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स्वस्थान जल संचयन

 (क) स्वस्थान जल संचयन

उत्तर – स्व-स्थाने जल संग्रहण का तात्पर्य वहां जल संग्रहण है जहां यह मृदा प्रोफाइल में गिरता है। मृदा एवं जल संरक्षण के उपाय इस श्रेणी में आते हैं। अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्र, जहां जल की कमी है, मुख्यतः बारानी कृषि पर ही निर्भर हैं। अतः इन क्षेत्रों में जल उपयोग की दक्षता में सुधार करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए स्थानीय स्थितियों के लिए उपयुक्त वर्षाजल प्रबंधन की निपुण युकतियों के विकास की अत्यंत आवश्यकता है। जल संग्रहण के लाभों तथा पलवार के उपयोग के साथ-साथ जल संग्रहण की इन नवीन तकनीकों में कुल रन-ऑफ को कम करने व मृदा से जल वाष्पन को रोकने की क्षमता है। इससे बारानी क्षेत्रों में पौधों के लिए जल की उपलब्धता बढ़ जाती है और फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है। बारानी स्थितियों के अंतर्गत सामान्यतः मृदा नमी संरक्षण की निम्नलिखित तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

क) कंटूर बांध बनाना

ख.) बैंच टैरेस बनाना

ग) कंटूर खाइयां (खंदकें) बनाना

घ) नाला बांध बनाना

ड.) कंटूर वनस्पतिक अवरोध (बाड़)

(ख) किनारा सिंचाई

उत्तर – किनारा सिंचाई नियंत्रित सतह बाढ़ की एक विधि है। सिंचित किए जाने वाले खेत को समानान्तर तटबंधों या सीमांत कटकों द्वारा पट्टियों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक पट्टी की अलग से सिंचाई की जाती है। पानी एक छोर पर डाला जाता है और धीरे-धीरे पूरी पट्टी को ढक लेता है। स्थलाकृति, मिट्टी, जल आपूर्ति और अन्य कारकों के आधार पर तीन अलग-अलग प्रकार की सीमा सिंचाई - स्तर, श्रेणीबद्ध और गाइड - का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक प्रकार की विशेषताएं हैं जो कुछ परिस्थितियों में फायदेमंद हैं और दूसरों के तहत नुकसानदेह हैं। एक खेत के लिए एक सिंचाई प्रणाली की योजना बनाने और मिट्टी में पानी लगाने की एक विधि का चयन करते समय, तीन प्रकार की सीमा सिंचाई में से प्रत्येक के फायदे और सीमाओं पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए।

सीमावर्ती सिंचाई उन सभी फसलों के लिए अनुकूल है जो छोटी अवधि के लिए बाढ़ से क्षतिग्रस्त नहीं होती हैं। इसका उपयोग लगभग किसी भी फसल के साथ किया जा सकता है यदि साइट की स्थिति ऐसी है कि पानी नियंत्रण की आवश्यक डिग्री प्राप्त की जा सकती है। इसका उपयोग लगभग सभी सिंचित मिट्टी पर किया जा सकता है, लेकिन यह उन मिट्टी के लिए सबसे उपयुक्त है, जिनकी सेवन दर न तो बहुत कम है और न ही बहुत अधिक है।

(ग) तालाबों की लाइनिंग

उत्तर – तालाब का अस्तरण रिसाव हानि को नियंत्रित करने में मदद करता है। सामान्य रुप से उपयोग किए जाने वाले अस्तरण पदार्थ है: प्राकृतिक चिकनी मिट्टी, बेन्टोनाइट, बिटुमिनस पदार्थ मिट्टी व सीमेंट का मिश्रण, पत्थर या ईंट का अस्तर सीमेन्‍्ट कंक्रीट रासायनिक संयोजन, एस्फाल्ट यौगिक (कालतार व रेत का मिश्रण) और पॉलीथीन, रबर व प्लास्टिक विभिन्‍न पदार्थों के साथ अस्तरण की चर्चा नीचे की गई हैः

पडलिंगः तालाब के पेदें को जानवरों के पैरों से कुचल कर गंदा करने के परिणामस्वरुप रिसाव हानि में कमी होती है। पडलिंग के दौरान गाय का ताजा गोबर डालने से छिद्र अधिक बंद होते हैं।

क्ले ब्लैंकेट: जल तालाब मोटी बनावट वाली मिट्टी में खोदा जाता है, पैंदे में क्ले ब्लैंकेट लगाने से रिसाव में कमी होती है। क्ले ब्लैकेंट की मोटाई ब्लैंकेट में दरारों को रोकने के लिए, भरे गए जल की गहराई के अनुसार परिवर्तित होती है। एक 25 सेमी. मोटाई का क्ले ब्लैकेंट 3 मी. जल स्तंभ के दाव को रोकने के लिए पर्याप्त है। क्ले ब्लैकेंट को दरारें विकसित होने से रोकने के लिए गीली घास, पत्ती के ढेर से ढककर व पानी के नियमित छिड़काव द्वारा नम स्थिति में रखा जाना चाहिए।

बेन्टोनाइट उपचार: बेन्टोनाइट बारीक बनावट वाली कोलाइडी मृदा है तथा तालाब की सीलिंग में उपयोगी है। यह पानी के अवशोषण द्वारा इसके आयतन के 8 से ॥5 गुना तक फूल जाती है। बेन्टोनाइट को सतही मिट्टी के साथ मिश्रित कर दिया जाता है जिससे मिश्रण ठोस हो जाता है। यह ठोस होने की प्रक्रिया उपयुक्तम नमी स्तर के साथ भारी रोलरों द्वारा या छोटे तालाब की अवस्था में मवेशी या मानव द्वारा दबाने से 45 सेमी. की परतों में क्रिया की जानी चाहिए। एक उच्च दर्जे की मिट्टी को लगभग प्रति वर्ग मीटर 5 किग्रा. तथा बलुई मिट्टी का 20 किग्रा. तक बेन्टोनाइट की अवश्यकता होती है।

सोडियम लवणों का मिश्रण: सोडियम कार्बोनेट, सोडियम क्लोराइड व टेट्रा सोडियम पॉली फस्फिट हो जब तालाब की सतही मृदा में मिलाया जाता है तो रिसाव दर में अत्यन्त कमी होती है। इन पदार्थों के प्रभावी होने के लिए, मृदा में क्ले की मात्रा 45% से अधिक तथा मृदा की धनायन विनिमय क्षमता 45 मिली. तुल्यांक प्रति ग्राम से अधिक होनी चाहिए। ये अवयव मृदा परीक्षण द्वारा निर्धारित किए जा सकते हैं। तीनों लवणों में से सोडियम कार्बोनेट सर्वाधिक स्थायी माना गया है। अस्तरण को प्रभावी बनाए रखने के लिए सोडियम कार्बोनेट को 2-3 वर्षों के अंतर पर 5 से 405 किग्रा. प्रति वर्ग मीटर की दर से मिश्रित करना चाहिए।

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