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वैयक्तिक लेखन की विभिन्‍न विधाओं के भाषिक वैशिष्ट्य का विश्लेषण कीजिए।

 वैयक्तिक लेखन की विभिन्न विधियों के भाषिक वैशिष्ट्य का विश्लेषण: वैयक्तिक लेखन की विभिन्न विधाओं का उल्लेख हम कर चुके हैं लेकिन यहाँ हम उन्हीं विधाओं की विशेषताओं का अध्ययन करेंगे जिनमें आत्मकथात्मकता और वैयक्तिकता का अंश ज्यादा होता है।

इस इकाई में हम डायरी, आत्मकथा, संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत की भाषागत विशेषताओं का अध्ययन करेंगे। ये विधाएँ ऐसी हैं जिन्हें सिर्फ साहित्यिक लेखन के अंतर्गत शामिल नहीं किया जा सकता। इन विधाओं का उपयोग वे लोग भी लेखन के लिए करते हैं, जो साहित्यकार नहीं होते। लेकिन इन विधाओं में लिखकर वे अपने अनुभव से समाज के अनुभव को समृद्ध करते हैं।

1. आत्मकथा हिंदी में आत्मकथा विधा का विकास पश्चिम के प्रभाव के कारण हुआ। स्वयं द्वारा लिखी गई अपनी ही जीवनी आत्मकथा कहलाती है। दूसरे शब्दों में, जब कोई व्यक्ति अपनी जीवनी स्वयं लिखता है तब उसे आत्मकथा कहते हैं। 

2. संस्मरण ‘हिंदी साहित्य कोश’ के अनुसार ‘संस्मरण-लेखक जो स्वयं देखता है, जिसका वह स्वयं अनुभव करता है, उसी का वर्णन करता है।

उसके वर्णन में उसकी अनुभूतियाँ और संवेदनाएँ रहती हैं। स्मृति ही संस्मरण का रूप है। किसी व्यक्ति, घटना, दृश्य, वस्तु को आत्मीयता के साथ याद करते हुए उसका विवेचन करना ही संस्मरण है। इसमें लेखक के अनुभव की प्रधानता होती है जो किसी घटना अथवा व्यक्ति से संबंधित होते हैं। संस्मरण में वर्णन और विवरण की अधिकता होती है।

इसमें स्थितियों और व्यक्तियों को एक-एक चरण आगे-पीछे जोड़कर अंकित किया जाता है। स्मृति से जुड़ी अनुभूतियों की भाव-संपदा के आधार पर अभिव्यक्ति होती है। स्मृति की इस अभिव्यक्ति में आत्मीयता का रंग भी मिला होना जरुरी है। संस्मरण केवल अतीत की घटनाओं पर आधारित होता है।

3. डायरी ‘डायरी’ शब्द हिंदी में अंग्रेजी से आया है और इस शब्द के साथ उसकी पूरी अवधारणा भी पश्चिम से ही ग्रहण की गई है। हिंदी में इसके लिए दैनिकी, दैनंदिनी, वासुरी, वासरिका आदि शब्दों का प्रयोग होता है।

डायरी से रोज लिखे जाने वाले तथ्यों, घटनाओं और कार्यों का पता चलता है। जब कोई व्यक्ति दिन, तिथि, सन् के आधार पर जीवन में घटित अथवा देखी गई धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या साहित्यिक परिस्थितियों का चित्रण करता है तो वह रचना डायरी के नाम से जानी जाती है।

डायरी लेखक के निजी अनुभव का अभिन्न अंग होती है। अपने निजी कार्यों, विचारों और भावों की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति होने के कारण यह विधा अन्य साहित्यिक विधाओं से अधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक मानी जाती है। डायरी निजी होती है। लेखक इसे प्रकाशित कराने के उद्देश्य से नहीं लिखता।

4. यात्रा-वृत्तांत व्यक्ति जब अपने द्वारा की गई यात्रा के अनुभवों को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करता है, तो उसे यात्रा-वृत्तांत कहते हैं। इसमें कल्पना की गुंजाइश नहीं होती और बीते हुए यथार्थ की प्रधानता पाई जाती है। यात्रा में स्थान बदलने की क्रिया महत्वपूर्ण होती है।

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