मानव अधिकार समिति की स्थापना नागरिक- राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के एक निगरानी संगठन के रूप में 1976 में हुई थी। किसीअन्य समिति की तरह इसके भी मुख्यतः दो कार्य हैं: (i) विभिन्न रचनातंत्रों के माध्यम से नागरिक-राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के कार्यान्वयन को निगरानी करना; (ii) नागरिक-राजनीतिक अधिकारों की अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के प्रावधानों पर सामान्य टिप्पणियाँ जारी करना | मानव अधिकार समिति के सदस्य 18 स्वायत्त विशेषज्ञ होते हैं जिनका चुनाव 4 साल के लिए किया जाता है। सबसे अधिक प्रतिष्ठित तथा सफल समिति होने के कारण मानव अधिकार समिति के एक साल में तीन सप्ताह के तीन सत्र होते हैं। इसने कई सामान्य टिप्पणियाँ जारी की हैं जिन्होंने प्रसंविदा के बेहतर कार्यान्वयन के साथ-साथ मानव अधिकारों से संबंधित मुद्दों पर विधिशास्त्र का एक संग्रह तैयार कर दिया है। मानव अधिकार समिति अत्यधिक क्रमबद्ध तरीके से कार्य करती है। इसने अपने पूर्व सत्र कार्य के लिए कंट्री रिपोर्ट टॉस्क फोर्स नाम से एक संस्था की स्थापना की हुई है जो राज्यों की रिपोर्ट से संबंधित मुद्दों तथा प्रश्नों की एक सूची तैयार करती है जो जाँच सत्र आरंभ होने से पहले ही संबंधित सदस्य-राज्य को भेज दी जाती है। अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए, समिति का वह सदस्य, जो उस देश का नागरिक है जिसकी रिपोर्ट पर विचार हो रहा है, किसी भी प्रकार के प्रश्न अथवा उत्तर से परहेज करते हैं। राज्य की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात्, समिति उस राज्य विशेष पर अपनी समापन टिप्पणियाँ जारी करती है। यह समापन टिप्पणियाँ उस सदस्य देश में सामान्य मानव अधिकार परिस्थिति पर एक मूल्यांकन का कार्य करती है। ये समापन टिप्पणियाँ काफी व्यापक होती हैं तथा इनमें राज्य की रिपोर्ट पर टिप्पणी, सकारात्मक प्रगति, चिंता करने वाले क्षेत्र, कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ, परामर्श तथा सिफारिशें सभी कुछ निहित होते हैं। मानव अधिकार समिति अपने स्पेशल रिपोर्टियर फॉलोअप द्वारा इन समापन टिप्पणियों के कार्यान्वयन पर भी नजर रखती है, जिसका कार्य संबंधित सदस्य-राज्य से इन समापन टिप्पणियों के कार्यान्वयन संबंधी सूचनाएँ प्राप्त करके मानव अधिकार समिति को सौंपना है। समिति द्वारा विकसित की गई यह व्यवस्था सिद्ध करती है कि यह सदस्य-राज्यों द्वारा संधि के अनुपालन के निरंतर मूल्यांकन तथा निगरानी में विश्वास रखती है।
प्रथम वैकल्पिक प्रोटोकॉल के अंतर्गत लाई गई व्यक्तिगत संप्रेषण पर आधारित शिकायतों पर विचार करने में भी मानव अधिकार समिति काफी सफल रहीं है। इसकी कार्यवाही गोपनीय होती है तथा इसके निर्णय अर्ध-न्यायिक प्रकृति के होते हैं। हालाँकि व्यक्तिगत केस में समिति के निर्णयों को लागू नहीं किया जा सकता फिर भी, सदस्य-राज्य अधिकतर समिति के निर्णयों का आदर करते हैं तथा उन्हें कार्यान्वित भी करते हैं। अतः यह व्यवस्था काफी हद तक राज्यों द्वारा निर्णयों को कार्यान्वित करने की इच्छा पर निर्मर करती है। इसकी सफलता का प्रमाण यह है कि 2004 तक इस समिति ने शिकायतों के 1245 संदेश प्राप्त किए जिनमें से 965 मामलें में यह अपना निर्णय दे चुकी है हालाँकि विचाराधीन शिकायतों का पुराना ढेर अभी भी चिंता का विषय बना हुआ है।
कुछ देशों ने, जब भी समिति ने इनकी आलोचना की है समिति की कार्य प्रणाली की निन््दा की है अथवा इसकी नकारात्मक आलोचना की है। दूसरी तरफ, कनाडा जैसे कई देशों ने समिति की सिफारिशों का अनुपालन किया है तथा इसके निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए अपने राष्ट्रीय कानून में भी संशोधन किए हैं। ऐसा देखा गया है कि जिन देशों में राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकार व्यवस्था अपेक्षाकृत मज़बूत है वे इसकी कार्य प्रणाली. को स्वेष्छा से स्वीकार करते हैं, समिति के निर्णयों का गंभीरता से पालन करते हैं, तथा इसकी व्यवस्था को सफल बनाने में सहायता करते हैं।
मानव अधिकार समिति द्वारा अच्छा कार्य करने के बावजूद, कई क्षेत्र अभी भी चिंता के विषय हैं। प्रसंविदा का मूलपाठ इस प्रकार का है कि इसमें विशिष्ट अभिकरणों की भागेदारी काफी सीमित है। इसी तरह अन्य संधि संगठनों के साथ सहयोग अथवा अंतर्सबंध भी काफी कम है। ऐसा केवल कभी कभार ही हुआ है कि मानव अधिकार समिति के सदस्य किन्हीं अन्य समिति के भी समान्तर सदस्य रहे हों। इसके अतिरिक्त मानव अधिकार समिति के कार्यों में अन्य समितियों के सदस्यों को निहित करने का एक औपचारिक रचनातंत्र भी अनुपस्थित है। यंदि अन्य समितियों को मानव अधिकार समिति के व्यापक अनुभव से कुछ सीखना है तो सहयोग तथा भागेदारी के कुछ रास्ते तलाशने होंगे।
मानव अधिकार समिति की एक अन्य समस्या राज्य से प्राप्त होने वाली रिपोर्टों में अत्यधिक विलम्ब अथवा रिपोर्टों का न प्राप्त होना है। सदस्य-राज्य की रिपोर्ट पर विचार वास्तव में वार्तालाप का एक अवसर प्रदान करती है तथा मानव अधिकार समिति इसे प्रोत्साहन देती है, बजाय इसके कि वह किसी सदस्य देश में मानव अधिकार परिस्थिति पर बिना रिपोर्ट के ही विचार करें। सदस्य-राज्यों द्वारा इस चूक के कारण मानव अधिकार समिति ने एक लचीला नियम आरंभ किया जिसमें सदस्य-राज्य पुरानी दो रिपोर्टों को मिलाकर एक संयुक्त रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर सकते हैं| परन्तु चिंताजनक बात यह है कि इस प्रयत्न के बावजूद भी आधे से अधिक राज्यों की रिपोर्ट अभी बकाया।हैं।
इसके विपरीत सम्रिति भी रिपोर्टों अथवा व्यक्तिगत शिकायतों पर समय सीमा के बीच विचार करने में असमर्थ रही है। सबसे अधिक सफल संस्था होने के कारण समिति द्वारा प्राप्त होने वाले संदेश अत्यधिक होते हैं जिसके परिणामस्वरूप इसके पास समय का हमेशा अभाव रहता है।
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