भारत में आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि आपातकाल के दौरान, सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किये जाते है, लेकिन वास्तव में असली शक्तियां केन्द्र सरकार या प्रधानमंत्री के पास होती है। हमारे यहां तीन प्रकार की आपातकालीन व्यवस्था है जो कि विभिन्न आघारों पर घोषित की जाती है। ये तीन आपातकाल है - राष्ट्रीय आपातकाल, राज्यों के अंदर आपातकाल तथा वित्तिय आपातकाल।
1.
राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार भारत
में राष्ट्रीय आपातकाल इन परिस्थितियों में लगाया जा सकता है :- युद्ध, बाहरी आक्रमण, आंतरिक उधल-पुथल या सशस्त्र विद्रोह संपूर्ण
भारत में या भारत के किसी भाग में | 44 वे संशोधन में
"आंतरिक उथल-पुथल' शब्द का बदलकर सशस्त्र विद्रोह कर
दिया गया। राष्ट्रपति केबिनेट के निर्णय के पश्चात् आपातकाल की घोषणा कर सकते
हैं। कैबिनेट लिखित में आपातकाल के पक्ष में यह निर्णय लेती है फिर वह राष्ट्रपति
को बताती है। राष्ट्रपति राष्ट्र के हित को ध्यान में रखते हुए एवं अपने आप को
संतुष्ट मानते हुए ऐसी घोषणा करते हैं। अनुच्छेद 359 एवं 359 के अनुसार राष्ट्रपति को मूल अधिकारों को निरस्त करने का अधिकार है सिवाय
अनुच्छेद 20 एवं अनुच्छेद 21 के।
(जुर्म के मामले में सुरक्षा करने का अधिकार तथा जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का
अधिकार) राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान केन्द्र सरकार की शक्तियां राज्यों के विधायी
एवं कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र तक पहुंच जाती है। केन्द्र, राज्यों को कार्यपालिका शक्तियों को ठीक से इस्तेमाल करने का निर्देश दे
सकता है। अनुच्छेद 353 में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि
वह संघ सूची में शामिल नहीं किये विषयों पर भी कानून बना सके। इसमें राज्य सूची के
अंतर्गत आने वाले विषय भी शामिल है (अनुच्छेद 250)। आपातकाल के
दौरान राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वे केन्द्र एवं राज्यों के बीच
वित्तिय संसाधनों का आंवटन कर सके (अनुच्छेद 253)। किसी भी
प्रकार की आपातकाल को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखना आवश्यक है। यदि दोनों सदन
एक महीने के अंदर आपातकाल की घोषणा को मंजूरी नहीं देते है तो ऐसी स्थिति में आपातकाल
निरस्त माना जायेगा। यदि आपातकाल की घोषणा के दौरान लोकसभा भंग हो जाती है तो ऐसी
स्थिति में भी आपातकाल को समाप्त कर दिया जायेगा। यदि यह मामला राज्य सभा में
पारित हो लेकिन लोकसभा में नहीं तो भी घोषणा निरस्त मानी जायेगी। इसके लिए एक
महीने का समय निर्धारित किया गया है। आपातकाल की घोषणा यदि दोनों सदनों द्वारा
पारित कर दी जाती है तो यह छः महीने पश्चात् समाप्त हो जायेगी। इसे छः महीने के
लिये आगे और बढ़ाया जा सकता है। आपातकाल की घोषणा को मंजूरी के लिए दो-तिहाई बहुमत
की आवश्यकता होती है। दोनों सदनों में उपस्थित सदस्य इस पर मतदान करते हैं। इसके
अलावा यदि लोक सभा आपातकाल की घोषणा के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित कर दे तो यह
अमान्य हो जायेगी। यदि ऐसे प्रस्ताव का नोटिस सदन के कुल सदस्यों का दसवाँ भाग इस
पर हस्ताक्षर करके राष्टपति का दे या लोकसभा अध्यक्ष को दे तो इसपर 14 दिनों के अंदर एक विशेष सत्र बुलाया जाता है ताकि इस पर चर्चा हो सके।
भारतीय संविधान में न्यायिक
पुनरावलोकन का प्रावधान है। इसका अर्थ है कि न्यायपालिका को यह अधिकार दिया गया है
कि वह विधायिका द्वारा पारित किसी भी कानून की समीक्षा कर सकती है तथा संविधान की
व्याख्या भी कर सकती है। यदि कानून संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं है तो वह
ऐसे कानून को अमान्य घोषित कर सकती है। लेकिन आपातकाल की घोषणा को 42वें संविधान संशोधन द्वारा न्यायिक समीक्षा की परिधि से हटा दिया गया है।
