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बुधचार का वर्णन कीजिए।

 संहिता शास्त्र के आचार्यों ने बुधचार के विषय में बहुत ही स्पष्टता से वर्णित किये हैं। बुध ग्रह को कुमार ग्रह कहते है। जैसे राजा का पुत्र जीवन व्यतीत करता है उसी प्रकार बुध के प्रभाव वाले लोग राजकुमार सदृश जीवन यापन करते है। बुध के बारे में कहा गया है कि विधो: पुत्रित्ते प्रवस्मतिरज्ञोउपि कृतिनां अर्थात्‌ बुध यदि द्वितीय भाव में स्थित हो तो मनुष्य मूर्ख होते हुए भी बुद्धिमान होता है उसी प्रकार आगे भी कहा गया है कि तृतीये यस्य ज्ञे प्रसरति वणिक्‌ वृत्तिरभितः अर्थात्‌ बुध यदि तृतीय भाव में हो तो उसके व्यापार की चतुर्दिक वृद्धि होती है। बुधचार वश पृथ्वी पर विभिन्‍न प्रकार की घटनाएं उत्पन्न होती है तथा उसके चार के कारण मनुष्यों पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है। कुण्डली चक्र में बुध जहाँ भी स्थित होता है वहाँ उस स्थान को शुभ करता है लिखा भी है कि बुधे धर्मस्थानं गतवति सुधर्मा बुधवरो अर्थात्‌ बुध यदि नवम भाव में हो तो वह विद्वान, धर्मात्मा , भक्त ,यज्ञकर्ता ,सज्जनों को संग करने वाला, राजा से अधिक प्रतापी, दुर्जनों को सन्‍्ताप देने वाला तथा पूर्ण रूपेण धनवान होता है। ज्योतिष शास्त्र में बुध को एक शुभ ग्रह माना जाता है। परन्तु किसी अशुभ या क्र्र ग्रह के संगत से यह अशुभ भी हो सकता है। बुध, मिथुन एवं कन्या राशियों का स्वामी है तथा कन्या राशि में उच्च भाव में स्थित रहता है तथा मीन राशि में नीच भाव में रहता है। यह सूर्य और शुक्र के साथ मित्र भाव से तथा चंद्रमा से शत्रुतापूर्ण और अन्य ग्रहों के प्रति तटस्थ रहता है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग, संचार, विश्लेषण, चेतना (विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है।

बृहत्संहिता ग्रंथ के ग्रह भक्ति योगाध्याय में बुध के प्रदेश और उनके व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है ।अर्थात्‌ बुधचार वश कौन- कौन से प्रदेश और कौन व्यक्ति प्रभावित होते हैं इससे उसका ज्ञान हो जाता है |इस विषय में आचार्य लिखते हैं कि- लोहित्य और सिन्धु नद, सरयू, गाम्भीरिका, रथाख्या, गड़गा, कौशिक, विपाशा, सरस्वती और चन्द्रभागा नदी, मथुरा के पूर्वार्ध भाग, हिमालय पर्वत, गोमन्त पर्वत और चित्रकूट पर्वत के प्रान्त में स्थित मनुष्य, सौराष्ट्र देश स्थित मनुष्य, सेतु (पुल) के आश्रय में रहने वाले, जलमार्ग के आश्रय में रहने वाले, पण्यवृत्ती, बिल में निवास करने वाले, पर्वत पर रहने वाले, कूप, तड़ाग आदि, यन्त्र को जानने वाले, गान विद्या जानने वाले, लेखक, मणि के लक्षण को जानने वाले, रंगरेज, सुगन्धि द्रव्य बनाने वाले, चित्रकार, वैयाकरण, ज्यौतिषी, आयुष्य ( रसायन, वाजी करण आदि को जानने वाले ), शिल्पी, गुप्तचर, कुहक ( प्रसेन आदि के दर्शन से जीवनयात्रा चलाने वाले ), बालक, कवि, शठ ( परोपकार से विमुख), चुगल खोर, अभिचार ( वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, मारण आदि को जानने वाले ), दूत, नपुंसक, हँसी उड़ाने वाले, भूत-प्रेत के तन्त्र को जानने वाले, इन्द्रजाल को जानने वाले, रक्षक, नाचने वाले, तेल, बीज, रसायन शास्त्र को जानने वाले इन सभी का स्वामी बुध है। अब आप बुध का स्वरूप जानेंगे। विविध शास्त्रों में बुध का स्वरूप क्या क्या वर्णित किया गया है तथा पौराणिक दृष्टि से बुध का कया स्वरूप है इसके बारे में आप जानेंगे।

