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राज्यों के भाषाई गठन पर एक टिप्पणी लिखें।

1950 के दशक में भाषा के आधार पर राज्यों की माँग उठने लगी। एक अक्टूबर 1953 को, देश का प्रथम भाषाई राज्य स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बनाया गया, वह था आन्ध्र राज्य। यह, एक अक्टूबर 1953 को पॉटी श्रीरामूलू की मौत के बाद बनाया गया, जिन्होंने अलग भाषाई राज्य की माँग करते हुए अनशन किया और उसके बाद उनकी मृत्यु हो गयी थी। यह राज्य मद्रास राज्य से अलग करके बनाया गया था जिसकी जनसंख्या तेलगू भाषा बोलने वालों की थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी 1937 में भाषा के आधार पर उडीसा एवं सिंन्ध का गठन किया गया था। इन उदाहरणों में ब्रिटिश सरकार की नीति भाषा के आधार राज्यों के निर्माण के विपरीत थी। 1920 के दशक में काँग्रेस ने भी अपनी प्रांतीय समितियों का गठन भाषा के आधार पर की थी। परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत, सरकार राज्यों को भाषा के आधार पर बनाने के समर्थन में नहीं थी। यह एक प्रकार से कॉगेस पार्टी का अपनी नीतियों से अलग चलने का कदम था, जो उसकी प्रांतीय समितियों के गठन के भाषा के आधार बनाने के विपरीत था। सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन करने का प्रमुख कारण था उस समय की परिस्थितियों में आये बदलाव। उस वक्‍त देश के सामने कई चुनौतियाँ थीः विभाजन के पश्चात्‌ बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे, शरणार्थियों की संख्या में बढ़ोतरी इत्यादि। इन सब परिस्थितियों के कारण केन्द्र ने यह महसूस किया कि भारत को एक मजबूत केन्द्र की आवश्यकता है। तथा भाषाई आधार पर विभाजन इसे कमजोर करेगा। इस परिवर्तन के बाद ही पॉटी श्रीरामूलू ने आंध्रप्रदेश राज्य के गठन के लिय अनशन करने का फैसला किया था।       

             

   1953 में आंध्रप्रदेश का गठन होने के पश्चात्‌ भारत सरकार ने न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग (एस आर सी) का गठन किया था। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में प्रस्तुत की। इस आयोग के पूर्व भी 1948 में धर आयोग का गठन किया था, जिसमें भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की बात थी। धर आयोग ने भाषा के आधारपर राज्यों के गठन का पक्ष नहीं लिया था। फिर से, धर आयोग की सिफारिशों की समीक्षा करने के लिये एक समिति (जे वी पी समिति)का गठन किया गया, जिसके सदस्य जवाहर लाल नेहरू, वललभ भाई पटेल एवं पट्टा वी सीतारमैया थे। यह समिति धर आयोग की रिपोर्ट से सहमत थी एवं राज्यों के भाषा के आधार परपुनर्गठन के विरूद्ध थी। राज्य पुनर्गठन आयोग (एस आर सी)ने भाषा के अधार पर राज्य पुर्नगठन का सुझाव दिया था तथा उसकी सिफारिशों के अनुसार 1956-1950 में कई राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया गया था।

             

   1966 में पंजाब तथा उसके साथ हरियाणा एवं हिमाचल प्रदेश का गठन, पंजाबी सूबा आंदोलन का परिणाम था। पंजाबी सूबा आंदोलन अलग पंजाब राज्य पंजाबी भाषा के आधार बनाने की मॉग से शुरू हुआ था। यहाँ इस केस में धर्म भी शामिल हो गया क्योंकि ज्यादातर पंजाबी भाषा बोलने वाले सिख धर्म से ताललुक रखते थे। मास्टर तारा सिंह और संत फतेह सिंह ने पंजाबी सूबा आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पंजाब राज्य बनने के पश्चात पंजाबी भाषा से अलग पंजाब के क्षेत्रों को अलग करके हिमाचल प्रदेश एवं हरियाणा राज्य बनाए गए। जिस क्षेत्र को पंजाब से अलग करके हरियाणा और हिमाचल प्रदेशबनाये गए वहाँ की हिन्दी प्रमुख भाषा है।

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