लेकिन 1978 में फिर से 44वें संशोधन
द्वारा इसे बहाल कर दिया गया। आपातकाल की घोषणा का संसद के दोनों सदनों द्वारा दो
महीने के भीतर मंजूरी लेना जरूरी है। यदि इस समय के अंतर्गत संसद से मंजूरी नहीं
ली गयी तो यह आपातकाल निस्प्रभावी माना जायेगा। एक बार संसद से मंजूरी लेने के बाद
आपातकाल छः महीने तक जारी रहता है जब तक कि राष्ट्रपति इसे समय पूर्व हटा नहीं
लेते। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, तीन बार देश में
राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया है। पहला, 1952 से 1968 तक, जब भारत एवं चीन के बीच युद्ध हुआ था। दूसरी
बार 1971 से 1977 तक जब भारत एवं
पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तथा तीसरी बार 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक। पहले दो
बार आपातकाल युद्ध की वजह से लगाया गया था लेकिन तीसरी बार आपातकाल केन्द्र सरकार
द्वारा आंतरिक उथल-पुथल की वजह से लगाया गया था।
2.
राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356)
राज्य आपातकाल प्राय: राष्ट्रपति शासन के नाम से भी जाना जाता है।
राज्यों के अंतर्गत आपातकाल तब लगाया जाता है, जब राज्यों में
संव्धानिक संकट उत्पन्न हो गया हो। लगभग सभी राज्यों में केवल दो राज्यों को
छोड़कर छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जो कि अभी नये राज्य बनाये गये हैं अलग-अलग समय पर
आपातकाल लगाया जा चुका है। राज्यों में आपातकाल राष्ट्रपति द्वारा लगाया जाता है
जब वे राज्यपाल द्वारा दी गयी रिपोर्ट से संतुष्ट हो गये हों कि राज्य में
संविधानिक तंत्र पूरी तरह से विफल हो गया है। राष्ट्रपति शासन इन परिस्थितियों में
लगाया जाता है :- यदि राज्य विधानमंडल अपने नेता यानी मुख्यमंत्री चुनने में असफल
हो गया हो, गठबंधन का बिखर जाना, यदि
कुछ कारणों से चुनाव नहीं कराये जा सके हों तथा विधान सभा में सरकार का बहुमत खो
देना। हालांकि राज्यों में आपातकाल राष्ट्रपति द्वारा लगाया जाता है लेकिन
राज्यपाल ही राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में राज्य की बागडोर संभालते है। इसे
हम राज्यों में केन्द्र शासन भी कहते है। केन्द्र शासन को राष्ट्रपति शासन कहते
है। यह जम्मू एवं कश्मीर में नहीं लगाया जाता, उसमें केवल
राज्यपाल का शासन होता है। राष्ट्रपति, राज्यपाल के द्वारा
कार्यपालिका एवं विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल करता है। लेकिन उनके कार्यो में
न्यायपालिका के कार्य नहीं आते है।
3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद-360)
अनुच्छेद 360 के अनुसार वित्तीय आपातकाल भारत
में वित्तीय अस्थिरता या संकट की स्थिति में लगाया जाता है। अभी तक भारत में
वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया गया है। यदि भारत में वित्तीय आपातकाल लगाने की नौबत
आई तो इसे संसद द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है। इसे संसद के दोनों सदनों के
समक्ष रखना होगा। यदि इस दौरान लोकसभा का विघटन हो जाये तो वित्तीय आपात भी स्वतः
ही समाप्त हो जायेगा। तीस दिनों की समाप्ति के बाद तथा यह पुनर्गठन तक जारी रहेगा।
वित्तीय आयात के दौरान राष्ट्रपति सरकारी अफसरों के वेतन एवं भत्तों में कटौती
करने का आदेश दे सकता है उनमें उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश
भी शामिल होंगे। यहां तक कि अनुच्छेद 207 के अधीन धन
विधेयकों तथा अन्य विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखा जाए जब वे
राज्य विधानमंडलो द्वारा पारित कर दिये जाऐं। जम्मू और कश्मीर के मामले में
वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया जा सकता क्योंकि उसे अनुच्छेद 370 के तहत् विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है।
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