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न्यायिक समीक्षा पर एक टिप्पणी लिखें।

  न्यायिक समीक्षा एक तकनीक एवं प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विधायिका कार्यपालिका एवं सरकारी एजेन्सियों के कार्यों की समीक्षा की जाती है। वास्तव में ये कार्य संविधान के अनुसार है या नहीं इनकी वैद्यता की जाँच की जाती है। न्यायिक पुनरावलोकन की स्थापना इसलिए की गयी क्‍योंकि (1) संविधान एक कानूनी मंत्र है, 2) कानून सर्वोपरी है तथा यह संविधान अनुसार होना चाहिए। अब यह पूरी तरह स्थापित हो गया है कि भारत में न्यायिक पुनरावलोकन संविधान की मूल विशेषता या संविधान का मूल ढ़ाँचा है।

   न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है किसी भी निर्णय की समीक्षा करना न्यायिक पुनरावलोकन का उन देशों में काफी महत्व है जहाँ पर लिखित संविधान है, क्योंकि उन देशों में सीमित सरकार की अवधारणा लागू होती है। न्यायिक पुनरावलोकन इस अर्थ में माना जाता है कि इससे किसी विधायिका की शक्तियों की मान्यता कहों तक उचित है तथा सरकार के कार्यों की वैधता कहों तक है। विशेषकर संविधान के प्रावधानों के अनुरूप सरकार के कार्य संपन्न हो रहे हैं या नहीं इन सब कारणों के लिए न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्तियाँ दी गयी है।

   सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा का अधिकार संविधान एवं अन्य विधायी कार्यों तकलागू होता है। हालांकि न्यायिक पुनरावलोकन संविधान संशोधन में विवादास्पद होता है। क्योंकि संविधान में अनुच्छेद 58 के अनुसार, संविधान में संशोधन की शक्ति केवल संसद द्वारा ही दी जा सकती है। हालांकि अनुच्छेद 13 में यह भी कहा गया है कि संसद ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जिससे कि मौलिक अधिकारों पर असर पड़े।

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