"वकील साहब का नाम था मुंशी तोताराम साँवले रंग के मोटे-ताजे आदमी थे। उम्र तो अभी चालीस से अधिक न थी, पर वकालत के कठिन परिश्रम ने सिर के बाल पका दिये थे। व्यायाम करने का उन्हें अवकाश न मित्रता था। यहाँ तक कि कभी कहीं घूमने भी नहीं जाते, इसलिए तोंद निकत्र आई थीं। देह के स्थूल होते हुए भी आये दिन कोई-न-कोई शिकायत रहती थी। मंदाग्नि और बवासीर से तो उनका चिरस्थायी सम्बन्ध था। अतएव फूंक-फूंककर कदम रखते थे।"
कहाँ कनक छरी सी कामिनी पन्द्रह वर्ष की परम सुन्दरी फूल सी निर्मला और कहाँ चालीस वर्ष के मोटे, भद्दे और वृद्ध मुंशी तोताराम। एक प्रकार से मुंशी तोताराम निर्मला के पिता की अवस्था के थे। गलती की मुंशी उदयभानु लाल ने और दहेज का दानव फैलाया समाज ने पर भोगना पड़ा निर्मला को। निर्मला मुंशी तोताराम को पति मझीने में क्यों हिचकिचाती थी, इसका वर्णन करते हुए प्रेमचन्द्र ने लिखा है
"निर्मला को न जाने क्यों तोताराम के पास बैठने और हँसने बोलने में संकोच होता था इसका कदाचित यह कारण था कि अब तक ऐसा ही एक आदमी उसका पिता था। जिसके सामने वह सिर झुकाकर, देह चुराकर निकलती थी, अब उनेकी अवस्था का एक आदमी उसका पति था। वह उसे प्रेम की वस्तु नहीं, सम्मान की वस्तु समझती थी। उनसे भागती फिरती, उनको देखते ही उसकी प्रफुलता पल्लायन कर जाती थी।
रूक्मिणी - मुंशी तोताराम की रूक्मिणी सगी बहन थीं। विधवा हो जाने के कारण उनके पास रहती थीं। इसका तात्पर्य यही हैं कि उनकी ससुराल वालों ने उन्हें रोटी कपड़ा देना भी उचित नहीं समझा। मुंशी तोताराम के घर में उनकी जो स्थिति थी, वह इस कथन से स्पष्ट है- 'मैंने सोचा था कि विधवा है, अनाथ है; पाव भर आटा खायेगी, पड़ी रहेगी। जब और नौकर- चाकर खा रहे हैं तो यह तो अपनी बहिन हीं है। लड़कों की देखभाल के लिए एक औरत की जरूरत भी थी, रख॑ लिया, लेकिन इसके ये माने नहीं कि वह तुम्हारे ऊपर शासन करे।"
तोताराम जी ने निर्मला के सामने लॉ अपनी सगी बहन को अनाथ, विधवा और नौकर के समान कहा है- उन्होंने रूक्मिणी से जो कहा, वह भी कम अपमानजनक नहीं है- "सुनता हूँ कि तुम हमेशा खुचर निकालती रहती हो, बात-बात पर ताने देती हो। अगर कुछ सीख देनी तो उसे प्यार से मीठे शब्दों में देनी चाहिए।
तानों से सीख मिलने के बदले उल्टा और जी जलने लगता हूँ इनके अतिरिक्त भालचन्द्र सिन्हा, उनकी पत्नी रंगीलीबाई और डॉ. भुवनमोहन सिन्हा की पत्नी सुधा की स्थिति भी विशेष अच्छी नहीं है। रंगीलीबाई की इच्छा के विरुद्ध उसके पति निर्मला से अपने पुत्र का विवाह करने से मना कर देते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि निर्मला उपन्यास नारी जीवन की करुण त्रासदी है।
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