बुध का स्वरूप

बुध ग्रह को अनेक नामों से जानते हैं जैसे बुध, शशि, तायपुत्र, चंद्रज, राजा सोमपुत्र गिया बोधन बुध कुमार सौम्य रोहिणी राजपुत्र इत्यादि नामों से जानते हैं। पौराणिक मान्यता अनुसार चन्द्रमा के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति | बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी, तदोपरान्त बृहस्पति को छोड़ दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में असुर गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अतः यह तारकाम्यम कहलाया। इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा। इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तार चुप ही रही। माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया। चंद्र ने बालक बुध को रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र-रूपी अपनी पत्नियों को सौंपा। इनके लालन पालन में बुध बड़ा होने लगा। बड़े होने पर बुध को अपने जन्म की कथा सुनकर शर्म व ग्लानि होने लगी। उसने अपने जन्म के पापों से मुक्ति पाने के लिये हिमालय में श्रवणवन पर्वत पर जाकर तपस्या आरंभ की। इस तप से प्रसन्‍न होकर विष्णु भगवान ने उसे दर्शन दिये। उसे वरदान स्वरूप वैदिक विद्याएं एवं सभी कलाएं प्रदान की। इस प्रकार बुध को सभी विद्याओं एवं कलाओं का स्वामी कहा जाता है।

ताजिक नीलकंठी ग्रंथ में बुध का स्वरूप बताया गया है कहा गया है कि बुध ग्रामीण, सौम्य

ग्रह ,नीला रंग, सुवर्ण धातु का स्वामी ,वृत्ताकार, बाल्यावस्था , ईटों से ऊंची भूमिका, चारी,

सम धातु, जीव, वात पित्त कफ तीनों बराबर , जीव रक्षा करने वाला ,श्मशान वासी, उत्तर दिशा का स्वामी, प्रातः काल बली, शूद्र वर्ण, पक्षी जाति ,कटु, सर्व रस प्रधान रजोगुण है। मत्स्य पुराण के अनुसार बुध कनेर के पुष्प के अनुसार कान्ति वाला ,पीत रंग के पुष्प व वख्र धारण करने वाला, तथा मनोहर रूप वाला है | नारद पुराण के अनुसार बुध त्रिदोष युक्त,हास्य प्रिय,एवम,अनेकार्थ शब्दों का प्रयोग करने वाला होता है।

बुध ग्रह को बुद्धि का देवता माना जाता है। कुंडली में इसकी स्थिति काफी अधिक महत्व रखती है। यदि बुध अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति को बुद्धि संबंधी कार्यों में विशेष सफलताएं प्राप्त होती हैं। जबकि ये अशुभ स्थिति में हो तो कई प्रकार की मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के सानिध्य में ही रहता है। जब कोई ग्रह सूर्य के साथ होता है तो उसे अस्त माना जाता है। यदि बुध भी 3 डिग्री या उससे कम में सूर्य के साथ हो, तो उसे अस्त माना जाता है। लेकिन सूर्य के साथ रहने पर बुध ग्रह को अस्त का दोष नहीं लगता और अस्त होने से परिणामों में भी बहुत अधिक अंतर नहीं देखा गया है। बुध ग्रह कालपुरुष की कुंडली में तृतीय और छठे भाव का प्रतिनिधित्व करता है। बुध की कुशलता को निखारने के लिए की गयी कोशिश, छठे भाव द्वारा दिखाई देती है। जब-जब बुध का संबंध शुक्र, चंद्रमा और दशम भाव से बनता है और लग्न से दशम भाव का संबंध हो, तो व्यक्ति कला-कौशल को अपने जीवन-यापन का साधन बनाता है। जब-जब तृतीय भाव से बुध, चंद्रमा, शुक्र का संबंध बनता है तो व्यक्ति गायन क्षेत्र में कुशल होता है। अगर यह संबंध दशम और लम से भी बने तो इस कला को अपने जीवन का साधन बनाता है। इसी तरह यदि बुध का संबंध शनि केतु से बने और दशम लग्न प्रभावित करे, तो तकनीकी की तरफ व्यक्ति की रुचि बनती है। कितना ऊपर जाता है या कितनी उच्च शिक्षा ग्रहण करता है, इस क्षेत्र में, यह पंचम भाव और दशमेश की स्थिति पर निर्भर करता है। पंचम भाव से शिक्षा का स्तर और दशम भाव और दशमेश से कार्य का स्तर पता लगता है। बुध लेख की कुशलता को भी दर्शाता है। यदि बुध पंचम भाव से संबंधित हो, और यह संबंध लग्नेश, तृतीयेश और दशमेश से बनता है, तो संचार माध्यम से जीविकोपार्जन को दर्शाता है और पत्रकारिता को भी दर्शाता है। और बृहस्पति की दृष्टि या स्थान परिवर्तन द्वारा संबंध बन रहा हो, तो इंसान को वाणिज्य के कार्यों में कुशलता मिलती है। इस प्रकार अलग-अलग ग्रहों और भावों व भावों के स्वामी से संबंध होने से जीवकोपार्जन का क्षेत्र बताता है। यद्यपि इस प्रकार के बहुत से क्षेत्र हैं, लेकिन उन पर बुध ग्रह का प्रभाव अवश्य देखने को मिलता है।

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