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नैना वह छवि नाहिन भूलै। दया भरी चह टिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले।वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरे।

 1. नैना वह छवि नाहिन भूलै।

   दया भरी चह“ँ टिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले।

   वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरे।

   वह बतरानि मुरलि हरि की वष्ठ देखन चह्ूँ कोरे।

   वह धीरी गति कमल फिरावन कर लै गायन पाछे।

   वह बीरी मुख वेनु बजावति पीत पिछौरी काछे।

उत्तर – प्रेम मालिका' क्रे संदर्भ में बावू ब्रजरत्नदास का मानना है क्रि यह रचना संवत्‌ 1920 वि. में प्रकाशित हुई थी। इस मालिका में सौ पद संगृहीत हैं, जो प्रेम लीला तथा दैन्‍्ध संबंधी हैं। अनुभूति तथा भक्ति का मधुर एवं गंभीर दर्शव हम इस ग्रंथ में करते हैं। कट्क्तियाँ तथा उपालंभ विषयक पद मन को प्रभावित कर देते हैं। यथा-

   नैना वह छवि नाहिन भूलै।

   दया भरी चह“ँ टिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले।

   वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरे।

   वह बतरानि मुरलि हरि की वष्ठ देखन चह्ूँ कोरे।

   वह धीरी गति कमल फिरावन कर लै गायन पाछे।

   वह बीरी मुख वेनु बजावति पीत पिछौरी काछे।

 

व्याख्या - सखी मेरी तो यह बिपति भोगी हुई है, इस से मैं तुझे कुछ नहीं कहती; दूसरी होती तो तेरी निन्‍दा करती और तुझे इससे रोकती। सखी दूसरी होती तो मैं भी तो उससे यों एक संग न कह देती। तू तो मेरी आत्मा है। तू मेरा दुःख मिटावैगी कि उल्टा समझावैगी? पर सखी एक बड़े आश्चर्य की बात है कि जैसी तू इस समय दुखी है वैसी तू सर्वदा नहीं रहती। नहीं सखी ऊपर से दुखी नहीं रहती पर मेरा जी जानता है जैसे रात बीतती है।

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