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भक्ति आंदोलन का महत्व स्पष्ट कीजिए।

 भक्ति आनुदोलन:

जब कभी भी हिन्द धर्म में आंतरिक जटिलतांए बढी तब-तब प्रतिक्रिया सुवरूप धर्म सुधार आनुदोलन या धार्मिक क्रांतियां हुई। धर्म और समाज कप के ये प्रयास प्राचीनकाल में जैन व बौद्ध धर्म के रूप में, मधयकाल में भक्ति परमुपरा के रूप में तथा ।9वीं सदी में धार्मिक पुनर्जागरण के रूप में हमारें सामने आये। धार्मिक-सामाजिक प्रतिक्रिया स॒वरूप उपजे इन धार्मिक आनुदोलनों ने हिनदर धर्म और समाज में हर बार नई चेतना, नई शक्ति और नव जीवन का संचार करके उसे और अधिक पुष्ट और अनार में मदद दी। इस दृष्टि से समय, काल राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए मधययुगीन आनुदोलन भारतीय संसकृति की एक बहुपक्षीय और महान घटना थी।

भक्ति आंदोलन का महत्व:

भक्ति आंदोलन मध्यकाल का एक व्यापक और प्रभावी आंदोलन था, जिसने भारतीय समाज को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। इसने एक ओर जहाँ सत्य शील, सदाचार, करूणा, सेवा जैसे उच्च मूल्यों को प्रचारित किया वहीं समाज के दबे-कुचले वर्ग को भक्ति का अधिकारी, बनाकर उनके अंदर आत्मविश्वास का संचार भी किया। भक्ति आंदोलन की प्रगतिशील भूमिका को रेखांकित करते हुए शिवकुमार मिश्र लिखते हे, इस आंदोलन में पहली बार राष्ट्र के एक विशेष भूभाग के निवासी तथा कोटि-कोटि साधारण जन ही शिरकत नहीं करते, समग्र राष्ट्र की शिराओं में इस आंदोलन की ऊर्जा स्पंदित होती है, एक ऐसा जबर्दस्त ज्वार उफनता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम सब मिलकर एक हो जाते है, सब एक दस को प्रेरणा देते है, एक्‌- "भी से प्रेरणा लेते हैं, और कर कर भक्ति के एक ऐसे विराट नद की डरते उसे प्रवहमान बनाते हैं जिसमें अवगाहन कर राष्ट्र के कोटि-कोटि साधारण जन से तप्त अपनी छाती करते हैं, अपनी गाहैं, एक नया आर्त्म विश्वास, जिंदा रहने की, आत्म सम्मान के साथ जिंदा हरने की शक्ति पाते हैं।' भक्ति आंदोलन एक व्यापक लोकजागरण था।

भक्ति आंदोलन के उदय के कारण:

मधूयकालीन भक्ति आनुदोलन के उदय के निमनलिखित कारण थे:

1. जाति वृयवसूथा का जटिल होना: मध्‌यकालीन भारत में जाति वृयवसूथा का सृवरूप बहुत जटिल हो चुका था। उचूच जातियों खुद को श्रेषठ मानकर निमुन जातियों पर भीषण अत्याचार करती थी जिससे उनमें व्यापक असंतोष व्यांपत हुआ। ऐसी स्थिति में भक्ति मार्ग ने सबके लिए मार्ग खोल दिया। इस आनुदालन के संचालक ऊंच-नीच की भावना के सर्वथा विरूद्ध थे।

2. मुस्लिम अत्याचार: इस समय मुस्लिमों शासकों द्वारा हिनुद्व पर कभी अत्याचार किया जाता था। इन अतयाचारों से कर पाने हेतु हिन्दू जनता एक सुरक्षित सृथान की खोज करने लगी थी जो ईश्वर भक्ति के द्वारा ही उनहें मिल सकता था। एक का के मुताबिक “जब मुसलमान हिन्‌दूओं पर अत्याचार करने लगे, तो हिन्‌द्र निराश होकर उसदीनरक्षक भगवान से प्रार्थना करने लगे।”

3. इसुलाम का प्रभाव: भक्ति आनुदालन के उदय का कारण इसलाम धर्म का प्रभाव था। लेकिन डॉ. भणुडारकर ने इसका खणुडन करते हुए लिखा है कि “भक्ति आंदोलन श्री मद्भगावत गीता की शिक्षाओं पर आधारित था।”

4. मन्दिर व मूर्तिया का विनाश: मधयकाल में मरी आक्रमाणकारी मन्दिर में लुटपाट के लिए मन्दिरों में तोडाफौडी और मूर्तियों का विनाश करते थे। ऐसी स्थिति की हिनुद्ू सव॒तनुत्र रूप में मन्दिर मैं उपासना अथवा मूर्ति पूजा नही कर पाते थे। इसलिए वे भक्ति एंव उपासना के माध्यम से ही मोक्ष प्रापत करने का प्रयास करने लगे।

