सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश मन्नू भंडारी रचित उपन्यास ‘आपका बंटी’ से उद्धृत है। यह उपन्यास आधुनिक महानगरीय जीवन में दांपत्य जीवन की टूटन पर आधारित है, जिसमें पति-पत्नी का अलगाव बच्चों के जीवन को बहुत गहरे प्रभावित करता है और उनके मन-मस्तिष्क को तोड़कर रख देता है।
ऐसी ही स्थिति से गुजरती उपन्यास की नायिका अपने दांपत्य जीवन में हुए अलगाव के बारे में सोच रही है।
व्याख्या – वह अपने वैवाहिक जीवन के बारे में सोचती है कि वह उसके जीवन का एक अध्याय था, जो समाप्त हो गया अर्थात उसका वैवाहिक जीवन समाप्त हो गया। वह सोचती है कि उसके जीवन के ये दस वर्ष किसी अधेरी गुफा में चलते रहने के समान थे अर्थात उसके दांपत्य जीवन में कोई खुशी, कोई आश नहीं थी।
आज जीवन का यह दौर भी समाप्त होने का है किन्तु इस मुकाम पर भी पहुंचकर वह खुश नहीं है अर्थात जीवन के जिस समय परशानी थी उस खिशानी से छुटकारा मिलने के क्षण में भी संतोष न पाकर उसका मन दुखी है कि वह यहां तक स्वयं नहीं पहुंची है, बल्कि उसे इस स्थिति में मानो धकेला गया है, उसे विवश किया है।
पर जीवन का यह छोर भी प्राव है अति कहीं भी जीवन में अकेलापन ही दिख रहा है। उसे लगता है कि उसके जीवन की यह पूरा समय केवल अंधकार में ही बीता है और आगे भी जीवन में अंधकार और निराशा ही है।
विशेष – 1. मगनगरीला आधुनिक जीवन में सदनाहीन होते मानवीय संबंधों का पारिवारिक रिश्तों की लिका –
2. विचारात्मक शैली है।
3. भाषा बोलचाल की है।
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