सुधारों का प्रसंग
जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, उसने विभाजन, शरणार्थियों, प्रवासन, बड़ी भारी संख्या में प्रशासनिक कार्मिकों की सेवा निवृति, देशी रियासतों का एकीकरण आदि समस्याओं का सामना किया। नई सरकार ने सामाजिक-आर्थिक विकास द्वारा लोगों के कल्याण की विचारधारा अपनायी जिससे कार्यों का बहुत अधिक विस्तार हुआ। कल्याण कार्यक्रमों और चुनौतियों को लेने के लिए प्रशासनिक मशीनरी में जो स्वतंत्रता के साथ औपनिवेशिक शासनतंत्र से विरासत में मिली थी और क्षयकारी परिस्थितियों और तनावपूर्ण स्थितियों से बहुत दुर्बल थी, उसने पुनः तैयार करना और पुनः सशक्त बनाया जाना था। सभी विकास संबंधी कार्यक्रमों को तैयार करने और क्रियान्वयन के लिए साधन के रूप में प्रशासन को पुनः संरचित, पुनर्गठित और पुनर्नवीयन किए जाने की आवश्यकता थी। भारत सरकार द्वारा प्रशासनिक सुधार में विभिन्न उपाय किए गए। अब हम इन उपायों पर नीचे चर्चा करेंगे:
सचिवालय पुनर्गठित समिति, 1947
भारत सरकार ने 1947 में गिरिजाशंकर वाजपेयी की अध्यक्षता में सचिवालय पुनर्गठित समिति स्थापित की। समिति ने सचिवालय में कर्मचारियों की कमी, उपलब्ध जनशक्ति का बेहतर उपयोग और काम के तरीकों के सुधारों की जाँच की।
श्री एन गोपालस्वामी आयंगर रिपोर्ट, 1950
श्री एन गोपालस्वामी आयंगर ने केन्द्रीय सरकार की मशीनरी को कार्यकरण की विस्तृत समीक्षा की जिसे “केन्द्रीय सरकार की मशीनरी के पुनर्गठन" पर अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत किया।
श्री ए.डी. गोरवाला समिति, 1951
जुलाई 1956 में श्री ए. डी. गोरवाला की अध्यक्षता में समिति ने 'लोक प्रशासन' पर अपने रिपोर्ट में स्वच्छ, दक्ष और निष्पक्ष प्रशासन होने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
पॉल एच एप्पलबी की रिपोर्ट 1953 एवं 1956
इन प्रयासों के अनुक्रम में भारत सरकार ने अमेरिकी विशेषज्ञ पाल एच, एप्पलबी को भारतीय प्रशासन में सुधारों के बारे में सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया। एप्पलबी ने दो रिपोर्टे प्रस्तुत की! उसकी पहली रिपोर्ट अर्थात् “मारत में लोक प्रशासनः सर्वेक्षण रिपोर्ट", 1953 में प्रशासनिक पुनर्गठन और पद्धतियों का विवेचन किया गया था। उसकी दूसरी रिपोर्ट अर्थात् भारत के औद्योगिक तथा वाणिज्यिक उद्यमों के प्रशासन के विशेष संदर्भ में “भारत की प्रशासनिक प्रणाली का पुनरीक्षण” 1956 में इन उपक्रमों में संगठनों सरल और कारगर बनाने, कार्य की प्रक्रिया, भर्ती और प्रशिक्षण का विचार किया गया था।
एप्पलबी ने बारह सिफारिशों की, भारत सरकार ने इसमें से उनकी दो सिफारिशों को स्वीकार किया। पहली, सिफारिश व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना से संबंधित थी, अर्थात् लोक प्रशासन में अनुसंधान प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय लोक प्रशासन संस्थान। दूसरी सिफारिश संगठन, प्रबंधन और प्रक्रियाओं के संबंध में नेतृत्व प्रदान करने के लिए केन्द्रीय कार्यालय स्थापित करने से संबंधित था। इसके परिणामस्वरूप सरकारी कार्य की गति और गुणवत्ता सुधारने तथा उसकी प्रक्रिया सरल और कारगर बनाने के लिए मंत्रिमंडल संचिवालय में संगठन और पद्धति प्रभाग मार्च 1954 में स्थापित किया गया। मंत्रालयों/विभागों में संगठन और पद्धति इकाइयाँ और कार्य अध्ययन इकाइयाँ गठित की गई। अधिक ध्यान कागजी कार्य प्रबंधन और पद्धतियाँ सुधाने पर था। सभी मंत्रालयों के लिए कार्यालय पद्धति क्रिया तैयार किया गया।
योजना परियोजना समिति, 1956
1956 में योजना आयोग ने “योजना परियोजनाओं के क्रियान्यन” में मितव्ययता और दक्षता प्राप्त करने की दृष्टि से संगठन मानदंड और तकनीकें तैयार की। 1964 में प्रबंधन के आधुनिक साधनों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए इस समिति के भाग के रूप में प्रबंध और विकास प्रशासन प्रभाग भी स्थापित किया। उसने ज़िला स्तर पर विकास प्रशासन से संबंधित समस्याओं का अध्ययन भी किया।
भ्रष्टाघार निवारण समिति, 1962
