Recents in Beach

मलयालम भक्ति साहित्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।

 मलयालम भक्ति साहित्य:

हम सब एक बात जानते हैं कि उन्‍नीसवीं शताब्दी पूंरे भारत के लिए एक सांस्कृतिक नवजागरण का युग था । भारत के विभिन्‍न प्रदेशों में इसके प्रेरणास्नोत अलग-अलग रहे हैं। केरल में भी इस युग में कई परिवर्तन हुए । शिक्षा, धर्म, समाज और राजनीति के क्षेत्रों में नवजागरण के स्वर और सन्देश मुखरित हो उठे । अब हमें भिनन क्षेत्रों में आये परिवर्तन के स्वरूप पर ध्यान देना है।

धार्मिक संगठन : धर्म प्रचार के लिए ईसाई धर्मसंगठन के कुछ प्रतिनिधि केरल आये थे। लंदन मिशन 1(805) , सालवेशन आर्मी (1813) , चर्च मिशन सोसाइटी (1813) और बासल इवांजलिकल मिशन (1841) इनमें मुख्य हैं। इन ईसाई समितियों की गतिविधियों से शिक्षा क्षेत्र में कई परिवर्तन आये | समाज की जड़ता और पाश्चात्य समाज के खुलेपन के बारे में जनता धीरे धीरे सोचने लगी।

कोदुगंल्लर गुरूकुलम केरल का एक सांस्कृतिक केन्द्र था । यह संस्कृत के विद्वानों की एक बड़ी मंडली , थी। संस्कृत की वरिष्ठ कृतियों के अनुवाद के ज़रिये वे जनता को ज्ञान लाभ के अवसर प्रदान करने लगे | कुजिक्कुट्टन तेपुरान ने ““महाभारत”” का मलयालम अनुवाद किया था । इससे सामान्य जनता 'को बड़ा प्रयोजन मिला।

ब्रहम समाज : केरल में 898 में त्रहमसमाज की एक पहली शाखा कालिकट (कोषिक्कोड) में स्थापित हुई थी। मूर्तिपूजा, अस्पृश्यता और धार्मिक अनाचारों के खिलाफ लड़ने के लिए जनता को इससे प्रेरणा मिली । अय्यतान गोपालन, काराट गोविन्द मनोन और कुञिक्कण्णन गुरूककल इस के प्रवर्तक थे। 1913 में ““आत्मविद्या संघम'”” की स्थापना हुई |

जाग उठो अर्बिलेश का स्मरण करो

जगाओ आतत्मशंक्ति, करो अन्याय का विरोध

यही आत्मविद्या संघम का आदर्श वाक्य था। वागभडानंद (कुअक्कण्णन गुरूक्कल) ने इस की स्थापना की थी।

आर्य समाज : आर्य समाज की प्रथम शाखा केरल में सन्‌ 1922 में स्थापित हुई थी। इसका भी कार्य क्षेत्र कालिकट था । ब्रहमचारी लक्ष्मण, के.सी.भल्लस ओर एम बुद्धसिंह इसके प्रारंभिक कार्यकर्ता, थे। 1933 में दयानंद सरस्वती की अमर कृति “सत्यार्थ प्रकाश!” का मलयालम अनुवाद प्रकाशित हुआ | त्रहमचारी लक्ष्मण इसके अनुवादक थे। धार्मिक अनाचारों को दूर करने के उद्देश्य से उन्होंने यह अनुवाद पेश किया था।

कांग्रेस की गतिविधियाँ : 1885 में कांग्रेस की स्थापना से भारत का राजनीतिक वातावरण जागृत हो उठा था अविलंब उसका सन्देश केरल में पहुँचा | 1889 के बंबई अधिवेशन में केरल से बैरिस्टर जी.पी. पिल्‍लै ने भाग लिया था। 1897 के अमराबती अधिवेशन ने एक केरलीय सर. सी. शंकरन नायर को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुन लिया था।

1. मलयालम भाषा ओर साहित्य

केरल राज्य में बोली जाने वाली भाषा मलयालम के नाम से जानी जाती है। मलयालम की व्युत्पत्ति है मल + आलम अर्थात्‌ पर्वत + स्थल अर्थात्‌ पर्वत श्रंखला के समीपवर्ती भाग । प्रारम्भ में यह शब्द प्रदेश वाची था, जो बाद में भाषा के लिए प्रयुक्त होने लगा।

