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यात्रा-वृत्तांत विधा की विशेषताएँ बताते हुए राहुल सांकृत्यायन के यात्रा-वृत्तांतों का परिचय दीजिए।

 यात्रा-वृत्तात की विशेषताएँ

साहित्य को किसी बैंधे-बैँधाए साँचे में तो नहीं बाँधा जा सकता फिर भी उसकी प्रत्येक विधा की अपनी कुछ खास विशेषताएँ होती हैं जो उन्हें एक-दूसरे से अलग करती हैं और उन्हें एक विशेष पहचान देती हैं। यात्रा-वृत्तांत में स्थान और तथ्यों के साथ-साथ आत्मीयता, वैयक्तिकता. कल्पनाशीलता और रोचकता का विशेष महत्व होता है।

स्थानीयता -  यात्रा-वृत्तांत में लेखक का उद्देश्य स्थान-विशेष के संपूर्ण वैभव, प्रकृति, रस्मों-रिवाज, रहन- सहन, आचार-विचार, मनोरंजन के तरीके तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण का चित्रण करना होता है। यह लेखक पर निर्भर करता है कि वह इनमें से किस तत्व को ज्यादा प्रमुखता देता है। किसी प्रदेश-विशेष की यात्रा में उसे जो चीज़ सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, आमतौर से उस तत्व को वह प्रधानता देता है। इसलिए उसके चित्रण में कहीं विवरण तो कहीं भावों की प्रधानता होती है। कभी-कभी वह तुलनात्मक पद्धति का सह्ठारा भी लेता है। प्रकृति-सौंदर्य के चित्रण में उसकी शैली भावात्मक हो उठती है। यदि वह स्थान-विशेष को जल्दी में देखता है तो उसकी शैली वर्णनात्मक हो जाती है। अपने देश या प्रांत की अन्य प्रांत या विदेश से तुलना करते समय लेखक तुलनात्मक शैली का सहारा लेता है।

तथ्यात्मकता -  यात्रा-वृत्तांत में लेखक की कोशिश होती है कि यात्रा के दौरान उसने जो कुछ देखा है उससे संबंधित तथ्यों का विवेचन कर दे। लेकिन ऐसा करते समय वह भूगोल और इतिहास-लेखन की शैली का सहारा न लेकर कथा-साहित्य की सहज, सरल भाषा शैली को अपनाता है जिससे वृत्तांत में रोचकता बनी रहे।

आत्मीयता - याता-वत्तांत में आत्मीयता का भाव होना जरूरी है। यात्रा के दौरान लेखक स्थानों, स्मारकों, दृश्यों आदि को इतिहास और भूगोल के रूप में नहीं देखता, बल्कि वह उनसे आत्मीय संबंध स्थापित करता है ताकि पाठक को पढ़ते समय अपनापन और सच्चाई की अनुभूति हो सके | इसमें लेखक यथातथ्य वर्णन से बचने की लगातार कोशिश करता है ताकि वृत्तांत, उबाऊ, नीरस और इतिहास न बनने पाए। दृश्यों अथवा स्थितियों के साथ आत्मीय रिश्ता ही पाठक को वृत्तांत से जोड़ने में सहायक सिद्ध हो सकता है। आत्मीयता ही उसे गाइड बनने से रोकती है।

वैयक्तिकता - यात्रा-वृत्तांत में वैयक्तिकता की जरूरत अन्य विधाओं की तुलना में कहीं ज्यादा महसूस की जाती है। खान-पान, वेश-भूषा, पारिवारिक सुख-सुविधा का अहसास यात्रा के दौरान कुछ ज्यादा ही होता है क्योंकि व्यक्ति उस समय अपने आत्मीय जनों से दूर होता है। यात्रा के दौरान आदमी अपरिचित लोगों के बीच रहता है जहाँ उसकी शक्ति और प्रतिभा से लोग वाकिफ नहीं होते, ऐसे में लेखक को अपने व्यक्तित्व से दूसरों को परिचित एवं प्रभावित करना होता है। इसलिए यात्रा-वृत्तांत में लेखक के व्यक्तित्व की प्रभावशाली छाप मौजूद रहती है।

