दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) का निर्माण 1967 में हुआ। इस संगठन का उद्देश्य था विभिन्न एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापार एवं सहयोगात्मक नीति के द्वारा वाणिज्य, व्यवसाय और उद्योग का विकास करना। इसी परिप्रेक्ष्य में भारत ने वियतनाम की ओर देखा। वियतनाम अपनी वैदेशिक नीति के अंतर्गत निजीकरण, उदारीकरण और भूमण्डलीकरण को विशेष महत्त्व देने लगा।
सोवियत रूस के टूटने और शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व में गुट व्यवस्था समाप्त हो गई और अमेरिका का एकाधिकार कायम हो गया एवं विश्व के लगभग सभी देशों ने आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण की नीति अपनायी, जिसके परिणाम स्वरूप आसियान देश भी इस ओर आकर्षित हुए और भारत ने भी पूरब की ओर देखो सिद्धांत के अंतर्गत आसियान देशों की ओर देखना शुरू किया, क्योंकि भारत ने भी 1991 में प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के नेतृत्व में, उदारीकरण की नीति अपनायी थी। इस नीति के अंतर्गत आर्थिक क्षेत्र में पूंजी निवेश करने के लिए मुक्त आर्थिक नीति का समर्थन किया गया।
इस नीति के परिणामस्वरूप आसियान देशों को भारत में पूँजी निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिला। फलतः वे भारत की ओर आकर्षित हुए। आसियान ने 1992 में भारत को क्षेत्रीय वार्ता सहभागिता की पेशकश की। इसके तहत व्यापार, निवेश, पर्यटन तथा विज्ञान-प्रौद्योगिकी के इन चार आधारभूत सहयोग के क्षेत्रों की पहचान की गई। यह सहभागिता भारत और आसियान के बीच संबंध स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुई। यह सहभागिता इतनी सार्थक रही कि आसियान ने दो वर्षों के भीतर इस वार्ता को पूर्ण वार्ता का दर्जा दे दिया। आसियान ने भारत को आसियान के मंत्री स्तर के बाद के सम्मेलनों में और आसियान क्षेत्रीय मंच में तथा आसियान के सुरक्षा मंच में आमंत्रित किया।
फलतः आसियान और भारत के साथ वार्ता शुरू हुई और आसियान-भारत सहयोग समिति की स्थापना की गई। व्यापार, मानव संसाधन आदि के क्षेत्र में सहयोग स्थापित करने के लिए भारत-आसियान कार्य समूह की स्थापना की गई। कार्य दल की वार्ता के बाद विज्ञान एवं तकनीकी, सूचना तकनीकी के अतिरिक्त स्वास्थ्य, कृषि, संचार, रक्षा आदि के क्षेत्र में आसियान के साथ सहयोगात्मक नीति का का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। जिसके परिणामस्वरूप भारत-आसियान सहयोग समिति अपनी विभिन्न बैठकों में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, सौर ऊर्जा, व्यापार, वाणिज्य, पर्यावरण सुरक्षा, पर्यटन आदि के क्षेत्र में पूंजी निवेशात्मक सहयोग बढ़ाने पर सहमत हो गई और भारत-आसियान निधि की स्थापना की गई।
इस निधि को आसियान सचिवालय के अधिकार में रखा गया। यह कार्य आसियान की संयुक्त समिति के द्वारा किया जाता था। इसलिए इस समिति ने आसियान-नई दिल्ली समिति गठित करने का निर्णय लिया जिसमें आसियान देशों के राजनयिक मिशनों के अध्यक्षों को शामिल करने का प्रस्ताव था। इससे एक कदम आगे बढ़कर भारत के विदेश सचिव जे.एन. दीक्षित ने एक छात्रवृत्ति योजना घोषित करते हुए यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक देश विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में छ: माह की छ: डॉक्टर डिग्री के बाद का फैलोशिप के प्रस्ताव भेज सकता है।
इसके अलावा भारत एवं आसियान देशों के प्रतिष्ठित विद्वानों की भाषण मालाओं का आयोजन भी शुरू किया गया। इसके अंतर्गत भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने आसियान देश में जाकर भाषण दिया और आसिवाय देशों के भी विद्वानों ने भारत में अपनी भाषण मालाएं प्रस्तुत की। इससे आसियान और भारत के बीच लम्बे समय के बाद आपसी विश्वास और सहयोग का आधार मजबूत हुआ। यह कार्य भारत और आसियान के बीच सहयोग स्थापित करने में भी सहायक रहा है।
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