प्रारम्भ होकर दो वर्ष के भीतर सरकार के सभी संगठनों और विभागों में निष्पादन बजट लागू किया जाए, जो विभाग अथवा संगठन विकास कार्यक्रमों पर सीधा नियंत्रण रख सके।
तभी से अधिकांश विभागों के लिए निष्पादन बजट तैयार किए जाते रहे हैं।
निष्पादन बजट के तत्त्व — निष्पादन बजट के तत्त्व निम्नलिखित हैं
उद्देश्यों का सूत्रीकरण-निष्पादन बजट की वार्षिक कार्य-योजना होने के कारण इसके प्रमुख उद्देश्यों को स्पष्ट करना आवश्यक है।
कार्यक्रम/कार्यकलाप वर्गीकरण-निष्पादन बजट के तहत बजट के कार्यों का वर्गीकरण करना आवश्यक है।
मानक-निष्पादन बजट के प्रत्येक कार्यक्रम अथवा क्रिया के भौतिक तथा वित्तीय पक्षों को परस्पर संबंधित करना। उचित मानक और स्तर को पर्याप्त आंकड़ों से सहमत होते हैं, बजट आकलन का निर्माण करने में विषयनिष्ठता की बजाय वस्तुनिष्ठता को बढ़ावा देते हैं।
लेखा-संरचना-निष्पादन बजट के अन्तर्गत कार्य, कार्यक्रम, क्रियाकलापों में बजट वर्गीकरण समस्त लेखा वर्गीकरण से सहमत होना चाहिए।
विकेन्द्रित जिम्मेदारी ढांचा-निष्पादन बजट के निर्माण के लिए उच्च स्तरों पर दिशा-निर्देशों का गठन आवश्यक है।
निष्पादन का पुनरावलोकन या समीक्षा-निष्पादन बजट के अन्तर्गत अनेक जिम्मेदारियों में भौतिक कुशलता और वित्त को एक साथ रखा जाता है।
निष्पादन बजट एक प्रबंधकीय तकनीक है। सरकार के तहत इसका सफल प्रयोग संचालन के समस्त स्तरों पर मानकों के विकास पर संभव है।
शून्य आधारित बजट — शून्य आधारित बजटीय प्रणाली का अर्थ सही कार्यक्रमों का मूल्यांकन करना है। विकल्पों और कार्यक्रम उपलब्धि के नल्यांकन पर कभी-कभी हमें पुनः विचार करना होता है और एक कार्यक्रम को फिर से निर्देशित करना होता है।
शून्य आधारित बजट के चरण — शून्य आधारित बजट में अपनाई गई विधि निम्नलिखित है
निर्णय इकाइयों की पहचान-इस विधि के अन्तर्गत निर्णय करने वाली इकाइयों की पहचान की जाती है।
निर्णय पैकेज का एकत्रीकरण और विकास-निर्णय-समूह में प्रत्येक निर्णय इकाई का विश्लेषण करना होता है।
वरीयता क्रम में निर्णय पैकेज का मूल्यांकन और स्तर निर्धारण-समस्त निर्णय समूहों का मूल्यांकन तथा श्रेणीकरण करना, ताकि खर्चे के लिए मांग की जा सके। विस्तृत परिचालन बजट तैयार करना, जिनमें वह निर्णय समूह प्रतिबिम्बित हो, जिनको बजट के खर्चे में स्वीकृति दे दी है।
कार्यकलापों के संसाधन के निर्धारण द्वारा बजट की तैयारी या सोपानक्रम में रोधी स्तरों की राशि के उपयोग का निर्णय
पैकेज — संगठन में प्रत्येक बजट इकाई को विभिन्न स्तरों के वित्तीय बंटवारे के लिए आकस्मिकताओं का विकास करना होगा।
वित्तीय बंटवारे का वह न्यूनतम स्तर जो संगठन के जीवित रहने के लिए और अपनी मौलिक सेवाओं को उपलब्ध कराने के लिए चाहिए, संगठन की इकाइयों से यह भी पूछा जा सकता है कि उनके बजटों में कुछ कटौती कर दी जाए तो वे क्या करेंगे और अपनी सेवाओं के वर्तमान स्तरों को बनाए रखने के लिए उन्हें कितनी आवश्यकता है।
शून्य आधारित बजट के क्रियान्वयन में समस्याएँ – शून्य आधारित बजट की समस्याएं निम्नलिखित हैं
1. संगठन यह नहीं चाहते कि बाहर वाले यह जान पाएं कि उनको जीवित रहने के लिए कितना न्यूनतम खर्च आवश्यक है।
2. बजट की असफलता में एक प्रमुख कारण विस्तृत कागजी कार्यों का अत्यधिक प्रयोग है।
3. संसाधनों की पुनर्नियुक्ति, श्रम शक्ति का पुनर्नियोजन एक अत्यधिक कठिन और नाजुक मुद्दा है।
परिणाम आधारित बजट-– देश के नेतृत्व ने निर्णय-निर्माण के अधिकार पर बल दिया है, ताकि नागरिकों की मांगों की पूर्ति की जा सके। भारतीय वित्तीय प्रणाली में सर्वप्रथम बजटीय प्रयोग में क्रियान्वयन की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए वित्तमंत्री ने एक परिणाम आधारित बजट प्रस्तुत किया।
यह 44 मंत्रालयों और उनसे संबंधित विभाग/उपविभागों के सहयोग और उनकी इच्छाओं के परिणामों का संग्रह है, जो वर्तमान वित्तीय वार्षिक विवरण में किए गए विनियोजन प्राप्ति के लिए गठित किए गए हैं।
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