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योजनाबद्ध और गैर योजनाबद्ध निर्णयों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

हरबर्ट साईमन (1997) ने योजनाबद्ध व गैर-योजनाबद्ध निर्णयों में मेद स्थापित किया है। उनके अनुसार कार्यात्मक निर्णय दिन-प्रतिदिन के होते हैं, जिन्हें सम्पादित करने के लिए पुनरावृति होती रहती है तथा जिनके लिए एक निश्चित कार्यक्रम या प्रक्रिया निर्धारित की जाती है, ताकि प्रत्येक बार उन्हें नये सिरे से शुरू करने की आवश्यकता उनकी उपस्थिति होने पर न हो।

   कार्यात्मक निर्णयों में समस्या के बारे में आदतों, कौशल तथा ज्ञान महत्वपूर्ण है। ऐसे निर्णय में, गणितीय प्राकृप तथा संगणक निर्णय निर्माता को तार्किक निर्णयों तक पहुँचने में सहायता कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक संगठन के लिए वित्तीय नियमों मानव संसाधन आदि एक सामान्य या दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलाप है, जो एक संगठन में घटित होते रहते हैं। यदि इन सब से निपटने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया निर्धारित कर दी जाती है, तब संगठक तथा स्थित प्रक्रियाओं को सहायता से वेतन-निधि, कर्मचारी की उपस्थिति आदि को आसानी से निर्णात किया जा सकता है।

   दूसरी तरफ, अकार्यात्मक निर्णय उन मामलों को निपाटने हेतु लिए जाते हैं जो नवीन असंचरित / असंगठित तथा असाधारण परिणाम वाले होते हैं। कोई करो या डूबो पद्धति पहले से उपस्थित या प्राप्त नहीं होती तथा प्रत्येक प्रश्न का निपटारा अलग- अलग रूप से किया जाता है। उपयुक्‍त एवं प्रासंगिक निर्णय लेने के लिए क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से भावनाए योग्यता तथा कार्य के लिए उपयुक्त कौशलों में प्रशिक्षण महत्वपूर्ण तथा प्रासंगिक बन जाते हैं। उदाहरण के लिए सरकार के दृष्टिकोण मेँ परिवर्तन के कारण संगठन में वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार के मुद्दे एक संगठन के लिए नई चुनौतियाँ होती हैं और संगठन के कल्याणहित की रक्षा के लिए निर्णय तक पहुँचने के लिए एक नवीन सोच की आवश्यकता होती है। निम्नलिखित तालिका तार्किक कार्यात्मक तथा अकार्यात्यक निर्णयों की परम्परागत तथा आधुनिक तकनीकों को उजागर करती है।

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