5. ब्राह्मणवाद का जटिल होना: उस समय हिन्‌दू धर्म का सुव्रूप बहुत जटिल हो गया था। याज्ञिक कर्मकाणुड, पूजा- पाठ, उपवास आदि धार्मिक क्रियाओं की जटिलता को सर्वसाधारण सरलता से नहीं निभा सकती थी। अतः निमन जाति के व्यक्ति इसुलाम धर्म ग्रहण करने लगे थे।

भक्ति आंदोलन की विशेषतांए:

भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषतांए भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषतांए निमुनलिखित है:

1. भक्ति आंदोलन के सन्‌तों ने मूर्ति पूजा का खणुडन किया।

2. इसके कुछ सनतों ने हिनुदू-मुस्लिम एकता पर बल दिया।

3. भक्ति आंदोलन के नेता सनुयास मार्ग पूर बल नहीं देते थे। उनका कहना था कि यदि मानव का आचार-विचार एंव व्यवहार शुद्ध हो, तो वह गृहसथ जीवन में रहकर भी भक्ति कर सकता है।

4. संत सारे मनुष्य मात्र को एक समझते थे। उन्‌होनें धर्म, लिंग, वर्ण व जाति आदि के भेदभाव का विरोध किया।

5. यह आनुदोलन मुख्य रूप से सर्वसाधारण का आनुदोलन था। इसके सारे प्रचारक जनसाधारण वर्ग के ही लोग थे।

6. ही आनुदोलन के प्रचारकों ने अपने विचारों का प्रचार जनसाधारण की भाषा तथा प्रचलित साधारण बोली में किया।

7. यद्यपि यह आनुदालन विशेष रूप से धार्मिक आनुदालन था, लेकिन इसके अनेक प्रवर्तकों ने सामाजिक क्षेत्र में विद्यमान कुरीतियों को टूर करने की कोशिश की।

8. भक्ति आदोंलन के सारे नेता विशुव बनुधुत्‌व की भावना एंव एकेशवरवाद के समर्थक थे।

भक्ति आनुदालन के प्रभाव तथा परिणाम:

भक्ति आनुदोलन के निमुन लिखित परिणाम हुए:

1. पुरोहित एंव ब्राह्मणवाद को ठोस: भक्ति आंदोलन के कारण पुरोहित तथा ब्राह्मणवाद को गहरी ठेस पहुंची, जिससे सुपषुट हुआ कि हर व्यक्ति चाहे वह अछुत हो ,भक्ति द्वारा ईश्वर को पा सकता है। इस तरह धर्म से ब्राह्मणों का एकाधिकार समापृत हों गया।

2. दलितों का उद्धार: भक्ति आनुदालन के कारण दलितों को अपने विकास का मौका मिला। यह आनुदोलन सामाजिक विषमता, दलितों का शोषण तथा उनकी सोचनीय दशा को दूर करनें मे सहायक सिद्ध हुआ।

3. वर्ण ककवणदा का अंत: भक्ति आंदोलन ने हिनदूओं की वर्ण व्यवसूथा को छिनन-भिनन कर पतन की ओर अग्रसर किया, ब्राह्मणों धर्म की प्रतिष्ठा धूल में मिल॑ गयी तथा उनके जातीय अभिमान को गहरा आघात पहुंचा। इसने मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हर व्यक्ति के लिए खोल दिया जिससे समाज में शूद्रों को भी ब्राह्मणों के समकक्ष सुधान प्रापृत हो गया।

4. कर्मकाणुडों का हास: भक्ति आंदोलन से कर्मकाणुडों एंव बाह्माडमुबरों को गहरी क्षति ही। आंदोलन के कुछ संतों ने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार कर उनका प्रबल शबदों में खणडन किया अतः समाज में कर्मकाणुडों का हास होना शुरू हो गया।

5. सिकुख समप्रदाय की सथापना: इस आनुदालन में मुख्य सन्‌त नानक देव ने सिकुख समप्रदाय की सुधापना की। इस समप्रदाय ने भारतीय इतिहास में कई वीरतापूर्ण कार्य किए।

भक्ति आंदोलन का निषकर्ष:

यूरोप और भारत में धार्मिक पुनर्जागरण की लहर आरमभ हो चुकी थी और इसका दोनों देशों में प्रमुख कारण इसुलाम का आक्रमण और इससे अपनी धर्म संसकृति की रक्षा करना था। इसूलाम के धर्मान्‌ध शासकों ने मंदिरों पर आक्रमण किये, धर्मानृतरण कियें तथा हिन्‌दू समाज कुछ न कर सका क्योकि वह सुवंय अपनी ही विकृतियों के कारण निर्बल और निराश था। भक्‌त संतों ने आडम्‌बर त्याग, कद का विरोध, एकेश्वरवाद, जाति-वृंयवसथा की आलोचना, हिनद जाति में एकता, लोकभाषा और मानव सेवा आदि विशेषताओं को अपनाकर भारतीय समजा को शक्तिशाली में सफलता प्रापत की। भक्ति आंदोलन के प्रमुख सन्‌त रामानुजाचार्य, रामाननद, चैतनय, कबीर, वलूलभाचार्य आदि थे। भक्ति धारा न केवल उत्तर भारत में बल्कि दक्षिण भारत में भी व्यापक रूप बहने लगी।

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