प्रारंभ में औपनिवेशिक शासकों ने भारत के संविधान निर्माण की माँग को ठुकरा दिया था। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों, द्वितीय विश्व युद्ध की आहट और ब्रिटेन में नई सरकार के गठन ने भारत में ब्रिटिश सरकार को नये संविधान निर्माण को मजबूर कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने अपना केबिनेट सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। वे एक ड्रापट प्रस्ताव लेकर आये थे जिसमें भारत के संक्धिन के गठन की बात थी। यह प्रस्ताव द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् लागू किया जाना था। लेकिन इसके लिये मुस्लिम लीग एवं कांग्रेस दोनों की सहमति आवश्यक थी। क्रिप्स मिशन के ड्राफ्ट प्रस्ताव में निम्न सिफारिशें थी -
(1) भारत को प्रभुत्व (डोमिनियन) का दर्जा प्रदान करना
(2) सभी प्रांत एवं राज्यों को मिलाकर भारतीय संघ का गठन करना
(3) निर्वाचित संविधान सभा के द्वारा भारत के संविधान की रचना करना लेकिन जो प्रांत संविधान को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति बरकरार रखने की छूट थी।
इन प्रांतों को अलग संविधानिक प्रबंधों को अपनाने की छूट थी।
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और
मुस्लिम लीग दोनों ने ही क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया।
मुस्लिम लीग ने भारत को सांप्रदायिक आधार पर बाँटने की मॉँग की जिसमें उसने कुछ
प्रांतों को स्वतंत्र पाकिस्तान राज्य बनाने की मॉंग की। उनकी माँगें थी कि भारत
और पाकिस्तान दोनों के लिए दो अलग-अलग संक्धिन सभा होनी चाहिए।
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