यह समिति संथानम की अध्यक्षता में भ्रष्यचार के कारणों का अध्ययन करने, भ्रष्टाचार रोकने के लिए विद्यमान व्यवस्था की समीक्षा करने और सुधार के लिए उपाय सुझाने के लिए बनाई गई थी। समिति में भ्रष्टाचार निवारण से संबंधित प्रक्रियाएँ सरल और कारगर बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया और केन्द्रीय सतर्कता आयोग की स्थापना की सिफारिश की।
प्रशासनिक सुधार आयोग, 1966
प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना के हनुमन्थैया की अध्यक्षता में जनवरी 1966 में हुई। इसके विचारार्थ विषय बहुत व्यापक थे क्योंकि इसमें केन्द्र और राज्यों में लोक प्रशासन का सम्पूर्ण क्रियाविधि शामिल थी। आयोग ने अपनी 20 रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें 500 सिफारिशें की गई। इसमें प्रशासन में छोटे और बड़े परिवर्तन हुए और आगे सोच विचार के लिए मार्ग प्रशस्त किया जिसके फलस्वरूप और अधिक सुधार हुए।
प्रशासनिक सुधार आयोग की प्रमुख सिफारिशों का उल्लेख नीचे किया गया है :
1) प्रशासनिक सुधार विभाग के लिए कार्यों का निर्धारण। आयोग ने सुझाव दिया कि विभाग को निम्नलिखित पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिएः
· वे प्रशासनिक सिफारिशें, जो आधारभूत स्वरूप की हो, उनका अध्ययन करता
· मंत्रालयों और विभागों में संगठन और पद्धति विशेषज्ञता उत्पन्न करना और उनके संगठन और पद्धति इकाइयों में स्टाफ को आधुनिक प्रबंधकीय तकनीक में प्रशिक्षण देना; और
· संगठन और पद्धति इकाइयों को उन्नति और सुधारों के क्रियान्वयन में मार्गदर्शन देना
2) भिन्न-भिन्न मंत्रालयों और विभागों में संगठन और पद्धति इकाइयों को पुनःसक्रिय करना
3) प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्टों को लागू करने के लिए केन्द्रीय सुधार एजेन्सी में विशेष विभाग स्थापित करने की आवश्यकता पर ध्यान केन्द्रित किया; और
4) केन्द्रीय सुधार एजेन्सी उन मामलों में अनुसंधान आधारित होनी चाहिए जो कार्य की पद्धतियों, स्टाफिंग पैटर्न और संगठनात्मक संरचना से संबंधित कार्य करते हों।
कोठारी समिति, 1976
श्री कोठारी की अध्यक्षता में संघ लोक सेवा आयोग ने 1976 में अखिल भारतीय सेवाओं और केन्द्रीय समूह के 'क' और 'ख' सेवाओं के लिए भर्ती की प्रणाली की जाँच करने तथा रिपोर्ट देने के लिए भर्ती और चयन प्रणाली समिति गठित की। समिति ने अपनी रिपोर्ट में अखिल भारतीय सेवाओं और केन्द्रीय समूह के ग़ैर तकनीकी सेवाओं के लिए एक ही परीक्षा की सिफारिश की।
शष्ट्रीय पुलिस आयोग, 1977
पुलिस आयोग का गठन श्री धर्मवीर की अध्यक्षता में अपराध नियंत्रण और कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के विशेष संदर्भ पुलिस की भूमिका और कार्यों, मजिस्ट्रेटी पर्यवेक्षण के तरीके, जाँच और अभियोजन की प्रणाली और अपराध रिकार्डों के रखरखाव की जाँच करने के लिए गठित की गई थी। आयोग ने पाँच सौ से अधिक सिफारिशें की, इसमें पुलिस प्रशासन से संबंधित व्यापक हित के क्षेत्र शामिल थे।
आर्थिक सुधार आयोग, 1981
आयोग का गठन एल. के. झा. की अध्यक्षता में किया गया। आयोग को सौंपे गए मुख्य कार्य सुधारों के सुझाव देने की दृष्टि से, आर्थिक प्रशासन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों के अध्ययन से संबंधित थे। आयोग ने सरकार को कई रिपोर्ट प्रस्तुत की जिनमें नई अर्थव्यवस्था के लिए मार्ग प्रशस्त करने की आर्थिक प्रशासनिक प्रणाली के यौक्तिकीकरण और आधुनिकीकरण की वकालत की गई थी।
केन्द्र राज्य संबंध आयोग, 1983
श्री आर. एस, सरकारिया इस आयोग के अध्यक्ष थे। इसके विचारार्थ विषय थेः सभी क्षेत्रों में शक्तियों, कार्यों और उत्तरदायित्वों के बारे में संघ और राज्यों के बीच विद्यमान व्यवस्थाओं की जाँच करना तथा समीक्षा करना और आवश्यक परिवर्तनों तथा उपायों की सिफारिशें करना।
भास्तीय संविधान के कार्यकरण की समीक्षा करने के लिए मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) बैंकटचेलिया की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आयोग 2000-03 में गठित किया गया।
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