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'चालीस' के गुट ने सल्तनत के सुदृढ़ीकरण तथा पतन में क्या भूमिका निमाई?

इल्तुतमिश ने तुर्क-ए-चहलगनी (चालीस का समूह) की स्थापना की थी | इस समूह में वे अमीर हुआ करते थे जो शासन के प्रबंधन में सुल्तान की सहायता किया करते थे। इल्तुतमिश की म त्यु के पश्चात इनके हाथों में काफी शक्ति आ गई थी। कई वर्षा तक वे एक के बाद दूसरे सुल्तानों का चयन करते रहे | अन्ततः बलबन ने इस समूह को नष्ट कर दिया।

  इल्तुतमिश को मंगोलों से प्रत्यक्ष संघर्ष को टालने की आवश्यकता महसूस हुई | अत: जब ख्वारिज के शाह का पुत्र जलालुद्दीन मंगबरानी मंगोलों से बचता हुआ शरण पाने इल्तुतमिश के दरबार में आया तो इल्तुतमिश ने उसे इंकार कर दिया। इस प्रकार इल्तुतमिश ने दिल्‍ली सलल्‍्तनत को मंगोलों द्वारा होते विनाश से बचाया।

   सन 1225 के उपरांत इल्तुतमिश ने अपनी सेनाओं को पूर्व प्रदेश के विरोधों को दबाने के लिए प्रयोग किया। सन 1226-1227 में इल्तुतमिश ने अपने पुत्र के नेत त्व में विशाल सेना भेजी, जिसने इवाजखान को पराजित कर बंगाल और बिहार को पुनः दिल्‍ली सल्तनत का हिस्सा बनाया। राजपूत शासकों के विरुद्ध भी समान अभियान चलाया गया। सन 1226 में रणथम्भौर को जीता तथा सन 1231 तक इल्तुतमिश ने अपना अधि कार मन्दौर, जालौर, बयाना तथा ग्वालियर पर कर लिया था।

   इसमें कोई संदेह नहीं कि इल्तुतमिश ने ऐबक के छूटे हुए कार्य को पूर्ण किया था। दिल्‍ली सल्तनत अब एक विस्त त भू-भाग तक फैली थी। इसके अतिरिक्त उसने अपने विश्वासपात्र अधिकारियों का एक समूह तुर्क-ए-चहलगनी (चालीस) बनाया था। वह एक दूरदर्शी शासक था और उसने नवस्थापित दिल्‍ली सल्तनत को संगठित और नियोजित किया । इल्तुतमिश ने सफलतापूर्वक दिल्‍ली के असंतुष्ट अमीरों का सफाया किया। उसने दिल्‍ली सल्तनत को गजनी, गोर मध्य एशिया से अलग किया | इल्तुतमिश ने बगदाद के अब्बासी खलीफा से बैधता पाने के लिए पत्र भी सन 1229 में हासिल किया था।

   इल्तुतमिश ने प्रशासनिक संस्थानों जेसे 'इक्त', 'सेना' तथा 'सिक्‍का' व्यवस्था को रूप देने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए | उसने सलल्‍्तनत को दो मूल सिक्‍के दिए -चांदी का टंका तथा तांबे का जीतल | अपने अधीनस्थ क्षेत्रों पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इल्तुतमिश ने व्यापक स्तर पर अपने तुर्क अधिकारियों को (वेतन के बदले भूमि समझौता) इक्ता दान किए | इक्ता को पाने वाले को इकतदार कहा जाता था तथा वे अपने अधीन क्षेत्रों से राजस्व वसूल करते थे। इसके द्वारा वे सत्ता की सेवा प्रदान करने के लिए एक सेना का रख-रखाव किया करते थे, कानून तथा व्यवस्था का पालन करवाया करते थे तथा अपने खर्चो की भरपाई किया करते थे। इल्तुतमिश ने दोआब के आर्थिक संभावनाओं को पहचाना और मुख्यतः उसी क्षेत्र में इक्ता बांटे गए | इसने इल्तुतमिश को उत्तर भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित क्षेत्रों में से एक पर वित्तीर श्र णजासनिक नियंत्रण के प्रति आश्वस्त किया।

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