रोचकता - यात्रा-वृत्तांत का सबसे अनिवार्य गुण रोचकता है। यह पाठक को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। यात्रा-वृत्तांत में रोचकता लाने के लिए लेखक किसी स्थान से जुड़ी लोक-कथा, दंत- कथा आदि का उल्लेख करता है। कभी-कभी वह अचानक होने वाली घटनाओं का वर्णन करता है तो कभी रोचक शीर्षक के समावेश से वृत्तांत की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करता है। यानी रोचकता को लेखक एक तकनीक के तौर पर इस्तेमाल करता है। इसमें मिथकों, प्रतीकों, अलंकारों और मुहावरों का भी प्रयोग किया जाता है। चित्रात्मक वर्णन भी इस विधा की एक खास विशेषता है। संवेदनशीलता न केवल स्वाभाविक बनाती है बल्कि इसे एक साहित्यिक कृति का रूप भी देती है।

राहुल सांकृत्यायन के यात्रा-वृत्तात

यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि हिंदी लेखकों में राहुल सांकृत्यायन ने जितनी यात्राएँ की हैं उतनी किसी अन्य ने नहीं। उन्होंने यात्रा-वृत्तांत भी काफी लिखे हैं।

   ध्यान देने की बात यह है कि राहुल की यात्राएँ मनोरंजन के लिए नहीं होती थीं बल्कि उनके पीछे एक महत्‌ दर्शन छिपा होता था। सन्‌ 1926 में उन्होंने पहली लद्दाख यात्रा की थी। इस संबंध में उन्होंने लिखा है - “मेरी लद्दाख यात्रा नाम से सन्‌ 1939 में प्रकाशित यह वृत्तांत पहल कदमी का आख्यान नहीं और न किसी प्रकृति-निहारक कवि का वायवी दास्तान, बल्कि मेरठ से मुल्तान, डेरा गाजी खान, पुणछ रियासत, कश्मीर जोजला दर्रा होते हुए लद्दाख मार्ग की एक विजुअल रिपोर्ट ।" राहुल का यह यात्रा-वृत्तांत हिंदी साहित्य में अपना अनूठा सम्मान रखता है और इसमें दृश्यों का सजीव चित्रण भाषा के माध्यम से अनुपम आनंद की सृष्टि करता है।

   यायावरी राहुल के जीवन का एक मिशन था | इसके पीछे उनकी जिज्ञासा वृत्ति थी। उनके यात्रा-वृत्तांतों में उस देश या स्थान के इतिहास-भूगोल की सम्यक जानकारी मिलती है। साथ ही लोकजीवन के आत्मीय चित्र भी उनके यहाँ आसानी से मिल जाते हैं। राहुल के यात्रा-वृत्तांतों में सामान्य जन, उनके रीति-रिवाज, धर्म आदि का बेबाक वर्णन मिलता है। उनमें सहज भाषा, मुहावरे और रेखाचित्र की मोहकता के साथ उस क्षेत्र के जीवन, परिवेश यानी आर्थिक-सामाजिक-सांस्कतिक परिस्थितियों को उजागर करने की अदभुत क्षमता है। राहुल सांकृत्यायन जन्मजात घुमक्कड़ थे और वे आजीवन घुमक्कड़ बने रहे। लगभग 40 वर्षों तक उन्होंने निरंतर यात्राएँ की। तिब्बत, रूस और हिमालय उनकी यात्राओं केआकर्षण-केंद्र थे। यात्राओं ने ही उन्हें एक लेखक के रूप में पहचान दी। उनका कहना है कि, “कलम के दरवाजे को खोलने का काम मेरे लिए यात्राओं ने ही किया, इसलिए मैं इनका बहुत कृतज्ञ हूँ।” उन्होंने अपनी यात्राओं के विविध, विचित्र व रोचक अनुभव यात्रा- वृत्तांतों में पिरोए हैं। उनके प्रमुख यात्रा-वृत्तांत हैं - तिब्बत में सवा वर्ष, मेरी यूरोप-यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी लद्दाख यात्रा, किन्नर देश में, रूस में पच्चीस मास, एशिया के दुर्गम भूखंडों में, लंका, चीन में क्या देखा, हिमालय-परिचय, जापान, दार्जिलिंग-परिचय आदि। डॉ० रघुवंश के अनुसार - "राहुल जी ने यात्रा-साहित्य के लिए विभिन्‍न माध्यम अपनाए हैं,शायद उनसे अधिक इस विषय पर इतने विविध रूपों पर किसी ने नहीं लिखा है।” दूसरे स्थान पर उन्होंने लिखा है कि, “यात्रा का बहुत बड़ा आकर्षण प्रकृति की पुकार में है। यायावर वही है जो चलता चला जाए, कहीं रुके नहीं, कोई बंधन उसे कसे नहीं और वह जो दर्शनीय है, ग्रहणीय है, रमणीय है अथवा संवेदनीय है, उसका संग्रह करता चले।”