मलयालम साहित्य का वास्तविक आरम्भ कब से हुआ यह तो ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता है, पर इस भाषा में रचे कुछ परम्परागत लोकगीत अवश्य मिलते हैं। इसके बाद “पाट्टुकल”' नाम से विशेष साहित्य मिलता है, जो गेय गीतों की परम्परा में लिखे गये हैं। इस प्रकार के गीत काव्यों के बाद “सन्देश काव्य”', “चम्पू काव्य” तथा “कृष्ण काव्य” का युग प्रारम्भ होता है।

अन्य प्रकार के साहित्य में “'कथकलि'”' साहित्य आता है। अनेक प्रबंध काव्य इस शैली में लिखे गये | यह नृल्य और नाटक की मिली जुली शैली है। इस साहित्य की धारा में कोट्टयत्तु केरल वर्मा राजा, अ.न. राजा, उण्णायि वारियर आदि नाम उल्लेखनीय हैें।

गद्य साहित्य का आरंभ केरल वर्मा वलिय तथा राजराज वर्मा ने किया। इन्होंने अनेक लक्षण ग्रंथ लिखे और पाठ्य पुस्तकों की रचना की। अन्य कति थे : के.सी. केशवपिल्लै, नटूबम्‌ नंपूतिरी, कु. नारायण मेनन |

आधुनिक कविता में नयी धारा के प्रवर्तक आशान, उल्लूर तथा वल्‍लतोल थे । इन तीनों ने आधुनिक काल की नींव डाली। ये साहित्यकार राष्ट्रीयवा और नवजागरण से प्रभावित और प्रेरित थे। यह युग महाकाव्यों का युग माना जाता है।

कथा साहित्य में सर्वश्री तकषि शिवशकर पिल्लै, केशवदेव, चैकम मुहम्मद वशीर, एस-के. पोट्टेकाट तथा पी.सी. कुटिटकृष्णन ““उख्ल्‍व'” वकके नाम उल्लेखनीय हैं ।

नाटक के श्ष्तेत्र में कुट्टमन्तु, कु.कु. कुरूप तथा चेलुनायर अमुरव हैं। आलोचना के क्षेत्र में केसरी, जोसफ मुंडशेरी. कृष्णपिल्लै, सुकुमार अषीकोंड आदि का नाम ल्विया जा सकता है।

हिंदी अचार

सन्‌ 1978 में मसद्भरास में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हुई थी । गांधी जी के सार्गदर्शन सभा ने दक्ष्तिण भारत में हिंदी प्रचार के लिए कदम ऊलाया । देवदास गांधी जी को सभा-संचालन का विशेष दायित्व भी दिया गया था । हिंदी के माध्यम से पूरे भारत को जानने का वातावरण बनाना हिंदी अचार एक लक्ष्य था | केरल से कई छात्र मद्रास जाकर हिंदी सीखने त्वगे । सभा के पाठ्यक्रम में लेगला, और मराठी से हिंदी में अनूदित किताबें भी शामिल थीं। यों इन छात्रों में सर्वभारतीयता की भावना टुव्ड बन गयी।

पत्र-पत्रिकाएँ

राष्ट्रीय आंदोलन के संदेश को सामान्य जनता तक पहुंचाने के लिए कई पत्र-पत्रिकाएँ सलयाल्म में अकाशित होने लगी थीं। इनमें '“मातृभ्ूमि'” का स्थान सर्वथा उल्लेखनीय है | कोषिक्कोड सतत 1923 में मातृुभूमि निकलने लगी थी | कांग्रेस के संदेश वाहक पत्रिका के रूप में *“सातृभूमि”” का आआविभाव - छुआ था। 1924 में इस्री शहर से “अल अमीन”! पत्रिका भी निकली मुहम्मद अम्दुरहम्तान इसके स्वेस्थापक थे । स्वदेशाभिमानि, ““लोकमान्यन'”, “स्वराज”, “युवा भारतम'”', ““भाजे भारतम'', ““मलयाल राज्यस'', “प्रभातम”', “सहात्मा'”, “नवजीवन'”, ““केसरी'', “प्रबोधनकन'', ““मसत्लयासतल मनोर्सा'', “दीनबंघु'” आदि इस्र समय की अन्य पत्रिकाएं थीं। सरकार की सख्त पाबंदी के कारण ये पत्रिकारं अक्सर खतरे सें पड़ी थीं | सेपादकों को कारावास की सजा भी मिलती थी | हर स्थिति में राष्टछ्ित पर साहित्य आज़ादी के आंदोलन के अवसर पर कुछ सिद्धांत और आदर्शों पर राष्ट्र नेताओं ने बल दिया था। इसका असर साहित्यकारों पर भी पड़ा । विभिन्‍न विधाओं की कृतियों में राष्ट्रीय आंदोलन का स्वर मुखरित हो उठा।

