वेबर के अनुसार, तत्कालीन जगत तर्कसंगति से ही अभिलक्षित है। उनका मानना था कि आधुनिक समाज को समझने की कुंजी उसके तर्कसंगत अभिलक्षणों एवं तर्कसंगत शक्तियों में ही मिलती हैं। उसके अनुसार, आधुनिक पाश्चात्य जगत तर्कसंगति से ही अभिलक्षित है। इसी के परिणामस्वरूप, मानव क्रिया सचेत गणना से निर्देशित होती है। परिमाणन, पूर्वानुमेयता एवं नियमितता महत्वपूर्ण हो जाते हैं। व्यक्तिजन अलौकिक मान्यताओं की अपेक्षा तर्क, कारण एवं गणना पर कहीं अधिक विश्वास करने लगते हैं। वेबर के अनुसार, तर्कसंगतीकरण का अर्थ है- “सिद्धांततः ऐसी कोई रहस्यमय अगण्य शक्तियाँ नहीं होतीं जो सामने आती हों, परंतु फिर भी व्यक्ति, सिद्धांत रूप में, गणना द्वारा सभी चीजों पर नियंत्रण कर सकता है। अब किसी को प्रेतात्माओं को काबू करने या मनाने के लिए मायिक या जादूई साधनों का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि बर्बर या असभ्य लोग किया करते हैं, क्योंकि उनके लिए ऐसी रहस्यमय शक्ति का अस्तित्व होता है” (वेबर 1946:139, तुलना करें हर्न 1985:76)। आइए, एक उदाहरण लें। यदि कोई किसान अच्छी फसल लेना चाहता है तो वे पूजा-पाठ और यज्ञ-अनुष्ठान कराने में समय, ऊर्जा और धन खर्च कर सकता है। दूसरी ओर, वे यही प्रयास एवं व्यय सिंचाई के लिए नहर खुदवाने या ट्यूब-वैल लगवाने की दिशा में कर सकता है ताकि फसलें फलें-फूलें। पहली स्थिति में वे “रहस्यमय अगण्य शक्तियों” पर निर्भर है; दूसरी स्थिति में, वे तर्कसंगत गणना का प्रयोग कर रहा है।
वेबर के अनुसार, तर्कसंगतीकरण पाश्चात्य संस्कृति के वैज्ञानिक विशिष्टीकरण और प्रौद्योगिकीय विभेदीकरण का परिणाम है। उन्होंने तर्कसंगतीकरण का वर्णन पूर्णता या निषुणता हेतु संघर्ष. जीवन-व्यवहार के सरल परिमार्जन के रूप में और बाह्य जगत पर प्रवीणता हासिल करने के रूप में किया [देखें फ्राएंड 1972:18)। मान्यताओं का रहस्यदूरीकरण और विचारों का धर्म-निरपेक्षीकरण तर्कसंगतीकरण के वे महत्वपूर्ण पहलू हैं जो विश्व पर आधिपत्य हासिल करने में सहायक सिद्ध होते हैं। तर्कसंगतीकरण में काननू बनाना और संगठन खड़े करना भी शमिल होता है।
वेबर के अनुसार, आधुनिकता के अंतर्गत जीवन के सभी पहलुओं के तर्कसंगत क्रिया एवं तर्क संगतीकरण की संवृद्धि एवं प्रसार विश्व के 'मोहभंग” में परिणत हुआ। मानव जीवन इतना पूर्वानुमेय और नियमित हो जाता है कि वे अपना आकर्षण ही खो देता है। कोसर लिखते हैं-
“आधुनिकता का संसार, जिस पर वेबर ने बार-बार जोर दिया, देवताओं द्वारा परित्यक्त ही रहा है। मनुष्य ने उन्हें खदेड़ दिया है और जो पूर्वकाल में संयोगवश, बल्कि बोध, मनोभाव एवं प्रतिबद्धता द्वारा, व्यक्तिगत आकर्षण एवं वैयक्तिक निष्ठा द्वारा, लाववय द्वारा और चमत्कारिक नायकों के नीति-शास्त्र द्वारा ही प्राप्त होते थे, गण्य एवं पूर्वान॒ुमेय बना दिए गए हैं।” वेबर ने इसको विभिन्न सामाजिक संस्थाओं संबंधी अपने अध्ययन-विषयों के माध्यम से चित्रांकित किया। धर्म के समाजशास्त्र में उसके अध्ययन, विषय धार्मिक जीवन का तर्क संगतीकरण दस्तावेज रूप में प्रस्तुत करते हैं। उसने कानून के दायरे में, राजनीतिक प्रभुत्व में, और यहाँ तक कि संगीत जगत में भी तर्कसंगतीकरण प्रक्रिया का अध्ययन किया- पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत, एशिया एवं अफीका में संगीत की कहीं अधिक सहज पद्धतियों से भिन्न, अपनी प्रस्तुति के कठोर नियमों एवं मानवीकृत प्रक्रियाओं से अभिलक्षित हैं।
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