   कहने का तात्पर्य यह है कि यात्रा-वृत्तांत में रचनात्मकता का विशेष महत्व है। राहुल के यात्रा-वृत्तांत पढ़ते हुए इसका भरपूर अनुभव होता है। राहुल सांकृत्यायन का यात्रा-साहित्य गुण एवं परिमाण (संख्या) दोनों दृष्टियों से प्रचुर एवं उच्चकोटि का है। देवीशरण रस्तोगी ने लिखा है कि, “यात्रा-वर्णन लिखने वाले साहित्यिकों में राहुल का नाम सबसे आगे आता है। देश-विदेश के अनुभवों का जब वह वर्णन करते हैं तो उनकी शैली और अधिक रसात्मक हो जाती है। वास्तव में इस रसात्मकता का आधार उनका अनुभव रहता है।” इस प्रकार

राहुल सांकृत्यायन का यात्रा-साहित्य एक बड़े उद्देश्य को लेकर लिखा गया है जिसमें वर्णित भूभाग का इतिहास-भूगोल, संस्कृति, धर्म, दर्शन, साहित्य, ज्ञान विज्ञान सभी का विविधआयामी चित्रण मिलता है।

   यात्रा-वृत्तांत वर्णन प्रधान एवं प्रकृतिपरक गद्य-विधा है। प्रकृति वर्णन तो आमतौर से सभी विधाओं में पाया जाता है लेकिन यात्रा-वृत्तांत का मूल ढाँचा ही इस पर खड़ा होता है। इसमें कथातत्व लगभग न के बराबर होता है। यात्रा ज्ञान और शिक्षा का प्रमुख साधन है। इससे मनुष्य की बुद्धि का विस्तार होता है। उसका अनुभव संसार समृद्ध होता है। घुमक्कड़ी के बादशाह माने-जाने वाले राहुल सांकृत्यायन के अनुसार - 'मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ी से बढ़कर व्यक्ति और समाज के लिए कोई हितकारी नहीं हो सकता। क्योंकि लेखक यात्रा-वृत्तांत में वर्णित अपने अनुभवों से लोगों को ज्ञान-विज्ञान की एक दृष्टि प्रदान करता है और इस तरह साहित्य और समाज के लिए उसका लेखन महत्वपूर्ण योगदान साबित होता है।

   साहित्य में उन्हीं को यात्रा-वृत्तांत का दर्जा दिया जा सकता है जिनमें लेखक की अपनी प्रकृति भी प्रतिबिंबित होती हो। यात्रा-वृत्तांत में लेखक की फक्‍कड़ता, घुमक्कड़ी वृत्ति, उल्लास, सौंदर्यबोध और ज्ञानार्जन की उत्कट-अभिलाषा परिलक्षित होनी चाहिए। लेखक के मन पर बाह्य जगत की जो भी प्रतिक्रिया होती है, जो भावनाएँ मन में उठती हैं, उसे वह गहराई के साथ व्यक्त करता है। इसीलिए यात्रा-वृत्तांत में संवेदना और अभिव्यक्ति का एक कलात्मक संतुलन देखा जा सकता है। इसमें सौंदर्य भावना के साथ-साथ किसी वस्तु के अंदर तक प्रवेश करने की जो बेचैनी होती है, वही लेखक को सफल यात्रा-वृत्तांतकार बनाती है अर्थात्‌ जिज्ञासा और शोधवृत्ति का यात्रा-वृत्तांत में विशेष महत्व होता है।

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