वललतोल नारायण मेनोन राष्ट्रीय भावना के अग्रणी कवि थे। गांधीवादी चेतना को उन्होंने आत्सात किया था | जाति व्यवस्था के कारण दम घुटने वाली मानवीयता का चित्रण कुमारनाशान ने किया | वे श्रीनारायण गुरू के आत्मीय शिष्य थे । भारतीय संस्कृति के उदात्त पहलुओं को उजागर करने में उल्लूर एस. परमेश्वर अय्यर ने बड़ा उत्साह दिखाया। जी. शंकर कुरूप, वेण्णिक्कुल गोपालक्कुरूप, पी. कुजिरामन नायर, के.के. राजा, चंगपुषा कृष्णापिल्लै, एन.वी. कृष्णवारियार, वैलोपिल्ली श्रीधर मेनोन आदि कवियों ने भी राष्ट्र की पुकार को रेखांकित किया था।

कथा साहित्य में भी राष्ट्रीय आंदोलन के लक्ष्यों का चित्रण हुआ था | सांप्रदायिक भेदभावों को भूलने का संदेश इस युग की कथा कृतियों में मिलता है । एस.के. पोट्टेक्काट्ट, जैकम मुहम्मद बशीर, उरूब, केशवदेव, तकषी पोनकुन्नम वर्की, ललितांबिका अन्तर्जन्म आदि लेखकों की कथा-कृतियों में युग सत्य - का चित्रण हुआ | इनके स्मरणीय पात्र पाठकों के मन में राष्ट्प्रेम की भावना जगाते रहे ।

के. दामोदरन, वी.टी. भट्टनिरिंप्पाड और एम. आर. भट्टनिरिप्पाड के नाटकों ने जनता को सामाजिक यथार्थ के बारे में प्रेरक जानकारी दी। जर्जर आचार और विश्वास को समाप्त करने का संदेश इनके नाटकों से दर्शकों को मिलता रहा | यों जमींदारी शोषण, कट्टर जातिवाद, नारी की परतंत्रता आदि समस्याओं की परिणतियों के बारे में जनता जागरूक हो गयी।

सन्‌ 1973 में भारतीय भाषाओं में पहली बार गांधी जी की जीवनी---'“मोहनदास गांधी” मलयालम में प्रकाशित हुई थी। स्वदेशभिमानी रामकृष्ण पिल्‍लै इसके लेखक थे। इसकी भूमिका में लेखक ने लिखा था कि इस किताब की आमदनी दक्षिण अफ्रिका के भारतीयों के लिए बनायी निधि को समर्पित करने का विचार है।”

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि राष्ट्रीय आंदोलन एक सांस्कृतिक जागरण का परिणाम है। देश की खोयी हुई विरासत, परंपरा और अतीत से प्रेरणा पाकर भविष्य को उज्जवल बनाने का लक्ष्य उसमें प्रबल था । शिक्षा प्रचार, समाज सुधार, इतिहास बोध, पुराण ज्ञान आदि मार्गों से आगे बढ़कर जनता अपनी मंजिल पर पहुंची थी । दार्शनिकों साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों और समाज सेवियों को मिल जुलकर काम करने का एक आम मंच राष्ट्रीय आंदोलन के युग संदर्भ ने प्रदान किया | देवालय, विद्यालय, वाचनालय और न्यायालय से उसको समर्थन मिला। साम्राज्यवाद, सामंतवाद, पूजीवाद और उपनिवेशवाद के दुष्परिणामों से छुटकारा पाने के लिए जनता एकसाथ खड़ी हो गयी । राष्ट्र की उन्‍नति के लिए दृढ्लसंकल्प बने साहित्यकारों ने अपनी कृतियों के माध्यम से जनता को मार्गदर्शन दिया । 

Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE

For PDF copy of Solved Assignment

WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

Post a Comment

0 Comments

close