युवावस्था सिर्फ उम्र से संबंधित नहीं है। उम्र एक जैचिक सच्चाई को संदर्भित करती है। हालांकि, उप्र और उप्रदराज होना या परिपक्त होने का अर्थ और अनुभव समाज, संस्कृति और ऐतिहासिक समयक्रम से काफी प्रभावित होता है जिसमें हम रहते हैं। इस प्रकार युवा का संदर्भ सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से निर्मित है। इस तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक है कि युवा मनोविज्ञान के मान्यताएं, विकासात्मक मनोविज्ञान में वर्णित साम्रन्यतया विकास के सार्वमौभिक चरणों से लिया गया है (जो कि सभी संस्कृतियों में समान हैं)। हालांकि, विकास के किसी भी चरण की तरह, युवा भी संस्कृति के प्रभाव से अलग नहीं रहते हैं। युवा एक निरंतर बदलती धारणा है और यह समय और स्थान के साथ विकसित होती रहत्ती है। सांस्कृतिक संदर्भ और ऐतिहासिक घटनाएं यह तय करते हैं कि युवा की परिभाषा, समझ और घिकास किस तरह होगा। इस संबंध में ब्रॉफेनब्रेनर (1986, 2004) द्वारा प्रस्तुत पारिस्थित्तिकीय परिष्रेष्य को समझना महत्वपूर्ण है, जिसके अनुसार विकास कई कारकों से प्रभावित्त होता है। यह सिद्धांत मुख्य रूप से मानता है कि विकास में आसफास के परिवेश के कई तत्रों का प्रभाव परिलक्षित होता है - माइक्रोतंत्र, मेसोतंत्र, एक्सोतंत्र, मैक्रोतंत्र और क्रोनोतंत्र। माइक्रोत्ंत्र वह हालात हैं जिसमें व्यक्ति रहता है और इसमें व्यक्ति का परिवार, सहकर्मी, स्कूल और आस-पडेस शामिल होते हैं। माता-पिता, हमउम्र साथियों और शिक्षकों के साथ युवाओं की बातचीत से उन्हें युवावस्था के अनुभव निर्मित करने में मदद भिलती है। मेसोतंत्र में माइक्रो तंत्र या संदर्मों के बीच का संबंध शामिल हैं। स्कूल अनुभवों से पारिवारिक अनुभवों, स्कूली अमुभवों से धार्मिक अनुभवों तथा पारिवारिक अमुमयों को हमउप्र साथियों से अनुभवों के अंतर्सबंध इसके उदाहरण हैं | एक्सोतंत्र में सामाजिक संरचना के ऐसे अंतर्सधंध होते हैं, जिसमें व्यक्ति की सक्रिय भूमिका नहीं होती और इनसे व्यक्ति का बेहद मजदीकी संदर्भ होता है। उदाहरण के लिए. घर पर किसी युवा का अनुभव उसकी मां के काम के अनुभवों से प्रभावित हो सकता है। मैक़ो तंत्र में वह व्यापक संस्कृति समाहित है जिसमें लोग रहते हैं। यह इस बात से संबंधित है कि सांस्कृतिक मानदंडों, प्रथाओं और मूल्यों से युवा-निर्माण किस तरह आकार लेता है। क्रोनोतंत्र में समय के साथ आसपास के परिवेश की घटनाओं के स्वरूप और जिंदगी गुजरने के साथ-साथ सामाजिक-ऐतिहासिक परिस्थितियों का भी समावेश होता है।
इस प्रकार इस दृष्टिकोण से, युवाओं को एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, न कि केवल एक आयु वर्ग के लोगों के रूप में। यह परिप्रेदय सभी संस्कृततियों में सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करना युवाओं का एक महत्वपूर्ण विकासास्भक कार्य मानता है। लगातार वैश्वीकरण की ओए बढ़ रही दुमिया में मूल्यों और धर्मों की विधिघता, अलग-अलग आर्थिक स्थितियों, पालग-पोषण प्रथाओं और सामाजिक मागदंडों के चलते युवाओं का पिकास अलग-अलग तरह से होता है। उदाइरण के लिए, भारत जैसे विकासशील देशों में, निम्न सामराजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों के बच्चों से कम उम्र में काम करना शुरु करने की उम्मीद की जाती है। ऐसे देश जो सैन्य शासन के तहत हों या आतंकवाद का सामना कर रहे हों, वहां बड़े होने वाले युषा ऐसे देशों में बड़े होने वाले दुवाओं से बहुत अलग होंगे, जहां सरकार बचपन से वयस्कता तक सुरक्षित परिवर्तन काल सुनिश्चित करती है। सडक किनारे एहमे युवा जिनके लिए एकमात्र चिता का चिषय किसी तरह जीवित रहना है, वे संघम्म परिवारों में रहने वाले ऐसे युवाओं से बहुत अलग होंगे जिनकी चिंताएं सिर्फ विकास और शिक्षा से जुडी हैं। इसके अलावा 2000 में औद्योगिकीकरण के दशक की दुनिया में बडे हो रहे युवा कई मामलों में 1970 के दशक में बड़े हुए युवाओं से एकदम अलग हैं। पुरुष और महिला युवा भी बहुत अलग हैं। इस प्रकार युवावस्था को परिमाषित करने में लिग भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सामाजिक-सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य हमें उस विषमता को गड्राई से समझने में मदद करता है जो युवा आबादी के भीतर मौजूद है। इस प्रकार युवा मात्र एक श्रेणी नहीं है। यह विकास की एक निश्चित अवस्था में होने के चलते जीवन का अनुमव करमे की एक गतिशील प्रक्रिया भी है। इसमें कुछ सार्वमौमिक या सबमें एक समान स्वरूप होते हैं, क्योंकि किशोरावस्था की शुरुआत होने पर शारीरिक विकास सबमें एक जैसे ही होते हैं। फिर भी, हमारे लिए जरूरी है कि हम सामाजिक संस्थानों (जैसे, परिवार, स्कूल), संस्कृति (मूल्य, विश्वास और प्रथाएं) और बदलती आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका और युवाओं पर इनके प्रभाव को समझें।
युवाचस्था की अवधि बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वयस्कता की दहलीज है। राष्ट्रीय युवा नीति का उद्देश्य युवाओं को फलदायी कार्य बस के रुप में प्रोत्साहित करने के साथ-साथ ऐसे मजबूत और स्वस्थ समाज का सृजन करना है, जिसके पास सामाजिक मूल्य और आम नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी निमाने हेतु आपसी संबंध हों। जोखिम में फंसे युवाओं की सहायता करना और वंचित और हाशिए पर स्थित युवाओं के लिए समान अवसर सृजित करना, भी इसके उद्देश्यों में शामिल हैं।
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