लिखित भाषा वह भाषा व्यवस्था है जिसे सतर्कता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। लेखन एक सुविचारित पद्धति है इसीलिए इसकी संरचना अधिक सुगठित, मानकीकृत और एकरूपता लिए हुए होती है। इस प्रकार का संरचनागत गठन बोलचाल की भाषा में प्राय: नहीं होता है। यह भी ध्यान देने की ब्रात है और इससे मौखिक और लिखित भाषा की विशेषताओं की तुलना संभव हो पाती है कि जब लिखित संदेश देना संभव हुआ तो संदेशवाहक की मध्यस्थता समाप्त डोने लगी। मौखिक संप्रेषण पूर्णतः संदेशवाइक पर निर्भर था। मौखिक संदेश संदेशवाइक की सीमा के कारण थोड़ा बहुत बदल भी जाता था। अगर इम साहित्य की वाचिक परंपरा को देखें तो यट्ट स्पष्ट होता है कि मौखिक रूप से एक से दूसरे तक पहुँचते-पहुँचते साहित्यिक संदेश और उसकी संरचना में बहुत बदलाव आ जाता था। लिखित संदेश ऐसे संदेशवाइकों द्वारा हज़ारों मील तक पहुँचाया जा सकता है जो स्वयं नहीं जानते कि संदेश क्या है। उनके लिए लिखित संदेश की उस भाषा को जानना-समझना जरुरी नहीं है जिसमें वड लिखा गया है। पदबंधित लेखन किसी भी अन्य उस साधन की तरद्ठ है जो मानव की शक्ति का विस्तार करता है। लेखन के आविष्कारक ने अनेक सामाजिक जरूरतों की आपूर्ति को संभव बनाया भाषिक व्यव्ठार की उसने नई दिशाएँ खोलीं और सामाजिक संप्रेषण तथा आर्थिक परिवर्तन में अपनी व्यापक भूमिका निभाई।
इसके अलावा लिखित भाषा की इकाइयों जैसे वाक्य,
उपषाक्य, पटबंध, अनुच्छेट
आदि विभिन्न विराम चिद्द्नों और एक निश्चित विन्यास द्वारा स्पष्टता के साथ
उत्लिखित रहती हैं। उधर बोलचाल की भाषा इतनी सहजता, स्वाभाविकता
तथा तीद्रता से उत्पन्न घोती है कि इस भाषा रूप में संरचनागत जैसी जटिलता तथा कसाव
आना एक प्रकार से असंभव सा ही छोता है। यही नहीं, कोई वक्ता
बोलने से पहले जटिल संरचनाओं की पूर्व संकल्पना कर कं भी ब्रोलना चाष्ठे तो भी
वष्ठ इन जटिल संरचनाओं को लेखन में तो ला सकता है. बोलचाल की भाषा में यह संभव
नहीं होता। लिखते समय तो प्यक्ति लंबे-लंबे वाक्यों में अपनी ब्रात कष्ठ सकता है
परंतु बोलते समय ऐसा कर पाना अनेक कारणों से संभव नहीं हो पाता। यही कारण है कि
बोलचाल की भाषा में प्राय: शिथिल संरचनाएँ टेखने को मिल्लती हैं।
इसके अलावा शब्दों तथा अनेक प्रकार के पटब॑ंथों एवं उपवाक्धों की पुनरावृत्ति की प्रषृत्ति हमें बोलचाल की शाषा में पर्याप्त मात्रा में टिखाई टेती है। बोलचाल या मौखिक भाषा में बोलते-बोलते अधूरे पटों. पूरक वाक्य संरचनाओं, तकिया कल्लाम आटि का बीच-बीच में खूब प्रयोग टिखाई देता हैं। उदटाहरणार्थ 'आप समझते हूँ. “मैंने कहा......, "आप जानते ही हैं....... “आप समझते हैं....', माफ कीजिए.....'. 'हमें सोचना है....', 'समझे ,” आप समझते हैं ....'. 'ठीक है..." आदि अनेक ऐसी ही संरचनाएँ हैं जिनको हिंटी भाषी षक्ता बोलचाल की भाषा में प्रयोग करते हैं।
यही नहीं संहिता, असुतान,
बल्माघात, यति, चेष्टाओं,
छाउ-भाष प्रटर्शन, दाथ-पैर छिलाना, उंगलियों के तरह-तरह के संकेत आदि के माथ्यम से पक्ता दोलचाल की भाषा को
बोलते समय छोटे-छोटे उच्चारण खंडों में विभक्त करता चलता हैं।
लिखित भाषा की संरचना में हमें हमेशा एक क्रमबद्धता
टिखाई टेती है। कर्ता, कर्म, क्रिया थास्थान प्रयुक्त होते हैं परंतु बोलचाल की भाषा में आपको प्राय यह
क्रम विज्यंद्धित मिलेगा। लिखित भाषा में ऐसा प्राय नहीं छोगा कि विशेषण संज्ञा के
ढाट, क्रिया विशेषण क्रिया के बाद आएं. परंतु बोलचाल की भाषा
में इस प्रकार का क्रम परिवर्तन भी खूब टेखने
को
मिलता है। नीचे उम ब्रोलचाल की भाषा का एक नमूना प्रस्तुत कर रहे हैं। यद एक चुनाफ-अभियान
के दौरान एक पार्टी के नेता द्वारा दिए गए भाषण से उद्घृत्त है। यहाँ इस भाषण के
अंश को लिख कर वक्ता द्वारा प्रदर्शित हाव-भाव चेष्टाओं संहिता,
बलाघात अनुतान, ह्ाथ-पैर छिलाना आदि को
प्रदर्शित करना तो कठिन है, पष्ठ तो केवल भाषण को सुनते समय
ही देखा जा सकता है। हॉ. यहाँ पर आप वाक्यांशों. शब्दों आटि की पुनराषृत्ति तथा
क़म परिवर्तन को देख सकते हैं :
भाइयो, अंत में
एक बात और चाहूँगा कहना आपसे | कहना क्या, बताना चाहूँगा, याद दिलाना चाहूँगा कि न मूलें आप इस
बात को कि कितना कीमती है वोट आपका, बहुत कीमती है, जी हाँ बहुत और इस कीमती वोट की पहचानें आप कीमत | न
जाने दें इसे जाया। आपका यह एक वोट, यह कीमती वोट, बदल देगा भविष्य इस देश का, देश की राजनीति का।
केंद्र में स्थाई सरकार ही न हुई तो सोचिए कहाँ जाएगा हमारा, आपका जी हाँ, आपका यह देश और आप जानते ही हैं कि
स्थायी सरकार, कौन दे सकता है स्थाई सरकार। एक मात्र एक ही
पार्टी | इसलिए मैं दरखास्त करता हूँ, हाथ
जोड़ अपने सभी भाइयों से बहनों से कि अपना अमूल्य वोट देकर अपने इलाके के
उम्मीदवार श्री को सफल बनाएँ |
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